बिहार और कन्हैया कुमार : चुनाव लड़ेंगे नहीं, लड़वायेंगे इस बार

विनोद कर्ण
22 अप्रैल 2025
Begusarai : तकरीबन बीस दिनों तक बिहार (Bihar) में कांग्रेस (Congress) की राजनीति ‘कन्हैया यात्रा’ के इर्द-गिर्द घूमती रही. माहौल ऐसा बन गया कि लोगों को लगा कि पिछलग्गू का कलंक मिटा कांग्रेस बैसाखी से उतरने ही वाली है. लेकिन, सब भ्रम साबित हुआ. दुर्भाग्य से पिंड नहीं छूटा. काग्रेस बैसाखी पर ही पिछलग्गू की भूमिका में टंगी रह गयी. कन्हैया कुमार (Kanhaiya Kumar) फिलहाल राजनीतिक परिदृश्य से ओझल हैं. दृश्यमान कब होंगे यह नहीं कहा जा सकता. बहरहाल, महागठबंधन की राजनीति में कन्हैया कुमार की मुकम्मल भूमिका क्या होगी इस पर संशय की स्थिति है. लेकिन, विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस उन पर दांव नहीं लगायेगी, यह करीब-करीब तय है.
ऐसा ही कुछ हुआ था 2020 में
तय यह भी है कि उनकी काबिलियत से जलने वाले महागठबंधन के नेताओं की परवाह न कर कांग्रेस नेतृत्व पार्टी हित में उनका राज्यस्तरीय इस्तेमाल करेगा. राज्यस्तरीय इस्तेमाल का मतलब कांग्रेस के हिस्से के तमाम निर्वाचन क्षेत्रों में उनका आक्रामक अभियान चलेगा. इसको इस रूप में भी माना और समझा जा सकता है कि कोई मुंह फुलाये या नाक, उन क्षेत्रों में कांग्रेस की कमान मुख्य रूप से वही संभालेंगे. गौर करने वाली बात है कि 2020 के चुनाव में भी कन्हैया कुमार के साथ ऐसा ही कुछ हुआ था. तब वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के चर्चित नवोदित नेता थे. भाकपा भी महागठबंधन का हिस्सा है. राजद (RJD) नेतृत्व के नहीं चाहने के बावजूद चुनिंदा क्षेत्रों में कन्हैया कुमार की सक्रियता दिखी थी.

नीति और रणनीति की कमान
वर्तमान में कन्हैया कुमार कांग्रेस के प्रभावशाली नेता हैं. राहुल गांधी के करीबियों में गिने जाते हैं. बताया जाता है कि बिहार में कांग्रेस की चुनावी नीति और रणनीति की कमान मुख्य रूप से इन्हें ही सौंपी गयी है. संभवतः इसी वजह से कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें विधानसभा के चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाने का मन बना रखा है. कांग्रेस के अघोषित सुप्रीमो राहुल गांधी के वह कितने प्रिय हैं, इस प्रसंग से आसानी से समझा जा सकता है. कन्हैया कुमार ने युवा कांग्रेस के बैनर तले बिहार में ‘पलायन रोको नौकरी दो’ यात्रा निकाली. 16 मार्च 2025 को पश्चिम चम्पारण जिले के भीतिहरवा से निकली यह यात्रा 07 अप्रैल 2025 को बेगूसराय पहुंची. वहां राहुल गांधी ने उसका नेतृत्व किया.
चिंता इस बात को लेकर हुई
बस इसी आधार पर कन्हैया कुमार को बेगूसराय से कांग्रेस का उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा चल पड़ी. बेगूसराय से कांग्रेस की उम्मीदवारी बिहार प्रदेश महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष व पूर्व विधायक अमिता भूषण (Amita Bhusan) को मिलती रही है. 2015 में उनकी जीत भी हुई थी. 2020 में वह 04 हजार 554 मतों से मात खा गयी थीं. कन्हैया कुमार की बेगूसराय से उम्मीदवारी की चर्चा ने अमिता भूषण में मायूसी भर दी. ऐसा नहीं कि कांग्रेस में अमिता भूषण की अपनी कोई वकत नहीं है. करीब के लोगों की मानें, तो सोनिया गांधी (Soniya Gandhi), प्रियंका गांधी और राहुल गांधी (Rahul Gandhi) तीनो से उनका सीधा संपर्क है. लेकिन, चिंता उनको इस बात की हुई कि कन्हैया कुमार की उम्मीदवारी के सवाल पर यह संपर्क कोई काम नहीं आता.
नहीं उठाना चाहते कोई जोखिम
अब वह खतरा करीब-करीब टल गया है. अंधेरा छंट गया है. महागठबंधन की राजनीति में कोई ज्यादा उलटफेर नहीं होने पर बेगूसराय से अमिता भूषण की कांग्रेस की उम्मीदवारी तय मानी जा सकती है. कन्हैया कुमार को विधानसभा के चुनाव में उम्मीदवार नहीं बनाये जाने की संभावना को लगातार दो संसदीय चुनावों में हुई उनकी हार से भी जोड़ कर देखा जा रहा है. वह 2019 में बेगूसराय से भाकपा और 2024 में दिल्ली से कांग्रेस के उम्मीदवार थे. दोनो चुनावों में मुंह की खा गये. कांग्रेस नेतृत्व की समझ है कि कन्हैया कुमार को विधानसभा के चुनाव में उम्मीदवार बनाया गया और गति पूर्व जैसी ही हुई तो फिर उनके राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग जा सकता है. कहते हैं कि इसी समझ के तहत कन्हैया कुमार भी कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं.
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