अतीत का पन्ना : नेहरू की ‘आदिवासी पत्नी’… पच नहीं पायी संताली समाज को!

राजकिशोर सिंह
02 मई 2025
Dhanbad : जिंदगी के आखिरी लम्हों तक बेरहम समाज द्वारा दिये दर्द को सीने में बसा रखी बुधनी मंझियाइन (Budhni Manjhiyain) 17 नवम्बर 2023 को गोलोकवासी हो गयी. लगभग 80 वर्ष की आयु में पंचेत (Panchet) की अपनी कुटिया में उसने अंतिम सांस ली. अपने ही जाति-समाज के आदिमयुगीन फैसले का दंश 64 साल से झेल रही बुधनी मंझियाइन वहां 60 वर्षीया बेटी रत्ना (Ratna) के साथ रह रही थी. रत्ना का 33 वर्षीय पुत्र है बापी (Bapi) . डीवीसी (DVC) में अकाउटेंट है. उस दिन अंतिम विदाई के लिए उसकी कुटिया पर भारी भीड़ जुट गयी तब जो नहीं जानते थे, उन्हें भी मालूम हो गया कि बुधनी मंझियाइन जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) की ‘आदिवासी पत्नी’ (Tribal Wife) थी. उसी दौरान बुधनी मंझियाइन का स्मारक बनाने की मांग डीवीसी प्रबंधन के समक्ष रखी गयी.
सुना दिया फरमान
परंपरा तो अपनी जगह थी ही, उस दौर में गांव की एक साधारण महिला मजदूर का प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का मंच साझा करना और उनके द्वारा इस रूप में सम्मानित किया जाना संताल समाज (Santal community) के ठेकेदारों को पच नहीं पाया. दिन में इस सम्मान की खुशी में झूम रही बुधनी मंझियाइन की जिंदगी में रात में ऐसा झंझावात आया कि जीवन भर वह उससे उबर नहीं पायी. उद्घाटन वाली रात में ही गांव के संताली समाज की पंचायत बैठी. उसमें उसेे गालियां दी गयीं, अशोभनीय व्यवहार किया गया और फरमान सुना दिया गया कि जवाहर लाल नेहरू ने उसे माला दी है इसलिए आदिवासी परंपरा के अनुसार वह उनकी ‘पत्नी’ हो गयी है.
तरस नहीं आया
जवाहर लाल नेहरू गैर आदिवासी थे. एक गैर आदिवासी से ‘शादी रचाने’ के आरोप में संताली पंचायत ने बुधनी मंझियाइन को जाति और गांव से बाहर निकल जाने को विवश कर दिया. बुधनी मंझियाइन लाख रोती रही, गिड़गिड़ाती रही कि जवाहर लाल नेहरू को उसने माला नहीं पहनायी थी, संताली पंचायत की निष्ठुरता पर उसका कोई असर नहीं पड़ा. पहले से निर्णय कर रखे पंचों को उसके आंसुओं पर तरस नहीं आया. बेसहारा हो गयी बुधनी मंझियाइन गांव-घर से बाहर टूटे-फूटे मकान में निर्वासित जिंदगी जीने लगी. डीवीसी के विद्युत संयत्र में मजदूरी करती थी इसलिए वहां रहना उसकी मजबूरी थी.
सुधीर दत्त ने संभाला
अनुबंध पर काम करने वाले अन्य श्रमिकों के साथ 1962 में उसे भी डीवीसी से निकाल दिया गया. तब वह पुरुलिया (Purulia) चली गयी. साल्टोरा में रह दिहाड़ी मजदूरी करने लगी. उसी दरम्यान खदान में ठेका कर्मचारी के तौर पर काम करने वाले सुधीर दत्त (Sudhir Dutt) से मुलाकात हुई. सुधीर दत्त बांकुड़ा का रहने वाला था. उसी ने उसेे आश्रय दिया और बुधनी मंझियाइन से बुधनी दत्ता बना दिया. लेकिन, लोकलाज के मद्देनजर औपचारिक शादी नहीं की. सुधीर दत्त से उसे एक बेटी हुई. आदिवासी समाज की परंपरा के अनुसार मां की तरह वह भी निर्वासिता की जिंदगी जी रही है.

राजीव गांधी से मुलाकात
लगभग 23 साल बाद 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) आसनसोल (Asansol) गये हुए थे. वहां कांग्रेस (Congress) के एक नेता ने जवाहर लाल नेहरू से जुड़े बुधनी मंझियाइन के प्रसंग एवं उसकी बदहाली से उन्हें अवगत कराया. राजीव गांधी ने बुधनी मंझियाइन की खोज करवायी. फिर उनके बुलावे पर वह उनसे मिलने भिलाई (Bhilai) गयी. उन्हीं की पहल पर उसे फिर से डीवीसी में नौकरी मिल गयी. इस संदर्भ में एक और चर्चा होती है. यह कि सुधीर दत्त की निकटता बांकुड़ा के तब के सांसद बासुदेव आचार्य (Basudev Acharya) से थी. उसने उन्हें इस प्रकरण की जानकारी दी.
नौकरी मिल गयी
राजीव गांधी तक यह बात संभवतः वासुदेव आचार्य ने ही पहुंचायी थी. इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) को इस प्रकरण की जानकारी थी भी या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता. राजीव गांधी ने अपनी इस ‘नानी’ के लिए इसके अलावा और कुछ नहीं किया. राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से बुधनी मंझियाइन को काफी अपेक्षाएं थीं, पूरी नहीं हो पायीं. 2005 में बुधनी मंझियाइन डीवीसी से सेवानिवृत्त हो गयीं. उसके बाद से ही धनबाद से 60 किलोमीटर दूर पंचेत में बेटी और दामाद के साथ रह रही थी.
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