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पहली बार सिंहभूम में निकली थी समुद्र से धरती

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महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
06 फरवरी, 2022

मुद्र से धरती पहली बार कब और कहां निकली? इस पर हुए नये शोध ने पुरानी मान्यता को पूरी तरह बदल दिया है. यह स्थापित सच है कि धरती का अस्तित्व पहले समुद्र के अंदर था. पूर्व के एक शोध में कहा गया था कि ‘जलप्रलय’ के तकरीबन ढाई सौ करोड़ साल बाद महाद्वीप के रूप में यह अफ्रीका (Africa) में समुद्र से निकली थी. उस शोध में अन्य कई बातें भी कही गयी थी. हाल में हुए नये शोध ने इन तमाम दावों को पलट दिया है.

ज्वालामुखी विस्फोट
इस शोध में पता चला है कि तकरीबन 310 करोड़ साल पहले धरती के 50 किलोमीटर अंदर हुए एक बड़े ज्वालामुखी विस्फोट (volcanic eruptions) के चलते उसका (धरती) एक हिस्सा हलका हो गया और हिमशैल की तरह तैरते हुए महाद्वीप के रूप में समुद्र से बाहर आ गया. पहली बार जहां ऐसा हुआ वह वर्तमान में झारखंड (Jharkhand) राज्य के सिंहभूम (Singhbhoom) और उसके आसपास का इलाका है. जर्मनी, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के आठ शोधकर्ताओं का यह नया शोध आलेख अमेरिका के बहुचर्चित जर्नल ‘प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस (पीएनएएस)’ में प्रकाशित हुआ है.

भारतीय मूल के शोधकर्ता
इस शोध में मुख्य रूप से आस्ट्रेलिया के तीन शोधकर्ताओं जैकब मल्डर, पीटर केबुड और ऐशली वेनराइट ने काम किया. अन्य शोधकर्ताओं में चार विदेशों में रहने वाले भारतीय (Indian) मूल के हैं. शोध आलेख के प्रमुख लेखक आस्ट्रेलिया (Australia) के प्रतिष्ठित मोनाश विश्वविद्यालय के प्रमुख शोधकर्ता डा. प्रियदर्शी चौधरी हैं. वह वहां के स्कूल आफ अर्थ एटमास्फेयर एण्ड इनवायरमेंट से जुड़े हैं. 33 वर्षीय डा. प्रियदर्शी चौधरी भारतीय मूल के हैं. उनके परिजन पश्चिम बंगाल के आसनसोल (Asansol) में रहते हैं. डा. प्रियदर्शी चौधरी तीन साल से आस्ट्रेलिया में हैं. पृथ्वी पर महाद्वीपों की उत्पत्ति पर शोध कर रहे हैं.

पहला महाद्वीप
डा. प्रियदर्शी चौधरी के मुताबिक झारखंड के सिंहभूम क्षेत्र में ढाई साल तक हुई जमीनी खोज और तकनीकी शोध का प्रारंभिक निष्कर्ष है कि सिंहभूम ही दुनिया (World) का पहला महाद्वीप था. सिंहभूम से मतलब सिर्फ झारखंड का सिंहभूम नहीं, उसके आसपास का एक ऐसा विस्तृत इलाका है जिसमें ओडिसा के धालजोरी, क्योंझर, महागिरी और सिमलीपाल जैसी जगहें भी शामिल हैं. वहां के खास तरह की अवसादी चट्टानों में मिले जिस्कॉन नामक खनिज से उनकी उम्र का पता लगाकर निष्कर्ष निकाला गया कि वे 310 से 320 करोड़ साल पुराने हैं.

बलुआ पत्थर से मिली मदद
वहां मिले बलुआ पत्थर से शोध में मदद मिली. इस शोध कार्य में डा. प्रियदर्शी चौधरी के साथ भारतीय मूल के सूर्ययेन्दु भट्टाचार्य, शुभोजीत रॉय, शुभम मुखर्जी, आस्ट्रेलिया के जैकब मल्डर, पीटर केवुड, ऐशली वेनराइट और जर्मनी (Germany) के ओलिवर नेवेल थे. बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर प्रकाशित रवि प्रकाश के एक आलेख के मुताबिक डा. प्रियदर्शी चौधरी ने बताया कि अवसादी चट्टान और बलुआ पत्थर की उम्र पता करना कठिन है. अवसादी चट्टान और बलुआ पत्थर छिछली नदियों के मुहानों और समुद्री बीच पर बना करते हैं.

दुनिया में हैं 30 महाद्वीप
सिंहभूम में मिली चट्टानों पर समुद्री लहरों के निशान हैं. ये सालों तक समुद्र से टकराने के कारण बने होंगे. सिंहभूम के चाईबासा (Chaibasa) और सारंडा (Saranda) के जंगलों में ऐसी चट्टानें मिलती रही हैं. लेकिन, इन पर ऐसा शोध पहली बार हुआ है. भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया में 30 महाद्वीप हैं. उनमें 10 बड़े आकार के हैं. उनमें 04 भारत में हैं. सिंहभूम के अलावा बस्तर, बुंदेलखंड और धारवाड़ में. मतलब ये पृथ्वी के सबसे पुराने महाद्वीप हैं. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि पृथ्वी पर सभ्यता का विकास सबसे पहले इन जगहों पर ही हुआ. ऐसे अन्य महाद्वीप अमेरिका, आस्ट्रेलिया और अफ्रीका में भी हैं.

पृथ्वी की उम्र है 450 करोड़ साल
पृथ्वी की उम्र करीब 450 करोड़ साल है. वैज्ञानिकों के मुताबिक अपने जन्म के वक्त पृथ्वी काफी गर्म थी. लाखों साल बाद यह ठंडी हुई और यहां पानी बना. धूमकेतुओं के कारण समुद्र बने, फिर 310 करोड़ साल पहले भौगोलिक परिवर्तनों के कारण महाद्वीप बनने शुरू हुए. सिंहभूम में धरती का ऐसा पहला महाद्वीप बना. इन महाद्वीपों के अस्तित्व में आने से वातावरण में ऑक्सीजन (Oxygen) की मात्रा भी बढ़ी और समुद्र के पानी में फासफोरस एवं दूसरे खनिज लवणों का समावेश हुआ.


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शोध अभी जारी है
डा. प्रियदर्शी चौधरी के अनुसार जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन पर बहस कर रही है, तो यह जानना बहुत जरूरी है कि वातावरण, समुद्र, महाद्वीप और जलवायु कैसे अस्तित्व में आये. यह जानना भी कि किन भौगोलिक प्रक्रियाओं के चलते पृथ्वी मनुष्यों और जंतुओं के रहने लायक बन सकी. उनके मुताबिक यह शोध एक बड़ी परियोजना का हिस्सा भर है. विस्तृत शोध अभी किया जाना है. संभव है कि इससे पृथ्वी के और कई रहस्यों का खुलासा हो.

310 साल पहले हुई उत्पत्ति
रांची विश्वविद्यालय (Ranchi University) में भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डा. नीतीश प्रियदर्शी का मानना है कि इस नये शोध से दुनिया के भूगर्भ विज्ञान के शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों को काफी फायदा होगा. यह साफ है कि झारखंड का इलाका सबसे पुरानी भूगर्भीय घटनाओं का गवाह रहा है. डाॉ प्रियदर्शी चौधरी और उनके सहयोगियों ने सिंहभूम महाद्वीप को लेकर जो दावे किये हैं वे पुराने शोधों का ही विस्तार है. इनके शोध ने महाद्वीपों की उत्पत्ति के समय के संबंध में अब तक के दावों से अलग और ज्यादा प्रामाणिक तरीके से बताया है. उन्होंने कहा है कि सिंहभूम महाद्वीप की उत्पत्ति 310 करोड़ साल पहले हुई. इसका अर्थ यह हुआ कि पृथ्वी पर महाद्वीप का बनना अब तक की जानकारी से कई सौ साल पहले शुरू हो चुका था.

पहला भूकंप भी झारखंड में आया था
डा. नीतीश प्रियदर्शी के मुताबिक इससे पहले 2006 में पोलैंड, भारत और जापान के कुछ भूगर्भ विज्ञानियों ने अपने शोध के बाद दावा किया था कि धरती का पहला भूकंप और सूनामी 160 करोड़ साल पहले झारखंड इलाके में आये थे. मतलब कि यहां समुद्र थे. उस शोध आलेख के प्रमुख लेखक रजत मजूमदार थे. उनका शोध ‘सेडिमेंटरी जियोलॉजी’ नामक रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुआ था. उसे ‘चाईबासा फार्मेशन’ कहा गया.

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