उपमुख्यमंत्रियों से पिंड छुड़ाने के फिराक में भाजपा
विशेष प्रतिनिधि
28 अगस्त 2021
नयी दिल्ली. नवम्बर 2020 में नयी सरकार के गठन के वक्त भाजपा में सुशील कुमार मोदी की उपमुख्यमंत्री पद से रुखसती हुई. अंदरूनी कारण नरेंद्र मोदी के समानांतर नीतीश कुमार को कभी ‘पीएम मैटेरियल’ बताया जाना रहा. पर, इस ‘प्रतिशोधी कार्रवाई’ को बड़ी चतुराई से सवर्ण तुष्टिकरण से जोड़ दिया गया. लेकिन, सुशील कुमार मोदी के ‘स्थानापन्न’ की बात आयी, तो सवर्ण पूर्व की तरह हाशिये पर छोड़ दिये गये. कनफूसकियों में कहा गया कि सुशील कुमार मोदी ‘बगावत’ न कर दें इसलिए उनकी मर्जी के अनुरूप उत्तराधिकारी का चयन हुआ, एक नहीं दो-दो उत्तराधिकारी! हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि इस चयन में सुशील कुमार मोदी की कोई भूमिका नहीं रही. सच क्या है, यह नहीं कहा जा सकता. उपमुख्यमंत्री के रूप में सुशील कुमार मोदी के विकल्प के तौर पर शाहनवाज हुसैन और फिर कामेश्वर चैपाल के नाम की खूब चर्चा हुई थी. तर्क परोसा जाने लगा था कि शाहनवाज हुसैन को इसी उद्देश्य से बिहार की राजनीति में लाया गया है. कामेश्वर चैपाल को अतिपिछड़ा को महत्व देने के नजरिये से देखा गया. उधर सुशील कुमार मोदी विरोधी खेमे से दो नाम उछल रहे थे. केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह और केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के. गिरिराज सिंह के नाम में धरातलीय सच से अधिक हवाबाजी थी. नित्यानंद राय के लिए भाजपा के बिहार प्रभारी केन्द्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री भूपेन्द्र यादव जोर लगा रहे थे. किसी को कोई सफलता नहीं मिली. अवसर कटिहार के विधायक तारकिशोर प्रसाद और बेतिया की विधायक रेणु देवी को मिल गया जिनमें विश्लेषकों की नजर में लम्बे समय से विधायक रहने के अलावा उपमुख्यमंत्री का पद पाने लायक कोई खासियत नहीं थी. आठ-सवा आठ माह के अब तक के कार्यकाल में भी वैसा कोई निखार नहीं आया है. अवसर की उपलब्धता की सार्थकता सिद्ध करने वाली कोई छोटी-मोटी उपलब्धि भी नहीं है. ऐसे चयन से उस वक्त बिहार की जनता चकित हुई थी, अब भाजपा नेतृत्व माथा पकड़े हुए है. तारकिशोर प्रसाद वैश्य और रेणु देवी नोनिया बिरादरी से हैं. दोनों भाजपा समर्थक सामाजिक समूह माने जाते हैं. इन दोनों को पदमुक्त कर भाजपा समर्थक सामाजिक समूहों की नाराजगी मोल लेना नहीं चाहेगी. दूसरी तरफ दिक्कत यह है कि इन्हें पद पर बनाये रखने से उसकी रणनीति कारगर नहीं हो पायेगी. भाजपा नेतृत्व फिलहाल इसी पशोपेश में उलझा है. वैसे, कुछ मुद्दों को लेकर राजग की राजनीति में जो अंदरूनी उबाल जगह बनाये हुए है वह तात्कालिक तौर पर इस दुविधा से उसे उबार दे सकता है. इस रूप में कि जद(यू) 2013 की तरह भाजपा से अलग राह बनाने के करीब पहुंच गया है. जद(यू) अलग हुआ, तो सारा झंझट खत्म. इस बीच एक चर्चा यह भी है कि सुशील कुमार मोदी को राज्य की राजनीति में वापसी करा सभी समस्याओं का एकमुश्त समाधान निकालने की पहल भाजपा नेतृत्व कर सकता है. (समाप्त)