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ऐसा क्या था डीपी ओझा की रिपोर्ट में… तिलमिला गये थे लालू?

विष्णुकांत मिश्र
09 दिसम्बर 2024

Patna : डीपी ओझा मात्र ग्यारह माह ही पुलिस महानिदेशक के पद पर रहे. इस अल्प कार्यकाल में उन्होंने ऐसा क्या कह और कर कर दिया कि पदमुक्त होने के 21वें साल में अंतिम सांस लेते ही फिर सुर्खियों में छा गये? इस आलेख में इसी का उद्भेदन किया जा रहा है. राज्य के पुलिस महानिदेशक (DGP) के पद पर रहते ‘लफंगे नेताओं के हाथ में सत्ता’ की बात कह सियासत (Politics) में सनसनाहट भर देने वाले डीपी ओझा (DP Ojha) ने तकरीबन बीस साल पूर्व तब के बाहुबली राजद सांसद शहाबुद्दीन (RJD MP Shahabuddin) की गैरकानूनी हरकतों व गतिविधियों से संबंधित सत्ता हिलाऊ गोपनीय रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी थी. इससे भी राजनीति में भूचाल आ गया था.

तथ्यहीन और आधारहीन बताया
एनडीए (NDA) तब विपक्ष की भूमिका में था. लगभग सौ पन्ने की उस रिपोर्ट को उसने असाधारण बताया था. सार्वजनिक करने की मांग उठायी थी. याद कीजिये, उस दौर में बिहार में कांग्रेस (Congress) की सहभागिता वाली राबड़ी देवी (Rabri Devi) की सरकार थी. सत्ता की लगाम राजद (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के हाथ में थी. अपने अंदाज में लालू प्रसाद ने अपनी ही पुलिस की रिपोर्ट को महीनों से कही-सुनी जा रही ‘कथा-कहानी’ का दोहराव बता तथ्यहीन और आधारहीन करार दिया था. कहा था कि रिपोर्ट में कही गयी बातों का कोई सबूत नहीं है. सब गप्प है.

आतंकवादियों से गहरे रिश्ते का जिक्र
लालू प्रसाद के इस तर्क को तवज्जो दे राबड़ी देवी की सरकार ने रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग को अनसुना कर दिया. मीडिया में जो बातें आयीं थीं उसके मुताबिक अगस्त 2003 में राज्य सरकार को समर्पित बिहार पुलिस (Bihar Police) की गोपनीय रिपोर्ट में शहाबुद्दीन के खौफ और सीवान में उनके समानांतर शासन की चर्चा के साथ कथित रूप से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई (ISI) एवं कश्मीरी आतंकवादियों से गहरे रिश्ते का जिक्र था. विश्लेषकों के मुताबिक यह खुलासा सत्ता के सूत्रधार के लाल होने के लिए पर्याप्त था.

ओझा की विदाई का बड़ा कारण
जानकारों के अनुसार गोपनीय रिपोर्ट मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक यशवंत मल्होत्रा ने तैयार की थी. हैरान करने वाली बात यह रही कि इस कथित सनसनीखेज खुलासे के बाद भी शहाबुद्दीन का बाल बांका नहीं हुआ, खौफ बना रहा. दूसरी तरफ यही रिपोर्ट पुलिस महानिदेशक पद से डी.पी. ओझा की विदाई का बड़ा कारण बन गयी. पुलिस महानिरीक्षक यशवंत मल्होत्रा को भी चंद तरह की परेशानियों से दो-चार होना पड़ गया.

दाऊद से शहाबुद्दीन की मुलाकात
यहां यह जानने-समझने की जिज्ञासा हर किसी की जगी होगी कि आखिर उस रिपोर्ट में ऐसा क्या था कि राज्य सत्ता इस कदर तिलमिला उठी? रिपोर्ट की बावत कोई मुकम्मल जानकारी तो नहीं है, पर उस कालखंड में पुलिस मुख्यालय से छन कर जो बातें बाहर आयी थीं उसके मुताबिक कथित रूप से उसमें कहा गया था कि 2001 में सऊदी अरब (Saudi Arabia) में शहाबुद्दीन की मुलाकात दाऊद इब्राहिम (Dawood Ibrahim) से हुई थी. आईएसआई से जुड़े नेपाली सांसद मिर्जा दिलशाद बेग की काठमांडू में हत्या की चर्चा थी.


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खरीदी थी कई ए.के.-47 राइफलें
रिपोर्ट में जम्मू-कश्मीर में सक्रिय एक खूंख्वार आतंकी संगठन से ताल्लुकात का जिक्र था. इस रूप में कि उस आतंकी संगठन से शहाबुद्दीन ने कई एके-47 राइफलें खरीदी थीं. कुछ रायफलें उन्होंने वाराणसी के अजय राय और रांची के अनिल शर्मा के हाथों बेच दी थी. कुछ अपने पास भी रखे थे. अजय राय ने हालांकि शहाबुद्दीन से एके-47 राइफलें खरीदने की बात को बेबुनियाद बताया था. मतलब कि उन्होंने ऐसी कोई खरीदारी नहीं की थी. जो हो, उन्हीं रायफलों का इस्तेमाल बहुचर्चित गोपालगंज बैंक डकैती में हुआ था. शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर में पुलिस से मुठभेड़ के बाद हिजबुल की मोहर लगी रायफल की बरामदगी हुई थी.

रिपोर्ट का आखिर हुआ क्या?
पुलिस की रिपोर्ट में दाऊद इब्राहिम के लिए नेपाल में कामकाज संभालने वाले सलीम अंसारी और उत्तर प्रदेश के माफिया सरगना मुख्तार अंसारी से मधुर संबंधों का जिक्र भी था. उसमें मुख्तार अंसारी के सीवान जेल में शहाबुद्दीन से मुलाकात की बात भी कही गयी थी. इन सबके अलावा रिपोर्ट में शहाबुद्दीन के संदर्भ में और भी कई गंभीर बातें थीं. पर, उन तमाम बातों को सिर्फ लालू प्रसाद ने ही नहीं, शहाबुद्दीन ने भी सत्य से परे बकवास बताया था. यहां जानने वाली बात है कि सरकार के स्तर से रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गयी. उसके आधार पर कोई कारवाई भी नहीं हुई. तो फिर उस रिपोर्ट का हुआ क्या?

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