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बिहार प्रदेश भाजपा : ब्रह्मर्षियों में हैं कई बड़े नाम

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संगीता त्रिवेदी
12 अप्रैल, 2022

PATNA : बिहार भाजपा में हाल के चुनावों में किसी सांसद को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाने का चलन शुरू हुआ है. मंगल पाण्डेय (Mangal Pandey) अपवाद थे. नित्यानंद राय (Nityanand Ray) के बाद डा. संजय जायसवाल (Dr. Sanjay Jaiswal) की ताजपोशी हुई. पूर्व में डा. सीपी ठाकुर (Dr C.P. Thakur) और राधामोहन सिंह (Radhamohan Singh) भी अध्यक्ष रह चुके हैं. यही वजह है कि अलग-अलग जातियों के सांसदों की आंखों में चमक है. दल में ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ हासिल करने के लिए कुछ सांसदों का लहजा बदल गया है. आधा दर्जन सांसदों के समर्थकों को उम्मीद है कि नेता जी ही अगले कमांडर होंगे. अध्यक्ष बनने का सपना राज्य के कई पूर्व मंत्री, विधायक एवं पूर्व विधायक भी देख रहे हैं.

बाध्यता नहीं
उनके समर्थकों की मानें, तो नेतृत्व के सामने किसी सांसद को ही अध्यक्ष बनाने की बाध्यता नहीं है. समर्थकों के अलग-अलग खेमों के तर्क और दावे सुनकर कभी-कभी आभास होता है कि उन्ही के नेता का अध्यक्ष बनना तय है, सिर्फ घोषणा की औपचारिकता बाकी है. यहां एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. भाजपा (BJP) के बड़े नेता खुद चुप्पी साधे हैं. उन्हें मालूम है कि भाजपा में सार्वजनिक रूप से मुंह खोलने वाले का पत्ता कट जाता है. वे चुपचाप नेतृत्व का विश्वास हासिल करने की तरकीबें आजमा रहे हैं.

गुंजाइश कम, दावेदारी अधिक
हालांकि, ब्रह्मर्षि समाज से अध्यक्ष बनाये जाने की गुंजाइश कम दिखायी दे रही है, लेकिन कई दावेदारों के नाम चर्चा में हैं. ताजा नाम डा. सीपी ठाकुर के पुत्र एवं राज्यसभा सांसद विवेक ठाकुर (Vivek Thakur) का उभर कर सामने आ रहा है. भले ही उनमें संगठन कौशल का अभाव है, लेकिन वह प्रदेश भाजपा के अधिसंख्य दिग्गजों की पसंद हो सकते हैं. उम्मीद की जाती है कि पिता की तरह वह भी तन कर खड़ा नहीं होंगे. डा. सीपी ठाकुर (Dr. C.P. Thakur) भले ही अध्यक्ष रहे थे, लेकिन उनके कार्यकाल में कोर कमेटी की ही चलती थी. विधानसभा चुनाव के समय टिकट वितरण में वह रबर स्टाम्प की भूमिका में थे. टिकट कोर कमेटी तय करती रही और डा. सीपी ठाकुर सिंबल बांटते रहे.

सुरेश शर्मा की आस
ब्रह्मर्षियों में दूसरा प्रमुख नाम प्रदेश महामंत्री एवं विधान पार्षद देवेश कुमार (Devesh Kumar) का है. वह विगत कई वर्षों से प्रदेश भाजपा में अहम दायित्व निभा रहे हैं. अध्यक्ष कोई हो, प्रदेश कार्यालय चलाने और पूरे राज्य में संगठनात्मक गतिविधियों की मॉनिटरिंग में वह केंद्रीय भूमिका में हैं. कम बोलने और सहजता की वजह से उन्हें नित्यानंद राय समेत अलग-अलग खेमों का विश्वास प्राप्त है. इनके अलावा पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा (Suresh Sharma) एक ऐसा नाम है, जिनकी पूरे बिहार के ब्रह्मर्षि समाज में बड़ी पहचान है. वह प्रदेश भाजपा उपाध्यक्ष, भाजपा उद्योग मंच के अध्यक्ष और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. वह नेतृत्व संभालने की जरूरी अहर्ताएं भी रखते हैं.

भितरघातियों ने मनाया जश्न
हालांकि, चुनाव जीतने-हारने की हैसियत रखने वाले इस जमीनी नेता का कद प्रदेश भाजपा के उन नेताओं को खटक सकता है, जो सिर्फ अपने भरोसेमंद को ही मौका दिलाना चाहते हैं. नगर विकास मंत्री की हैसियत से सुरेश शर्मा ने मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) के लिए सैकड़ों करोड़ की विकास योजनाओं को स्वीकृति दिलायी, परन्तु चुनाव में पटना और मुजफ्फरपुर के भाजपा नेताओं ने ही भितरघात किया. उनकी हार पर मुजफ्फरपुर में एक सांसद के नेतृत्व में भाजपा के भितरघातियों ने जश्न मनाया, एक-दूसरे को मिठाई खिलाई!

घातक होता है बड़ा कद
भाजपा में बड़ा कद होना घातक है. जब किसी नेता का कद बढ़ने लगता है, कुछ बड़े नेता उनकी घेराबंदी शुरू कर देते हैं. इसका एक आसान तरीका है. जिस नेता की टांग खिंचाई करनी है, उसकी जाति के छोटे नेता को आगे बढ़ा दिया जाता है. नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और अमित शाह (Amit Shah) का दौर शुरू होने से पहले भी बिहार भाजपा में अलग-अलग जातियों के नये पौधे लगाकर बड़े बट वृक्षों को उखाड़ा गया. फिलहाल बात ब्राह्मण समाज की हो रही है. मंगल पाण्डेय (Mangal Pandey) इसके बड़े उदाहरण हैं. भाजपा के बड़े ब्राह्मण नेताओं को किनारे लगाने के लिए मंगल पाण्डेय को संगठन में बार-बार ओहदे देकर स्थापित किया गया. भाजपा के बड़े ब्राह्मण नेता नेपथ्य में चले गये. आज विडंबना यह है कि ब्राह्मण नेताओं की टांग खिंचाई करने में स्वजातीय नेता ही लगे हैं.

ऐसे कट गया पत्ता
जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) मंत्रिमंडल का गठन हो रहा था, भाजपा के एक खेमे ने बड़ी चालाकी से मधुबनी (Madhubani) के रामप्रीत पासवान (Ramprit Paswan) का नाम आगे किया. मधुबनी जिले से पहले शीला मंडल (Shila Mandal) (जेडीयू) एवं रामप्रीत पासवान (भाजपा) को मंत्री बनाया और अगले विस्तार में जदयू (JDU) के संजय झा (Sanjay Jha) को मौका मिला. एक ही जिले से किसी चौथे विधायक को मंत्री बनाना संभव नहीं था, लिहाजा पूर्व मंत्री नीतीश मिश्र (Nitish Mishra) का पत्ता कट गया. अब उनका नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए चर्चा में है. झंझारपुर के विधायक नीतीश मिश्र के पिता पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र (Dr. Jaggnath Mishra) अपने जीवन काल में मैथिल ब्राह्मणों के शीर्ष नेता रहे.


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चुभ गयी पृष्ठभूमि
नीतीश मिश्र (Nitish Mishra) की यही पृष्ठभूमि राज्य के दूसरे ब्राह्मण नेताओं की आंखों में चुभती है. उन्हें संगठन या सरकार में महत्वपूर्ण ओहदा देने से मैथिल ब्राह्मणों के बीच अच्छा मैसेज जायेगा, परन्तु नीतीश मिश्र के अधिक दिनों तक किसी बड़े पद पर बैठने से ब्राह्मण राजनीति का पुराना मुख्यालय पुनर्जीवित होने का खतरा है. इस खतरे को लेकर ब्राह्मण समाज के दूसरे स्थापित नेताओं के कान खड़े हैं. ये वही नेता हैं, जिन्होंने पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पाण्डेय (Gupteshwar Pandey) के भाजपा में प्रवेश और 2020 के विधानसभा चुनाव में बक्सर से उनकी उम्मीदवारी पर ब्रेक लगवाया था. प्रदेश भाजपा कार्यालय में स्वागत की व्यापक तैयारी हो चुकी थी, लेकिन अंतिम समय में पूर्व डीजीपी का रास्ता काटकर पूर्व हवलदार को बक्सर (Buxar) से एनडीए प्रत्याशी बनाया गया.

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