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नालंदा जिला परिषद : पूनम ने बटोर ली बेन में चांदनी !

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डा. अरुण कुमार मयंक
29 अक्तूबर 2021

BIHARSHARIF : बड़ी उम्मीद थी. सिकुड़ कर शून्य में समायी राजनीति को नया उभार मिलने की. लगातार कई हार का दाग चिपकाये खुद दीर्घकाल से हाशिये पर ठंडी आहें भर रहे हैं. न जनाधार रह गया है और न बाहुबल में पूर्व जैसा दम. इस कारण मुख्य धारा में उनके लौटने की कोई संभावना बची नहीं है.

2020 के  विधानसभा चुनाव के दौरान पुत्री की अचानक  बढ़ी सक्रियता से थोड़ी आस जगी थी. लेकिन, वह भी टिमटिमा कर रह गयी. गहराये सियासी सन्नाटे को तोड़ने के लिए  जिला परिषद के चुनाव में पुत्रवधू को मैदान में उतारा. दुर्भाग्य का पीछा नहीं छूटा. उम्मीदों की कोपलें नहीं फूटीं. पुत्रवधू चुनाव में पार नहीं पा सकीं. मझधार में अटक गयीं.

पुत्र भी मैदान में

पुत्र भी मैदान -ए – जंग में हैं. जिला परिषद का ही चुनाव लड़ रहे हैं. उनकी किस्मत कैसी निकलती है, यह जानने- समझने के लिए थोड़ा इंतजार करना होगा. वहां 3 नवम्बर 2021को चुनाव होना है. पुत्रवधू की निराशाजनक उपलब्धि पुत्र से बेहतरी की आस नहीं जगाती है. अंधेरा ही अंधेरा!

कहानी रामनरेश  सिंह की 

कहानी है यह नालंदा (Nalanda) के पूर्व बाहुबली विधायक रामनरेश सिंह (Ramnaresh Singh) की. उनकी पुत्रवधू रानी सिंह (Rani Singh) नालंदा जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्र संख्या 13- बेन से उम्मीदवार थीं. शुरुआती चुनाव अभियान से लगा कि रामनरेश सिंह और उनके परिवार की राजनीति के अच्छे दिन दस्तक दे रहे हैं. कुछ लोग यहां तक मानने लग गये थे कि रानी सिंह बेन में कामयाबी का धाजा (ध्वज) गाड़ ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार (Sharavan Kumar) के लिए भविष्य की चुनौती बन जा सकती हैं.

बेन श्रवण कुमार का गृह गांव व प्रखंड दोनों है. नालंदा (Naland) विधानसभा क्षेत्र के तहत आता है जहां से श्रवण कुमार जदयू के विधायक निर्वाचित होते हैं. बहुत पहले एक – दो बार रामनरेश सिंह इस क्षेत्र से विधायक बने थे. तब उनके बाहुबल में काफी जोर था. जाति का भी भरपूर समर्थन था. अपनी उसी विरासत को संभालने के लिए उन्होंने पुत्रवधू रानी सिंह को राजनीति में उतारा है. पुत्र राजा प्रियतम बिहारशरीफ में भाग्य आजमा रहे हैं.

श्रवण कुमार का भी नहीं चला

जिला परिषद निर्वाचन क्षेत्र संख्या13- बेन के चुनाव में ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार का कुछ नहीं चल पाता है. हो सकता है वह खुद रुचि नहीं लेते हों. चुनावों में गैर जदयू(jdu) दल के समर्थक की जीत होती रही है. इस बार भी वैसा ही हुआ. जदयू और श्रवण कुमार  समर्थक परिवार की अर्चना कुमारी जीत नहीं पायीं. दूसरे स्थान पर अटक गयीं.

जीत पूनम सिन्हा  (Punam Sinha) की हुई. वह लोजपा (ljp) समर्थक डा. विनोद कुमार मुक्ता की पत्नी हैं. 844 मतों से पिछड़ गयीं अर्चना कुमारी के पति राकेश कुमार रेलवे में इंजीनियर हैं. 2016 में राजद समर्थक अनिल कुमार की पत्नी चन्द्रकला कुमारी की जीत हुई थी. इस बार 5 हजार 185 मत प्राप्त कर वह तीसरे स्थान पर लुढ़क गयीं.

आठवें स्थान पर रहीं 

पूर्व विधायक रामनरेश सिंह की पुत्रवधू रानी सिंह 2 हजार 161 मत ही बटोर पायीं. कुर्मी बहुल इस क्षेत्र में मतों के भारी विभाजन के बावजूद वह आठवें स्थान पर रहीं. नवनिर्वाचित जिला पार्षद पूनम सिन्हा छोटी आंट गांव की हैं. इसी गांव के धनंजय कुमार मुखिया पद के उम्मीदवार थे. काफी लोकप्रिय रहने के बावजूद दुर्भाग्यवश उनकी जीत नहीं हो पायी. इस कारण लोग खुले दिल से पूनम सिन्हा की जीत का जश्न नहीं मना पाये.

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