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सीमांचल की सत्ता सियासत : खुद को तिरस्कृत महसूस कर रहा यह समुदाय

अशोक कुमार
12 जून 2025
Purnia : भूतकाल में ऐसा कभी हुआ हो तो वह नहीं मालूम, वर्तमान में सीमांचल (Seemanchal) का मुस्लिम समुदाय सत्ता और सियासत में खुद को तिरस्कृत महसूस कर रहा है तो उसका ठोस आधार है. एक तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की सरकार में उसकी कोई नुमाइंदगी नहीं है और दूसरा सरकारी बोर्डों और आयोगों में प्रतिनिधित्व के मामले में भी इसकी उपेक्षा कर दी गयी है. अब यह वक्फ बोर्ड कानून (Wakf Board Act) के खिलाफ उफनाये गुस्से का प्रतिशोध है या मुसलमानों के समर्थन की जरूरत नहीं का अघोषित इजहार, सीमांचल की तकरीबन 47 प्रतिशत मुस्लिम आबादी को शून्य में छोड़ दिया गया है.

मुस्लिम के रूप में नहीं

कल की तारीख में परिदृश्य बदल जाये तो वह अलग बात होगी, जानकारों के मुताबिक अभी तक पुनर्गठित बोर्डों और आयोगों में किसी में भी सीमांचल के मुसलमान को जगह नहीं मिली है. और की बात छोड़ दें, राज्य अल्पसंख्यक आयोग (State Minority Commission) और बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड (Bihar Madrasa Education Board) मुस्लिम समुदाय के लिए अपेक्षाकृत अधिक महत्व रखतें हैं. इन दोनों में भी समान सौतेला व्यवहार हुआ है. पुनर्गठित राज्य अल्पसंख्यक आयोग में किशनगंज (Kishanganj) को प्रतिनिधित्व मिला है. एक नहीं दो, पर मुस्लिम के रूप में नहीं. सिर्फ किशनगंज ही नहीं, संपूर्ण सीमांचल के मुस्लिमों से परहेज बरता गया है.

सदस्य भी नहीं बनाया गया

राज्य अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष के अलावा दो उपाध्यक्ष और आठ सदस्य है. वक्फ कानून के खिलाफ उठे बवंडर के मद्देनजर सीमांचल के बड़े कद वाले किसी मुस्लिम नेता को बड़ा पद मिलने के कयास लगाये जा रहे थे. विडम्बना देखिये, बड़े पद की बात दूर, सदस्य भी नहीं बनाया गया. राज्य अल्पसंख्यक आयोग में अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी ‘पटना निवासी’ वरिष्ठ जदयू (JDU) नेता मौलाना गुलाम रसूल बलियावी (Maulana Ghulam Rasool Baliavi) को दी गयी. वक्फ कानून के खिलाफ आग उगलने वाले मौलाना गुलाम रसूल बलियावी के एनडीए (NDA) की सरकार में अध्यक्ष पद संभालने पर मुस्लिम समुदाय में तीखी प्रतिक्रिया हुई. सत्तालोलुप तक कह दिया गया. कोई असर नहीं पड़ा.

आठ सदस्यों में पांच मुस्लिम

राज्य अल्पसंख्यक आयोग के दो उपाध्यक्षों में एक किशनगंज के हैं – लखविंदर सिंह लख्खा (Lakhwinder Singh Lakhkha). वैसे, इनका ठिकाना पटना साहिब (Patna Sahib) में भी है. दूसरे उपाध्यक्ष मुस्लिम हैं – गयाजी (Gayaji) के मौलाना उमर नूरानी (Maulana Umar Noorani). इनका जुड़ाव भी जदयू से है और भूमिका मौलाना गुलाम रसूल बलियावी से मिलती – जुलती रहती है. पिछली बार उपाध्यक्ष का पद पूर्व मंत्री नौशाद आलम (Naushad Alam) को मिला था, जो किशनगंज जिले के ठाकुरगंज (Thakurganj) के रहने वाले हैं. नवनियुक्त आठ सदस्यों में पांच मुस्लिम हैं. मुंगेर (Munger) के प्रोफेसर अजफर शमशी (Professor Azfar Shamshi), नवादा (Nawada) की अफरोजा खातून (Afroja Khatoon), सीवान (Siwan) के अशरफ अली अंसारी (Ashraf Ali Ansari), जहानाबाद (Jehanabad) के मोहम्मद शमशाद आलम उर्फ मोहम्मद शमशाद साईं (Mohammad Shamashad Alam urph mohammad shamashaad saeen) और सारण (Saran) के तुफैल अहमद खान कादरी (Tufail Ahmed Khan Qadri). सीमांचल के किसी मुस्लिम को जगह नहीं मिली है. किशनगंज के शिशिर कुमार दास (Sisir Kumar Das) सदस्य बनाये गये हैं.

उठा था सवाल पात्रता पर

ऐसा ही कुछ बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड में हुआ है. सारण जिले के छपरा निवासी सलीम परवेज़ (Salim Pervez) की अध्यक्ष पद पर वापसी हो गयी है. सलीम परवेज़ बिहार विधान परिषद के उपसभापति रह चुके हैं. पिछली बार इनकी पात्रता पर सवाल उठा था. आगे क्या हुआ नहीं मालूम. ऐसा कहा जा रहा है कि वक्फ कानून के मामले में इनकी खामोशी को मुसलमानों ने काफी गंभीरता से ले रखा है. मौलाना गुलाम रसूल बलियावी की तरह वक्फ मामले में जदयू के विधान पार्षद खालिद अनवर (Khalid Anwar) भी खूब मुखर रहे हैं. खालिद अनवर पूर्वी चंपारण (East Champaran) जिले के रहने वाले हैं. इन्हें बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड का सदस्य बनाया गया है.

एक ही जगह के दो सदस्य

गौर करने वाली बात है कि इस बोर्ड में भी सीमांचल को जगह नहीं मिली, पर मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) से दो सदस्य बना दिये गये. वे बांके साह चौक चंदवारा के शब्बीर अहमद और पुरानी गुदरी रोड के खुर्शीद अनवर हैं. मधुबनी (Madhubani) के अब्दुल क्यूम (Abdul Qaum) भी सदस्य बने हैं. हर किसी को मालूम है कि मुसलमानों की बड़ी आबादी वाले सीमांचल में मदरसे ही मदरसे हैं. इस दृष्टि से बिहार मदरसा शिक्षा बोर्ड में शिक्षक प्रतिनिधि के तौर पर सीमांचल को प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी, लेकिन वैसा नहीं हुआ.

वहां भी सीमांचल नदारद

शिक्षक प्रतिनिधि के रूप में जगह इजहार अशरफ (Izhar Ashraf) और निजामुद्दीन अंसारी (Nizamuddin Ansari) को मिल गयी. इजहार अहमद समस्तीपुर (Samastipur) जिले के सरायरंजन (Sarayaranjan) थाना क्षेत्र के किशनपुर (Kishanpur) के हैं तो निजामुद्दीन अंसारी सीवान (Siwan) जिले के मैरवा (Mairwa) थाना क्षेत्र के लालगंज (Lalganj) के. कुछ मुसलमानों को दूसरे आयोगों में भी जगह मिली है. वहां भी सीमांचल नदारद है. मसलन रजिया कामिल अंसारी (Razia Kamil Ansari) को राज्य महिला आयोग (State Women Commission) का सदस्य बनाया गया है जो रोहतास (Rohtas) जिले की रहने वाली हैं. इसी तरह गया निवासी शौकत अली (Shaukat Ali) को बाल श्रमिक आयोग का सदस्य बनाया गया है.

भुगतना पड़ेगा खामियाजा

विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार की सरकार के ऐसे निर्णय का आधार जो हो, सीमांचल की चुनावी राजनीति पर इसका असर पड़ेगा. खामियाजा जदयू और भाजपा (BJP), दोनों को भुगतना पड़ेगा .

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