कटिहार: किस पर लगायेगी भाजपा अपना दांव?
अशोक कुमार
27 मई 2023
Katihar : कटिहार संसदीय क्षेत्र में कभी लगातार तीन चुनावों में कमल खिलाने वाली भाजपा (BJP) की दो चुनावों के अंतराल के बाद इस बार वापसी हो पायेगी? गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने बिहार के जिन दस संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों को भाजपा के लिए अतिमहत्वपूर्ण के रूप में चिह्न्ति कर रखा है उनमें संभवतः कटिहार भी है. इसी को दृष्टिगत रख बिहार में 2024 के चुनाव अभियान का अघोषित आगाज उन्होंने पूर्णिया से किया थ . तो क्या अमित शाह की यह मंशा कटिहार में फलीभूत हो पायेगी? इन दिनों स्थानीय राजनीति में चर्चा का यह भी एक महत्वपूर्ण विषय बना हुआ है. स्वजातीय मतों की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम रहने के बावजूद 1999, 2004 और 2009 में भाजपा उम्मीदवार के तौर पर निखिल कुमार चौधरी (Nikhil Kumar Chaudhary) की जीत हुई थी . मुस्लिम मतों में विभाजन और दूसरे समुदाय के मतों के ध्रुवीकरण का पूरा लाभ मिला था. पर, 2014 में आश्चर्यजनक ढंग से वह तिलिस्म टूट गया. जदयू के राजग से अलग स्वतंत्र चुनाव लड़ने से समीकरण पूरी तरह बदल गया. जीत जदयू (JDU) की नहीं हुई, पर प्रचंड ‘मोदी लहर’ में भी भाजपा को हार का स्वाद चखना पड़ गया.
महागठंधन का क्या होगा?
2014 में पांव भाजपा के ऐसे उखड़ गये कि 2019 में इस क्षेत्र को उसे जदयू की जिद को समर्पित कर देना पड़ा. यह भी कहा जा सकता है कि ऐसा करने को उसे बाध्य कर दिया गया. भाजपा के आधार मतों की बदौलत जदयू काबिज भी हो गया. वर्तमान में जदयू भाजपा से अलग महागठबंधन (Mahagathbandhan) का हिस्सा है. यहां यह जानने की जरूरत है कि 2019 में जदयू रहित महागठबंधन में कटिहार की सीट कांग्रेस (Congress) के कोटे में थी . पूर्व सांसद तारिक अनवर (Tariq Anwar) उम्मीदवार थे. इस बार भी उनकी वैसी ही मजबूत दावेदारी है. वैसे, नजर कटिहार मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के प्रबंध निदेशक राजद (RJD) सांसद अशफाक करीम (Ashfaq Karim) ने भी जमा रखी है. ऐसे में महागठबंधन में क्या होगा? तारिक अनवर की दावेदारी को अहमियत मिलेगी या अशफाक करीम को अवसर उपलब्ध करा दिया जायेगा या फिर ‘सिटिंग गेटिंग’ के फार्मूले पर अमल होगा, यह भी एक बड़ा सवाल है.
उम्मीदवार भाजपा का होगा
बहरहाल, एक समुदाय विशेष को लुभाने के लिए जदयू ने जिस ढंग से पैंतरा बदला है उसके मद्देनजर वर्तमान सांसद दुलालचंद गोस्वामी (Dulalchand Goshwami) की बेदखली की ही आशंका गहराई हुई है. वैसे भी दुलालचंद गोस्वामी की खातिर कांग्रेस के कद्दावर नेता तारिक अनवर या फिर अशफाक करीम के हितों की बलि चढ़ा देना किसी भी दृष्टि से महागठबंधन के हित में नहीं होगा, ऐसा राजनीति के विश्लेषकों का मानना है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कोई जिद ठान लें तो वह अलग बात होगी. लोग यह भी जानना चाहेंगे कि उम्मीदवारी की बाबत राजग (NDA) में क्या होगा? किस घटक दल के हिस्से में यह सीट जायेगी? 2019 के हालात के मद्देनजर ऐसे सवाल तो उठते हैं, पर यह करीब-करीब तय है कि उम्मीदवार भाजपा का ही होगा. दूसरे किसी सहयोगी दल में कोई दमखम नहीं है.
भाजपा में हैं तीन दावेदार
प्रश्न अब यह कि भाजपा (BJP) उम्मीदवार किसको बनायेगी? कोई जोखिम नहीं उठा पूर्व सांसद निखिल कुमार चौधरी को ही अवसर उपलब्ध करायेगी या किसी नये चेहरे पर दांव खेलेगी? निखिल कुमार चौधरी की संभावना समाप्त नहीं हुई है, पूर्व की तरह बनी हुई है.इस रूप में भी कि 2019 में मायूस कर दिये जाने के बाद भी वह पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे. स्थानीय दो बड़े नेताओं की अलग-अलग मजबूत दावेदारी से उनकी उम्मीदों पर पानी फिर जाये तो वह अलग बात होगी. दो बड़े नेताओं में एक पूर्व उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद (Tarkishor Prasad) हैं. सामान्य समझ में उपमुख्यमंत्री के रूप में उनका कोई प्रभावशाली कार्यकलाप नहीं रहा.
देखना दिलचस्प होगा
तारकिशोर प्रसाद की दावेदारी का मुख्य आधार कटिहार विधानसभा क्षेत्र (Katihar Assembly Constituency) के चार चुनावों में लगातार जीत है. वैसे, संसदीय चुनाव लड़ने में वह हर दृष्टि से सक्षम- समर्थ माने जाते हैं. राजनीतिक के साथ-साथ सामाजिक समीकरण भी अपेक्षाकृत अनुकूल माना जाता है. चुनाव में इसका लाभ उन्हें मिल सकता है. दूसरे दमदार दावेदार विधान पार्षद अशोक अग्रवाल (Ashok Agrawal) हैं. अपने दम पर तीन बार कटिहार स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद निर्वाचित हुए हैं. यह भी संसदीय चुनाव लड़ने की आर्थिक-सामाजिक हैसियत रखते हैं. परिस्थितियों को अपने पक्ष में मोड़ने की काबिलियत भी इनमें है. राजनीति ऐसा महसूस करती है. वैसे तो दावेदारी और कई की भी है, पर सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व फिलहाल इन्हीं तीन नामों पर विचार कर रहा है. किस्मत खिसकी खुलती है, देखना दिलचस्प होगा.
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