तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

मटिहानी : कायम रहा दबदबा झूना सिंह का

शेयर करें:

विष्णुकांत मिश्र
7 दिसम्बर, 2021

BEGUSARAI : विधानसभा के चुनावों में हार के क्रम से लस्त-पस्त भाजपाई पृष्ठभूमि के क्षेत्रीय नेता अरविन्द कुमार सिंह (Arvnd Kumar Singh) की राजनीति को 2011 में बेगूसराय जिला परिषद (Zila Parishad) के अध्यक्ष पद के चुनाव में नयी धार मिल गयी. इस चुनाव में उनकी भावज इन्दरा कुमारी (Indra Kumari) ने जिला परिषद की राजनीति में ‘अपराजेय’ माने जाने वाले जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष राजद नेता रतन सिंह (Ratan Singh) की पत्नी वीणा देवी (Veena Devi) को शिकस्त दे स्थानीय सियासत में सनसनाहट भर दी थी.

कारण जो रहा हो, अरविन्द कुमार सिंह के इस नये ‘प्रभुत्व’ को स्थायित्व नहीं मिल पाया. 2016 के चुनाव में अध्यक्ष पद की बात दूर रही, इन्दरा कुमारी दुबारा जिला पार्षद भी निर्वाचित नहीं हो पायीं. मटिहानी (Matihani) के निर्वाचन क्षेत्र संख्या-34 में ही मात खा गयीं. निर्वाचित होतीं तो भी अध्यक्ष पद नहीं मिल पाता. अध्यक्ष का पद अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हो गया. अवसर संजीव कुमार उर्फ रवीन्द्र चौधरी (Sanjiv Kumar urf Ravindra Chaudhary) को मिल गया. संजीव कुमार उर्फ रवीन्द्र चौधरी भी पूर्व अध्यक्ष इन्दरा कुमारी की तरह दुर्भाग्यशाली रहे कि बेगूसराय सदर के निर्वाचन क्षेत्र संख्या-26 से दोबारा जीत हासिल नहीं कर पाये.

तब भी विधानसभा चुनाव में कूद गयीं
2016 में मटिहानी में इन्दरा कुमारी की जीत की राह झूना सिंह (Jhuna Singh) ने रोक दी. उस वक्त अरविन्द कुमार सिंह और इन्दरा कुमारी के पति बालमुकुन्द सिंह (Balmukund Singh) खुली हवा में सांस ले रहे थे. उस चुनाव के कुछ समय बाद हत्या के एक मामले में दोनों भाइयों को उम्रकैद की सजा मिल गयी. फिलहाल बेगूसराय मंडल कारा में हैं. दोनों भाइयों की गैर मौजूदगी में भी इन्दरा कुमारी 2020 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दल की उम्मीदवारी नहीं मिलने के बावजूद बछवाड़ा के मैदान में निर्दलीय कूद गयीं.

मटिहानी निवासी अरविन्द कुमार सिंह की व्यवसायिक और राजनीतिक कर्मभूमि बछवाड़ा (Bachhawara) ही रहा है. लेकिन, कामयाबी उनसे दूर-दूर ही रही. इन्दरा कुमारी के साथ भी वैसा ही हुआ. 09 हजार 704 मतों में सिमट गयीं. मतों के मामले में विधानसभा चुनाव में हुई इस दुर्गति के बावजूद उनके मटिहानी से जिला परिषद का चुनाव लड़ने की संभावना बनी हुई थी. लेकिन, वैसा हुआ नहीं. इस बार वह जिला परिषद के चुनाव से अलग रहीं. ऐसा क्यों?

समाप्त हो गयी सक्रियता!
इस बाबत इन्दरा कुमारी का कहना रहा कि वह अब विधानसभा का ही चुनाव लड़ेंगी, जिला परिषद का नहीं. हालांकि, क्षेत्र के लोगों ने जानकारी दी कि अस्वस्थता की वजह से वह चुनाव से अलग रहीं. कारण जो भी रहा हो, इन्दरा कुमारी के इस निर्णय से पंचायत चुनाव की राजनीति में अरविन्द कुमार सिंह के परिवार की सक्रियता तत्काल समाप्त ही मानी जायेगी.

2011 में इन्दरा कुमारी को शिकस्त दे उनकी पंचायत चुनाव की राजनीति को समेट देने वाले झूना सिंह रामदीरी पंचायत संख्या-दो के मुखिया रहे दिवंगत बाहुबली मुन्ना सिंह (Munna Singh) के भाई हैं. नये सिरे से लागू त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के तहत 2001 में हुए प्रथम चुनाव से ही यह परिवार इस पंचायत पर काबिज है. मुन्ना सिंह 2001 में मुखिया निर्वाचित हुए थे. 2006 और 2011 में मुखिया का पद महिला (सामान्य) के लिए सुरक्षित रहा. उस दौरान मुन्ना सिंह की पत्नी रागिनी देवी (Ragini Devi) मुखिया रहीं.


इन्हें भी पढ़ें :

सीवान : को-ऑपरेटिव बैंक के अध्यक्ष कराते थे शराब की तस्करी!
आरसीपी सिंह : असली पाला तो अब पड़ रहा पालिटिशियन से
विवेका पहलवान : झुनझुना तो बजा ही रहे थे, दोस्ती से नया क्या मिला?


चढ़ गये खूनी जंग की भेंट
उसी कालखंड में मुन्ना सिंह वर्चस्व की खूनी जंग की भेंट चढ़ गये. 2015 में उनकी हत्या हो गयी. 2016 में रामदीरी पंचायत संख्या-दो के मुखिया का पद आरक्षण से मुक्त हो सामान्य के लिए हो गया. दिवंगत मुन्ना सिंह के पुत्र अभय कुमार (Abhay Kumar) मैदान में उतरे और निर्वाचित भी हुए. झूना सिंह तब सरपंच हुआ करते थे. 2016 में जिला पार्षद निर्वाचित हो गये. इस बार के चुनाव में भी दोनों का पूर्ववत ‘लोकतांत्रिक’ कब्जा बना रहा. पंचायत के अन्य पदों पर भी उनके ही लोग निर्वाचित हुए, ऐसा झूना सिंह का दावा है.

गौर करने वाली बात यह भी कि बेगूसराय जिला परिषद के अब तक के घोषित परिणामों में चार निवर्तमान जिला पार्षद ही दुबारा सफल हुए हैं. उनमें झूना सिंह भी एक हैं. जिला परिषद के चुनाव में झूना सिंह को धूल चटाने के मकसद से अखाड़े में संजीव कुमार सिंह उतरे . भाजपा से जुड़े संजीव कुमार सिंह जिले की बहुचर्चित सिंहमा पंचायत के मुखिया (Mukhiya) रह चुके हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक इलाके में इस परिवार की संपन्नता आधारित ‘सामाजिक दबंगता’ है. संजीव कुमार सिंह के भाई पवन कुमार सिंह (Pawan Kumar Singh) बड़े ठेकेदार हैं.

यह भी उपलब्धि ही रही!
संजीव कुमार सिंह के राजनीतिक खाते में एक ‘उपलब्धि’ यह भी है कि 2015 में वह विधान परिषद का चुनाव लड़ गये थे. बेगूसराय-खगड़िया स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से. उस क्षेत्र से रजनीश कुमार (Rajanish Kumar) भाजपा (BJP) के विधान पार्षद हैं. उस चुनाव में भी संजीव कुमार सिंह (Sanjiv Kumar Singh) का कुछ चल नहीं पाया था. आगे क्या होता है, यह देखना दिलचस्प होगा.

अपनी राय दें