देवघर : मॉल और लॉज भी निगल रहे धर्मशालाओं को
विजय कुमार राय
30 अप्रैल 2025
Deoghar : देवघर में एक तरफ धर्मशालाएं (Dharamshalas) इतिहास के पन्नों में सिमट रही हैं तो दूसरी तरफ व्यावसायिक उद्देश्य से एक से बढ़कर एक होटल और लॉज खुल रहे हैं. कुकुरमुत्ते की तरह ‘आश्रम’ भी उग रहे हैं. सामुदायिक (विवाह) भवनों की अचानक बढ़ रही संख्या भी लोगों को हैरत में डाल रही है. कुछ लोगों का कहना है कि बिहार (Bihar) में पूर्ण शराबबंदी लागू होने से यहां इस व्यवसाय के फलने-फूलने का मजबूत आधार मिल गया है. जहां तक आश्रम-संस्कृति के विस्तार पाने की बात है तो आमतौर पर पहले इसके संचालक पंडा समाज के ही लोग हुआ करते थे. इधर के दिनों में पंडा समाज से बाहर के लोग भी लॉज और होटल के विकल्प के रूप में इसे अपनाने लगे हैं. ‘आश्रम’ की स्थापना में शायद करों में रियायत का प्रावधान है. कहा जाता है कि मुख्य रूप से इसी का लाभ उठाने के लिए ऐसा हो रहा है.
आश्रम में हैं सभी सुविधाएं
बाबा मंदिर (Baba Mandir) के इर्द-गिर्द पंडा समाज के ढेर सारे आवासीय परिसरों को ‘आश्रम’ का रूप दे दिया गया है. इसके अलावा शिवगंगा, पुराना मीना बाजार, मान सरोवर, हिन्दी विद्यापीठ, देवघर कालेज, रिखिया मार्ग, शंकर टॉकीज, वैद्यनाथ टॉकीज, वैद्यनाथपुर मार्ग, झौसागढ़ी, नरसिंह टॉकीज आदि के आसपास भी ‘आश्रम’ खुल गये हैं. लगभग हजार की संख्या में संचालित इन ‘आश्रमों’ की व्यवस्था अमूमन धर्मशाला सरीखी है. अंतर इतना है कि ‘आश्रम’ का कमरा प्रतिदिन के भाड़े के हिसाब से उपलब्ध कराया जाता है. कई ऐसे भी आश्रम हैं जहां उच्चस्तरीय होटलों के समान सुविधाएं उपलब्ध हैं.

तय हैं सुविधाओं के अलग-अलग शुल्क
ऐसे आश्रमों के रूप में पंडा आश्रम, साइ आश्रम, अग्रहरि आश्रम, कौशल्या आश्रम आदि के नाम खूब लिये जाते हैं. पंडा-पुरोहित बाबा दर्शन-पूजन के लिए आये अपने यजमानों को रहने-सहने और खाने-पीने की सुविधाएं पहले भी उपलब्ध कराते थे. परन्तु, उसका घोषित तौर पर शुल्क नहीं लेते थे. पूजा-पाठ की दक्षिणा के रूप में यजमान इतनी राशि अवश्य दे दिया करते थे जिसमें उनके ‘आतिथ्य’ का खर्च आराम से निकल जाया करता या. ‘आश्रम’ में सब कुछ उपलब्ध है, परन्तु उसका अलग-अलग शुल्क तय है. यजमान जिन सुविधाओं का उपभोग करते हैं उनका उन्हें निर्धारित शुल्क अदा करना पड़ता है. पूजा-पाठ की दक्षिणा तो अपनी जगह है ही.
होटलों की भी हैं समस्याएं
जानकारों का कहना है कि धर्मशाला-संस्कृति (Dharmashala-Sanskrti) जब जड़ जमाये हुए थी तब होटल व्यवसाय (Hotel business) सिमटा-सिकुड़ा था. बताया जाता है कि अब यह शहर का बहुत बड़ा व्यवसाय बन गया है, निरंतर विस्तार हो रहा है. शहर के पुराने अच्छे होटलों में टावर चौक (Tower Chowk) पर स्थित यात्रिक होटल (Yatri Hotel) का काफी नाम है. उसके बगल में बसेरा होटल है. बसेरा से सटा अमन होटल है. एक समय में इन होटलों की अपनी खास पहचान थी. अब कई और अच्छे होटल खुल गये हैं, कुछ स्टार होटल भी. वैसे, होटलों के खुलने का सिलसिला तो बना हुआ है, पर इसका व्यवसाय पूर्व जैसा नहीं रह गया है. देवघर चैम्बर आफ कामर्स (Deoghar Chamber of Commerce) तथा होटल ऑनर वेलफेयर असोसिएशन के सचिव जीवन प्रकाश का कहना है कि मंदिर परिसर के इर्द-गिर्द सैकड़ों की संख्या में खुले लॉज (lodge) एवं आश्रमों (Ashrams) के कारण ऐसा हो रहा है. सामुदायिक (विवाह) भवनों की लगातार बढ़ रही संख्या का भी असर है. उनका मानना है कि देवघर में साजिश के तहत धर्मशालाओं का वजूद मिटाया जा रहा है.