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भागलपुर-बांका : सवाल ललन सिंह के आश्वासन और उपेन्द्र कुशवाहा की इच्छा का

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राजकिशोर सिंह
29 जनवरी, 2022

BHAGALPUR : बिहार विधान परिषद के भागलपुर-बांका स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र के लिए महागठबंधन में उम्मीदवारी का मामला करीब-करीब तय हो गया है. इस क्षेत्र को भाकपा के हवाले कर दिया गया है. अन्य घटक दलों ने कोई विरोध-प्रतिरोध नहीं किया है. किसी कोई शिकवा-शिकायत या मलाल नहीं है. लेकिन, पेंच भाकपा की दावेदारी को लेकर फंसा हुआ है. वह सात सीटों की मांग कर रही है.

तब अलग हो जायेगी भाकपा!
विश्लेषकों का मानना है कि सात नहीं तो कम से कम दो के लिए वह दबाव जरूर बनायेगी. भागलपुर-बांका के अलावा बेगूसराय-खगड़िया के लिए. राजद (RJD) एक देने पर अड़ा है. सिर्फ भागलपुर-बांका. भाकपा को बेगूसराय-खगड़िया भी चाहिये. यह उसके अस्तित्व और सम्मान से जुड़ा है. इस पर समति नहीं बनने पर भाकपा के महागठबंधन (Mahagathbandhan) से अलग हो जाने की आशंका उत्पन्न हो जा सकती है. वैसा होता है तो फिर यह क्षेत्र महागठबंधन के किस घटक दल के हिस्से में जायेगा और उसका उम्मीदवार कौन होगा, यह पूरी तरह असपष्ट है.

पत्नी को चाहिये उम्मीदवारी
राजग में यह सीट किसके कोटे में जायेगी, इसका निर्धारण नहीं हुआ है. वैसे, समझा जा रहा है कि यह जदयू (JDU) के हिस्से में रहेगा. आधार यह कि 2015 के चुनाव में जदयू समर्थित उम्मीदवार मनोज यादव (Manoj Yadav) की जीत हुई थी. वर्तमान में मनोज यादव बेलहर से जदयू के विधायक (MLA) हैं. विधान परिषद के चुनाव में वह लगातार दो बार विजयी हुए थे, 2009 और 2015 में.

हो गये अधिक बलशाली
2003 के प्रथम चुनाव में भाकपा के संजय यादव (Sanjay Yadav) की जीत हुई थी. बाद के दो चुनावों में वह मनोज यादव से मात खा गये. इस बार भी वह भाकपा समर्थित उम्मीदवार होंगे. इस चुनाव की दृष्टि से खुद तो सक्षम हैं ही, महागठबंधन के घटक दलों की ताकत जुड़ जाने से स्वाभाविक तौर पर कुछ अधिक ‘बलशाली’ हो गये हैं. जदयू विधायक मनोज यादव इस क्षेत्र की विरासत अपनी पत्नी सिंपल देवी (Simpal) को सौंपना चाहते हैं.

सांसद चाहते हैं कुछ और
मनोज यादव गोड्डा (Godda) के बाहुबली छवि के पूर्व राजद विधायक संजय यादव (Sanjay Yadav) के भाई हैं. दोनों की अपनी अलग-अलग राजनीति, पहचान और दबदबा है. इसी की बदौलत मनोज यादव अपनी पत्नी सिंपल देवी को चुनाव लड़ाने और जीत दिलवाने की जिद पर अड़े हैं. बांका के जदयू सांसद गिरधारी यादव (Girdhari Yadav) उनकी राह में रोड़ा अटका रहे हैं. गिरधारी यादव बिहार स्टेट हाउसिंग को-ऑपरेटिव फेडरेशन के अध्यक्ष विजय कुमार सिंह (Vijay Kumar Singh) की जदयू की उम्मीदवारी के बहुत बड़े पैरोकार बने हुए हैं. भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी (Ashok Chaudhary) का साथ भी उन्हें मिल रहा है.


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आश्वासन-दर-आश्वासन
ऐसा कहा जाता है कि तारापुर (Tarapur) उपचुनाव के वक्त जदयू नेतृत्व यानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह (Rajiv Ranjan Singh urf Lalan Singh) की ओर से भी उन्हें इस आशय का आश्वासन मिला था. उससे पहले 2020 के विधानसभा चुनाव के वक्त चकाई के मैदान में उतरने से रोकने के लिए उन्हें ऐसा ही कुछ कहा गया था. उस चुनाव में निवर्तमान विधान पार्षद संजय प्रसाद (Sanjay Prasad) जदयू के उम्मीदवार थे. उनकी जीत को पार्टी नेतृत्व ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ रखा था. यह अलग बात है कि विजय कुमार सिंह चकाई के मैदान में नहीं उतरे, पर संजय प्रसाद की जीत नहीं हो पायी.

कौशल सिंह की दावेदारी
तमाम तिकड़मों को तार-तार कर निर्दलीय सुमित कुमार सिंह (Sumit Kumar Singh) ने विजय पताका लहरा दिया. विजय कुमार सिंह इस तरह के चुनाव लड़ने में पूरी तरह समर्थ हैं. ऐसी संभावना है कि जदयू नेतृत्व उन पर ही भरोसा जतायेगा. वैसे, जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) के अत्यंत करीबी माने जाने वाले क्षत्रिय समाज के कौशल सिंह (Kaushal Singh) की दावेदारी को भी कमतर नहीं आंका जा सकता. वह जदयू के प्रदेश सचिव हैं. 2020 के विधानसभा चुनाव में बांका से रालोसपा (RLSP) के उम्मीदवार रहे हैं.

तस्वीर अभी धुंधली है
पार्टी के अंदरुनी सूत्रों के मुताबिक उपेन्द्र कुशवाहा ने कौशल सिंह की उम्मीदवारी को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है. राजग में जदयू के हिस्से में आने वाली 11-12 सीटों में से सिर्फ एक पर वह ‘अपना’ उम्मीदवार देना चाहते हैं. लेकिन यहां दिक्कत यह दरपेश है कि एक तरफ उनकी इच्छा है तो दूसरी तरफ ललन सिंह का आश्वासन. जोर किसका चलता है, यह देखना दिलचस्प होगा. तस्वीर अभी धुंधली है. चुनाव की तारीख घोषित होने के बाद ही यह स्पष्ट हो पायेगी.

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