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गांव-समाज : बोतल बंद पानी में घुल रही प्याऊ की परंपरा!

विजय गर्ग
05 मई 2025
माज में किसी परंपरा का अंत हो जाना कुछ मामलों में खुशियां देता है तो कुछ में भीतर से रुला भी देता है. परंपराओं का प्रारंभ और अंत विकासशील समाज के लिए आवश्यक भी है. परंपराएं टूटने के लिए ही होती हैं, पर कुछ परंपराएं ऐसी होती हैं जिनका टूटना मन को दुखी कर जाता है. कुछ ऐसा ही अनुभव तब हुआ जब बोतलबंद पानी (Botalaband Pani) की संस्कृति के बीच इन दिनों प्याऊ की परंपरा दम तोड़ती दिख रही है. पहले गांवों, कस्बों और शहरों में कई प्याऊ देखने को मिल जाते थे. आमतौर पर रेलवे स्टेशनों पर गर्मियों में पानी पिलाने का पुण्य कार्य किया जाता था. पानी पिलाने वालों की केवल यही प्रार्थना होती, जितना चाहे पानी पीएं, चाहे तो सुराही में भर लें, पर पानी बर्बाद नहीं करें. उनकी यह प्रार्थना उस समय लोगों को भले ही प्रभावित न करती हो, पर आज जब उन्हीं रेलवे स्टेशनों (railway stations) में पानी की बोतलें खरीदनी पड़ती हैं, तब समझ में आता है कि सचमुच उनकी प्रार्थना का कोई अर्थ था.

पुण्य कार्य है पानी पिलाना

मुहावरों में ‘पानी पिलाना’ का मतलब भले मजा चखाना हो, पर यह सनातन सच है कि पानी (Water) पिलाना एक पुण्य कार्य है. अच्छी भावना के साथ किसी प्यासे को पानी पिलाना तो और भी पुण्य का काम है. कहते हैं कि समय के साथ सब कुछ बदल जाता है, पर अच्छी परंपराएं जब दम तोड़ने लगती हैं, तब दुख होना स्वाभाविक है. पुरानी सभी परंपराएं अच्छी थीं, यह कहना मुश्किल है, पर कई परंपराएं जिसके पीछे किसी तरह का कोई स्वार्थ न हो, जिसमें केवल परोपकार की भावना हो, उसे अनुचित कतई नहीं कहा जा सकता है. प्याऊ परंपरा में यह भावना कभी नहीं रही कि पानी पिलाना एक पुण्य कार्य है. मात्र कुछ लोग चंदा एकत्र करते और एक प्याऊ शुरू हो जाता. अब तो कहीं-कहीं प्याऊ के उद्घाटन की खबरें पढ़ने को मिल जाती हैं, पर कुछ दिनों बाद वह या तो पानी बेचने का व्यावसायिक केंद्र बनकर रह जाता है या फिर मवेशियों का आश्रय.

तब भी नहीं समझ पायेंगे पानी का महत्व

कल्पना करें कि कोई राहगीर दूर से चलता हुआ किसी गांव (Village) या शहर (Town) में प्रवेश करता है, उसे प्यास लग रही है. वह पानी की तलाश में है, तब उसे कहीं प्याऊ दिखाई देता है. जहां वह छककर ठंडा पानी पीता है. निश्चित रूप से उसका आत्मा भी तृप्त हो जाता है. वह आगे बढ़ता है, बहुत सारी दुआएं देकर. आज एक गिलास पानी भी बड़ी जद्दोजहद के बाद मिलता है. ऐसे में कहां की दुआ और कहां की प्रार्थना! देखते ही देखते पानी बेचना एक व्यवसाय (Business) बन गया. यह हमारे द्वारा की गयी पानी की बर्बादी का ही परिणाम है. आज भले ही हम पानी बर्बाद करना अपनी शान समझते हों, पर सच तो यह है कि यही पानी एक दिन हम सबको पानी-पानी कर देगा. शायद तब भी हम नहीं समझ पायेंगे, पानी का महत्व!
(लेखक सेवानिवृत्त प्राचार्य हैं.)

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