सीमांचल में जदयू : लग गयी बददुआ, उजड़ गया खोता!

अशोक कुमार
22 अप्रैल 2025
Kishanganj : नया वक्फ कानून को लेकर सीमांचल की सियासत उबल रही है. इसी उबाल के बीच वक्फ कानून पर पार्टी नेतृत्व के रूख से गुस्साये पूर्व विधायक मास्टर मुजाहिद आलम जदयू से अलग हो गये. इस प्रकरण को सुर्खियां इस वजह से भी मिल रही है कि वह किशनगंज जिला जदयू के अध्यक्ष थे. मरहूम पूर्व केन्द्रीय मंत्री तसलीम उद्दीन के सियासी शागिर्द थे. तकरीबन पंद्रह वर्षों से जदयू से जुड़े थे. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रिय माने जाते थे. 19 अप्रैल 2025 को उन्होंने ‘सीमांचल के मर्द-ए-मुजाहिद : मास्टर मुजाहिद आलम’ के बैनर तले ‘नीतीश कुमार मुर्दाबाद’, ‘नीतीश तेरी तानाशाही नहीं चलेगी, नहीं चलेगी’, ‘वक्फ कानून वापस लो’ जैसे उत्तेजक नारों के बीच जदयू की सदस्यता त्याग दी.

कोई अप्रत्याशित घटना नहीं
सामान्य समझ में सीमांचल में जदयू का खोता उजड़ गया. इससे उसे सदमा जरूर पहुंचा, पर राजनीति तनिक भी हैरान नहीं हुई. कारण कि मास्टर मुजाहिद आलम का जदयू से अलग हो जाना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी. वक्फ संशोधन विधेयक को जदयू के किला ठोक समर्थन के बाद से ही उनकी भाव-भंगिमा ऐसी बगावत का संकेत दे रही थी. संभव है, जदयू के कुछ और मुस्लिम नेता उनका अनुसरण करें. पर, इससे उसकी सेहत पर कोई असर पड़ेगा, इसकी संभावना नहीं दिखती है. इसलिए कि सीमांचल की मुस्लिम सियासत में खोने के लिए जदयू के पास कुछ नहीं है.
गुस्सा नीतीश कुमार पर उतारा
मास्टर मुजाहिद आलम के बाद चर्चित चेहरा के रूप में पूर्व मंत्री नौशाद आलम बचेे हैं. लहरा मैदान के वक्फ कानून विरोधी मंच पर उनके दिख जाने के बाद जदयू के इस खूंटे को भी उखड़ा हुआ ही माना जा रहा है. बस, पार्टी से नाता तोड़ लेने की औपचारिक घोषणा भर बाकी है. किशनगंज के लहरा मैदान में रविवार 20 अप्रैल 2025 को आयोजित सर्वदलीय जलसा में वक्फ कानून विरोधियों का भारी जुटान हुआ. इसमें वक्फ कानून को असंवैधानिक बताते हुए सीधे तौर पर गुस्सा नीतीश कुमार पर उतारा गया. तर्क यह कि जदयू वक्फ विधेयक का समर्थन नहीं करता तो नया कानून अस्तित्व में नहीं आता.
कांग्रेस और राजद को फायदा नहीं
किशनगंज के कांग्रेस विधायक इजहारूल हुसैन, कोचाधामन के राजद विधायक इज़हार असफी, अमौर के एमआईएम विधायक अख्तरूल ईमान एवं मुस्लिम संगठनों के नेताओं की पहल पर आयोजित इस जलसे में किशनगंज जिले के तमाम मुस्लिम नेताओं की मौजूदगी रही. जदयू से जुड़े छोटे – बड़े नेताओं की भी. राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता सांसद मनोज झा भी मंचासीन दिखे. विश्लेषकों की नजर में वक्फ विरोधी सर्वदलीय आयोजन अनुमान से कहीं अधिक सफल रहा. पर, कांग्रेस और राजद को इससे कोई अतिरिक्त फायदा शायद ही मिल पायेगा. सामान्य समझ में जदयू के खोता उजड़ जाने का मुकम्मल लाभ एमआईएम को मिल जा सकता है.
एमआईएम की ओर मुखातिब
ऐसा इसलिए कि राजद और कांग्रेस में तकदीर संवरने की संभावना नहीं देख जदयू छोड़ने वाले अधिसंख्य नेता- कार्यकर्ता एमआईएम की ओर मुखातिब दिख रहे हैं. सिर्फ जदयू के ही नहीं, कांग्रेस के भी वैसे नेता उस ओर कदम बढ़ाते नजर आ रहे हैं जिनकी उम्मीदें महागठबंधन में खंडित हैं. इसके मद्देनजर एमआईएम के सीमांचल में उखड़ गये पांव के फिर से जम जाने की संभावना को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. यहां जानने वाली बात है कि 2024 के संसदीय चुनाव के दरमियान एमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने नीतीश कुमार की पार्टी का सत्यानाश हो जाने की बददुआ दी थी. लगता है, वह बददुआ लग गयी है. असदुद्दीन ओवैसी ने यह बददुआ चार विधायकों के एमआईएम से अलग हो जाने के खुन्नस में थी.
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