आरसीपी सिंह : असली पाला तो अब पड़ रहा पालिटिशियन से
विशेष प्रतिनिधि
05 दिसम्बर, 2021
PATNA. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) मौज ले रहे हैं. दूसरी पार्टी में उन्हें मौज लेने का मौका नहीं मिल रहा है. मौका तलाश भी नहीं रहे हैं. सो, बैठे ठाले अपनी पार्टी के नेताओं को लड़ा-भिड़ा कर मौज ले रहे हैं. आमलोग बहुत कुछ यही समझ रहे हैं. अभी आरसीपी सिंह (RCP Singh) मुख्य अतिथि बने हुए हैं. केंद्र में मंत्री (Minister) बनकर वह समझने लगे थे कि जहान जीत लिया है.
बोले, खूब बोले
स्वागत समारोह के दौर में खूब बोले. पार्टी की बैठक में भी खूब बोले. बोलने का निहितार्थ यही था कि BJP से अलगाव के बारे में सोचना भी नहीं चाहिये. संबंध बना कर रखना चाहिये. इस कथन पर राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh urf Lalan Singh) ने चुटकी ली – पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश सहित कुछ और राज्यों में विधानसभाओं का चुनाव लड़ना पड़ेगा. उत्तर प्रदेश में भी लड़ेंगे. आरसीपी सिंह (RCP Singh) से भाजपा के नेताओं की अच्छी पटती है. अच्छा होगा कि वह (आरसीपी सिंह) भाजपा के प्रभावशाली नेताओं से बातचीत कर कुछ सीट ले आयें.
मिल गया टास्क
उस समय पार्टी नेताओं ने समझा कि अध्यक्ष ऐसे ही कुछ बोल रहे हैं. वह भला क्यों चाहेंगे कि आरसीपी सिंह भाजपा से बात करें. बेशक उस समय ललन सिंह मजा लेने के लिए बोल रहे थे. लेकिन, नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने गंभीरता से लिया. बाजाप्ता आधिकारिक तौर पर आरसीपी सिंह (RCP Singh) को टास्क दे दिया गया. भाजपा से बातचीत कर सीट दिलाने का टास्क. कम से कम 20 सीट मिल जाये. 13 पर जीत हो जाये तो JDU को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में मदद मिलेगी.
आरसीपी सिंह कभी पालिटिशियन नहीं रहे हैं. यकीन मानिये, उन्हें पालिटिशियन से असली पाला केन्द्र में मंत्री बनने के बाद ही पड़ रहा है.
तब क्या होगा?
आरसीपी सिंह कोशिश कर रहे हैं. रिजल्ट पहले से आउट है. उत्तर प्रदेश में भाजपा किसी सहयोगी पार्टी के लिए 20 सीट छोड़ दे, यह असंभव है. दो-चार सीट देने का कोई मतलब नहीं है. तब पार्टी अपने दम पर अधिक सीटों पर लड़ेगी. आरसीपी सिंह को कहा जायेगा कि उत्तर प्रदेश में पार्टी उम्मीदवार के लिए प्रचार कीजिये. उत्तर प्रदेश आपका है. आप वहां अफसर रहे हैं. समझ सकते हैं कि भाजपा के सामने उनकी क्या दशा होगी. वही न घर के न घाट के हो जायेंगे. मानों यह कुछ कम था. नीतीश कुमार मौज लेने के लिए दो कदम आगे बढ़ गये.
मुलाकात जनता के दरबार में
बात थोड़ी पुरानी है. आरसीपी सिंह पटना आये थे. नीतीश कुमार से मिलने की इच्छा जाहिर की. उस दिन जनता के दरबार में मुख्यमंत्री का कार्यक्रम चल रहा था, नीतीश कुमार ने दरबार में ही उन्हें बुला लिया. आरसीपी सिंह दौड़े भागे गये. मुलाकात हुई. खास बात नहीं हुई. संदेश यही गया कि दो सौ लोग मिले थे. उन्हीं में आरसीपी सिंह भी थे. समझ सकते हैं कि उनके दिल पर क्या गुजरी होगी. उसी परिसर में वर्षों गोपनीय बैठक में शामिल रहे आरसीपी सिंह को आम जनता की तरह बुला लिया गया. पता नहीं, आगे और क्या होगा. उस दरम्यान उन्हें एक और जिम्मा दिया गया था.
इन्हें भी पढ़ें : त्यागी ने छोड़ दिया नीतीश कुमार का साथ
लखीसराय : औंधे मुंह गिर गये ललन सिंह ‘घोषित अध्यक्ष’
रामचन्द्र मांझी : पद्म पुरस्कार ने बदल दिया अपनों का नजरिया
अब पड़ा है पाला
कुशेश्वरस्थान उपचुनाव में जदयू को जीत दिलाने की मुख्य जिम्मेवारी उन्हीं को दी गयी थी. संयोगवश परिणाम सुखद रहा. लेकिन, इससे कोई फर्क नहीं पड़ा. जदयू के उन तमाम प्रकोष्ठों का अस्तित्व मिटा दिया गया जिसका गठन उन्होंने अपने अध्यक्ष कार्यकाल में किया था. दरअसल आरसीपी सिंह कभी पालिटिशियन नहीं रहे हैं. यकीन मानिये, उन्हें पालिटिशियन से असली पाला केन्द्र में मंत्री बनने के बाद ही पड़ रहा है.