निशांत कुमार : शायद ही उठायें हरनौत से चुनाव लड़ने का जोखिम

अरुण कुमार मयंक
16 जून 2025
Biharsharif : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के इकलौते पुत्र निशांत कुमार (Nishant Kumar) सियासत में सक्रिय होंगे? सक्रिय होंगे तो क्या विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे? अगर लड़ेंगे तो किस विधानसभा क्षेत्र से? सियासी सक्रियता पर मौन साध रखे निशांत कुमार की इधर के दिनों में बढ़ी सामाजिक सक्रियता के परिप्रेक्ष्य में ये सवाल फिर से राजनीतिक गलियारे में जवाब तलाश रहे हैं. यह भी कि निशांत कुमार चुनाव लड़ने का मन बनाते हैं तो क्या पिता की तरह हरनौत (Harnaut) से ही संसदीय जीवन की शुरुआत करेंगे? निशांत कुमार चुनाव लड़ेंगे, इस पर संशय अभी खत्म नहीं हुआ है.
दूसरा कोई नहीं
वैसे, ज्यादा संभावना निशांत कुमार के चुनाव नहीं लड़ने की ही है. अगर लड़ते हैं, तो विधानसभा क्षेत्र हरनौत ही होगा, दूसरा कोई नहीं. हरनौत इसलिए कि यह नीतीश कुमार का गृह विधानसभा क्षेत्र है. नालंदा (Nalanda) जिले के तीन प्रखंड-चंडी (Chandi), हरनौत (Harnaut) और नगरनौसा इसके क्षेत्राधिकार में हैं. 1974 के छात्र आंदोलन और फिर जयप्रकाश आंदोलन में अहम भूमिका निभाने के बाद नीतीश कुमार ने अपने संसदीय जीवन की शुरुआत इसी विधानसभा क्षेत्र से की थी. 1977 में संपूर्ण क्रांति की कोख से निकली जनता पार्टी (Janata Party) की उम्मीदवारी मिली थी. जीत दुर्भाग्यवश दूर रह गयी थी.
जदयू का अभेद्य किला
इस संदर्भ में दिलचस्प तथ्य यह कि गृह क्षेत्र में भी पांव जमाने में उन्हें 22 वर्षों का लम्बा वक्त लग गया. हालांकि, बाद में वक्त बदला तब सन 2000 से हरनौत जदयू (JDU) का अभेद्य किला बना हुआ है. पर, शुरू के दो चुनावों में खुद नीतीश कुमार को ही मुंह की खानी पड़ गयी थी. 1977 में समाजवादी नेता भोला प्रसाद सिंह (Bhola Prasad Singh) और 1980 में अरुण कुमार सिंह (Arun Kumar Singh) ने उनके मंसूबों को अच्छी तरह से धो दिया 1985 में नीतीश कुमार की पहली जीत हुई. करीब रहने वाले लोग बताते हैं कि1985 में भी हार जाते तो उनकी जिन्दगी में दूसरा मोड़ आ जाता. लगातार दो चुनावों में हार से वह इतने विचलित हो गये थे कि तीसरी हार की स्थिति में राजनीति से तौबा कर लेते. देव योग से वह नौबत नहीं आयी.

खुद को अलग कर लिया
तीसरे चुनाव में जीत से किस्मत के द्वार ऐसे खुल गये कि उनकी कामयाबियां इतिहास का एक चमकदार अध्याय बन गयीं. दूसरी जीत 1995 में मिली. उसके बाद विधानसभा चुनाव से उन्होंने खुद को अलग कर लिया. वर्तमान में हरनौत विधानसभा क्षेत्र से सीधे तौर पर उनका कोई जुड़ाव नहीं है. पर, इस क्षेत्र के भाग्य नियंता वही हैं. मर्जी उन्हीं की चलती है. नीतीश कुमार ने कभी ऐसी कोई बात नहीं कही है, तब भी लोग समझते हैं कि खुद की तरह पुत्र निशांत कुमार को भी हरनौत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा राजनीति में प्रवेश कराने की वह मंशा रखते हैं.
हां कह दें, किला फतह
यहां यह समझने की भी जरूरत है कि चुनाव लड़ने का निर्णय निशांत कुमार को करना है. बाकी सब नीतीश कुमार के हाथ में है. निशांत कुमार हां कह दें तो फिर किसी से कुछ कहने- सुनने और पूछने की जरूरत नहीं. किला फतह! पर, राजनीतिक और सामाजिक समीकरण बेहद अनुकूल रहने के बावजूद ‘आश्वस्ति’ में ‘भय’ जगह बनाये हुए है. कहीं हार गये तब! भय की वजह संभवतः 1977 और 1980 का कसैला अनुभव है. हालांकि, तब और अब में आकाश जमीन का अंतर है. उस वक्त नीतीश कुमार नवसिखुआ थे. राजनीति में पांव जमा रहे थे. मौजूदा समय में स्थापित नेता ही नहीं, सत्ता और सियासत के सिरमौर हैं.
जरूरत महसूस हुई तब…
विश्लेषकों का मानना है कि हरनौत में निशांत कुमार ही नहीं, जो कोई भी नीतीश कुमार का नुमाइंदा होगा, कोई अनहोनी नहीं होने पर जीत उसी की होगी. इसके बाद भी जदयू निशांत कुमार को हरनौत के अखाड़े में उतारने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है. चुनाव बाद के हालात में जरूरत महसूस होने पर नीतीश कुमार की तरह उन्हें भी विधान परिषद की सदस्यता हासिल करायी जा सकती है.
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