डा. दिलीप जायसवाल : इस बार मिल सकती है कड़ी चुनौती
विशेष संवाददाता
14 दिसम्बर, 2021
PURNEA : निवर्तमान विधान पार्षद डा. दिलीप जायसवाल (Dr Dilip Jaiswal) क्या चुनाव में ‘अपराजेय’ हैं ? आमलोगों की समझ में जवाब हां में हो सकता है. पर, हकीकत में ऐसा है नहीं. यह सही है कि इस चुनाव के गुणा-भाग सुलझाने में अन्य की अपेक्षा वह अधिक दक्ष हैं, सामर्थ्यवान हैं. ऐसे चुनाव में प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदल देने की ‘काबिलियत-सलाहियत’ भी रखते हैं. पर, कभी परास्त नहीं हो सकते हैं, ऐसी बात भी नहीं है. चुनाव चुनाव है. इसमें किसी को ‘अपराजेय’ नहीं माना जा सकता. डा. दिलीप जायसवाल भी अपराजेय नहीं हैं.
विधान परिषद के पूर्णिया-अररिया-किशनगंज स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र में अभी उनके मुकाबले दूर-दूर तक कोई दमदार योद्धा भले नहीं दिख रहा है, पर चुनाव में ऐसा कोई न कोई वीर अवश्य चुनौती देने उतर जायेगा. वह चुनौती बहुत बड़ी होगी. महागठबंधन, विशेष कर राजद इस बार डा. दिलीप जायसवाल का बिस्तर गोल कराने के प्रति कुछ ज्यादा गंभीर है. तदनुरूप रणनीति भी तैयार कर रहा है.
राजद है कुछ अधिक गंभीर
RJD के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए महागठबंधन के रणनीतिकार वैसे प्रत्याशी की तलाश में हैं, जो आर्थिक रूप से सक्षम-समर्थ तो हो ही, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं व्यावहारिकता के मामले में अधिक नहीं, तो डा. दिलीप जायसवाल के बराबर की लोकप्रियता अवश्य रखता हो. डा. दिलीप जायसवाल की लगातार दो चुनावों में जीत हुई. इस जीत में उनकी अपनी नीति-कूटनीति की तो बड़ी भूमिका रही ही, सीमांचल के कद्दावर नेता तसलीम उद्दीन के अर्थ आधारित ‘आशीर्वाद’ का भी बहुत बड़ा योगदान था, ऐसा राजनीति के विश्लेषकों का मानना और जन सामान्य की धारणा है.
2015 के चुनाव में JDU के महागठबंधन के साथ रहने के बाद भी राजग के डा. दिलीप जायसवाल बाजी मार ले गये. अन्य कारण जो रहा हो, राजद सांसद तसलीम उद्दीन (Taslim Uddin) के ‘बागी’ हो जाने से भी उनकी राह आसान हो गयी. हुआ यह कि उस चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार चयन में तसलीम उद्दीन को महत्व नहीं मिला. उनकी इच्छा के विपरीत इस क्षेत्र को Congress के हिस्से में दे दिया गया. कहने को यह चुनाव दलविहीन होता है, पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तमाम कर्मकांड सामान्य चुनावों की तरह ही हुआ करते हैं.
नहीं है सामाजिकता
तब चर्चा हुई थी कि तसलीम उद्दीन से राय-विचार किये बगैर कांग्रेस की उम्मीदवारी सीमांचल में शिक्षा के बड़े ‘कारोबारी’ मिलिया ग्रुप के संचालक डा. अशद इमाम (Dr Asad Imam) को दे दी गयी. धन-दौलत से परिपूर्ण डा. अशद इमाम का नाम खूब है. लेकिन, उस नाम के साथ सम्मान जुड़ा नहीं है. ऊपर से आसमान चढ़ा गुमान है! मतलब कि संपन्नता तो है, पर सामाजिकता नहीं है.
उस चुनाव में सबसे बड़ी बात यह हुई कि सीमांचल (Simanchal) में तसलीम उद्दीन की हैसियत और अपने प्रति नाराजगी को खूब अच्छी तरह जानने-समझने के बाद भी डा. अशद इमाम ने उनसे सहयोग की याचना करने की समझदारी नहीं दिखायी. सामान्य समझ में यही सामाजिक अव्यावहारिकता पराजय का मुख्य कारण बन गयी. तमाम धन-दौलत धरी रह गयी. चुनाव पर जो खर्च हुआ वह तो पानी में बह ही गया. तसलीम उद्दीन के सान्निध्य में समर्पित हो जाते तो शायद डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dilip Jaiswal) जीत दोहरा नहीं पाते.
मिल गया आशीर्वाद
डा. दिलीप जायसवाल की वह छोटी-मोटी जीत नहीं थी. 03 हजार 183 मतों के बड़े अंतर वाली जीत थी. आधार यह कि हालात बदलने में माहिर भाजपा समर्थित उम्मीदवार डा. दिलीप जायसवाल ने डा. अशद इमाम की उम्मीदवारी से गुस्साये तसलीम उद्दीन के दुखते रग को सलीके से सहला दिया. उनका आशीर्वाद उन्हें मिल गया.
उस चुनाव में महागठबंधन के महत्वपूर्ण घटक राजद के सांसद रहते हुए तसलीम उद्दीन ने खुले तौर पर डा. अशद इमाम के खिलाफ काम किया. असर यह हुआ कि उनके (तसलीम उद्दीन) समर्थक मतों का रुख डा. दिलीप जायसवाल की ओर मुड़ गया. फिसल रही बाजी फिर से हाथ में आ गयी. तसलीम उद्दीन अब इस धरती पर नहीं हैं. डा. अशद इमाम की रुचि भी अब इस चुनाव में नहीं रह गयी है. रुचि होगी भी तो महागठबंधन की उम्मीदवारी शायद ही मिल पायेगी.
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संजीव मिश्रा पर है नजर
महागठबंधन में राजद की नजर वैसे दमदार उम्मीदवार पर है जो इस चुनाव को जोरदार तरीके से लड़ने की आर्थिक हैसियत रखता हो. जिसकी सामाजिक प्रतिष्ठा हो और लोग उसकी व्यावहारिकता की मिसाल देते हों. सामाजिक कार्यों में जिसकी निःस्वार्थ गहन सक्रियता हो. राजद नेतृत्व की समझ में ऐसा ही कोई शख्स इस चुनाव में डा. दिलीप जायसवाल पर भारी पड़ सकता है. इस दृष्टि से उसकी नजर सीमांचल एवं कोशी अंचल के बड़े समाजसेवी व कारोबारी-पनोरमा ग्रुप (Panorama Group) के बहुचर्चित संचालक संजीव मिश्रा (Sanjiv Mishra) पर है.
महत्वपूर्ण बात यह कि संजीव मिश्रा भी ऐसी चाहत रखते हैं. तदनुरूप चुनाव की बड़ी तैयारी भी कर रहे हैं. विश्लेषकों की मानें, तो राजद नेतृत्व की उक्त कसौटी पर संजीव मिश्रा पूरी तरह खरा उतरते है. उन्हें अवसर मिला तो वह बड़ी आसानी से किला फतह कर ले सकते हैं. डा. दिलीप जायसवाल के लिए परेशानी की बात यह भी मानी जा रही है कि उनके ‘चुनावी उद्धारक’ तसलीम उद्दीन दिवंगत हो गये हैं.
‘कहर’ न बन जाये ‘लहर’
वैसे भी पंचायत चुनावों के परिणामों में इस बार भारी बदलाव हुआ है. 85 प्रतिशत से अधिक नये चेहरे निर्वाचित हुए हैं. पंचायतों के जनप्रतिनिधि विधान परिषद के इस चुनाव के मतदाता होते हैं. इन नये मतदाताओं पर डा. दिलीप जायसवाल की पकड़ वैसी सभवतः नहीं बन पायी है जैसी पूर्व के पंचायत जनप्रतिनिधियों पर थी. ऐसे में बदलाव की यह ‘लहर’ उनके लिए ‘कहर’ बन जाये, तो वह चौंकने-चौंकाने वाली कोई बात नहीं होगी. तब भी इससे आंख मूंदना मूर्खता होगी कि डा. दिलीप जायसवाल को विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में कर लेने में महारथ हासिल है.