पप्पू देव के ‘अदृश्य’ रहने का रहस्य क्या?
तेजस्वी ठाकुर
06 अगस्त, 2021
सहरसा. पप्पू देव का नाम अवश्य सुना होगा. वही पूर्वोत्तर बिहार के दुर्दांत पप्पू देव. वर्तमान में उन्हें और उनके परिजनों-समर्थकों को यह अटपटा और बकवास लग सकता है,पर भुक्तभोगियों का अनुभव बताता है कि ‘जंगलराज’ वाले कालखंड में जन सामान्य में उनका आतंक इस कदर जगह बनाये हुए था कि सिर्फ कोशी अंचल और सीमांचल में ही नहीं, उत्तर बिहार के अन्य कुछ जिलों के साथ नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में भी रोते बच्चों को मांएं उनका नाम लेकर चुप करातीं और सुलाती थीं….चुप हो जा नहीं तो पप्पू देव आ जायेगा! वह आतंक आजकल कहां है, कर क्या रहा है? यह जानने-समझने की जिज्ञासा हर किसी की होगी. बात तकरीबन दो दशक पहले की है. बिहार में सरगनाओं के बीच गैंगवार चरम पर था. पप्पू देव भी कथित रूप से उसके एक खूंख्वार किरदार थे. संयोग कहें या प्रतिद्वंद्वियों से प्राण बचाने की रणनीति, उसी दौरान अनैतिक-अवैध कारनामों को लेकर 2003 में नेपाल के औद्योगिक क्षेत्र विराटनगर के आसपास वह पुलिस के हत्थे चढ़ गये. कहा जाता है कि उनकी गिरफ्तारी 50 लाख से अधिक जाली भारतीय मुद्रा के साथ हुई थी. 6 जनवरी 2014 तक वहां की जेल में रहे. सजा पूरी होने पर काफी मशक्कत से मुक्ति मिली. इत्मीनान की सांस गहराती इससे पहले दर्जनाधिक संगीन मामलों के सिलसिले में बिहार की पुलिस ने उत्तर प्रदेश की पुलिस के सहयोग से 24 जनवरी 2014 को नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र पलवा में उन्हें दबोच लिया. तकरीबन पौने छह वर्षों तक जेल की रोटियां तोड़ने के बाद 3 सितम्बर 2019 को जमानत पर खुली हवा में सांस लेने की आजादी मिल गयी. इस बीच सलाखों के पीछे रहने के दौरान भी अनेक आपराधिक वारदातों की साजिश रचने के आरोप लगते रहे. जेल के अंदर सजायाफ्ता पूर्व बाहुबली सांसद आनंद मोहन से हिंसक टकराव को सुर्खियां मिलती रही. इन सबके मद्देनजर जेल से निकलने के बाद खूंख्वारियत का रंग फिर से गाढ़ा पड़ जाने की आशंका गहरा गयी थी. भय फैल गया था कि खून-खराबे का वही खतरनाक दौर फिर शुरू हो जायेगा जिससे बड़ी मुश्किल से त्राण मिला था. लेकिन, आश्चर्यजनक ढंग से वह आशंका निर्मूल साबित हुई, भय भी मिट गया. कारण कि खुली हवा में आने के बाद से पप्पू देव लगभग अदृश्य’ हैं. सार्वजनिक रूप से वह कभी- कभी ही दिखाई पड़ते हैं. न कोई राजनीतिक गतिविधियां और न इधर – उधर की खुली हरकतें. लोग चर्चा करते हैं कि कुछ तो बढ़ी उम्र का असर है और कुछ पत्नी पूनम देव का सकारात्मक प्रयास, पप्पू देव ने उस दुनिया से मुंह फेर लिया है जहां कथित रूप से समृद्धि तो मिली,पर उससे अधिक सभ्य समाज से मुंह बचाने की बदनामी मिल गयी. राजनीति में हाथ-पांव मार पूनम देव पटना में रह देव कंस्ट्रक्शन का संचालन करती हैं. पप्पू देव का कुछ समय वहां भी बीतता है. कुछ लोगों का कहना है कि जान बचाने के लिए वह एकांतवास में हैं. हकीकत क्या है, यह नहीं कहा जा सकता. वैसे, एक चर्चा यह भी है कि फिलहाल वह पैतृक गांव बिहरा में रह ‘आतंककाल में अर्जित मिल्कियत’ सहेजने-समेटने में जुटे हैं. खास कर उस जायदाद को जिस पर उनके जेल में रहने के दौरान अपने-पराये दबंगों ने कब्जा जमा लिया था. बताया जाता है कि ऐसी कुछ जायदाद सहरसा में भी है. उसे हासिल करने की कोशिश खूनी टकराव की नयी बुनियाद डाल दे तो वह हैरान करने वाली कोई बात नहीं होगी. बहरहाल, 2020 के विधानसभा चुनाव में खगड़िया जिले के परबत्ता से राजद की उम्मीदवारी पाने में नाकामयाब रहने के बाद पप्पू देव ब्रह्मर्षि बहुल बेगूसराय-खगड़िया स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद का चुनाव लड़ने को मन बनाये हुए है. उस क्षेत्र से भाजपा के रजनीश कुमार निर्वाचित होते हैं जो बेगूसराय के रहने वाले हैं.