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दाखिल खारिज : पहले मंत्री जी की खबर तो लीजिये मुख्यमंत्री जी!

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विशेष प्रतिनिधि
06 जुलाई, 2022

PATNA : सोमवार 4 जुलाई 2022 को मुख्यमंत्री (Chief Minister) का जनता दरबार लगा था. फरियादियों की भीड़ जमी थी. मुख्य रूप से राजस्व एवं भूमि सुधार (Revenue and Land Reforms) विभाग से संबंधित शिकायतों-मामलों की सुनवाई हो रही थी. दाखिल खारिज (Dakhil Kharij) और जमाबंदी (Jamabandi) में गड़बड़ी से संबंधित शिकायतें इतनी आयीं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को जांच कर कार्रवाई करने का निर्देश देना पड़ गया. यह खबर है. पर सरसरी तौर पर इसका कोई खास मायने-मतलब नहीं है. ऐसे आदेश-निर्देश तो रोज जारी होते रहता है. लेकिन, इस निर्देश का कुछ खास महत्व है. मुख्यमंत्री ने जिसकी जांच (Inspection) और तदनुरूप कार्रवाई का निर्देश दिया है वह दाग विभागीय मंत्री (Minister) के सफेद कुरते पर भी लगा हुआ है. उस दाग को मिटाये बगैर दूसरे के खिलाफ कार्रवाई हो सकती है क्या?

किस्सा कुछ यूं है
दाग लगने का किस्सा कुछ यूं है. राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री रामसूरत राय ने रून्नीसैदपुर (Runnisaidpur) में आठ डिसमिल जमीन ऐसी खरीदी है जो विवादित बतायी जाती है. मामला अदालत में भी विचाराधीन है. रामसूरत कुमार (Ramsurat Kumar) के नाम से यह खरीद तब हुई थी जब वह पूर्व विधायक (MLA) की हैसियत में थे. कथित रूप से विवादित रहने के बाद भी जमीन की रजिस्ट्री (Registry) तो हो गयी. पर तत्कालीन अंचलाधिकारी (Circle Officer) ने इसी आधार पर दाखिल खारिज का उनका आवेदन रद्द कर दिया. 2020 में रामसूरत राय (Ramsurat Ray) विधायक निर्वाचित हुए, मंत्री भी बन गये. संयोग से विभाग राजस्व एवं भूमि सुधार ही मिल गया. दाखिल खारिज का मामला यही विभाग देखता है.


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हो गया दाखिल खारिज
इनके मंत्री (Minister) बनने के कुछ ही दिनों बाद दाखिल खारिज का आवेदन रद्द करने वाले अंचलाधिकारी का तबादला हो गया. प्रभार प्रखंड विकास पदाधिकारी (BDO) को मिल गया. आमतौर पर प्रभारी अंचलाधिकारी दाखिल खारिज का मामला नहीं निपटाते हैं. ऐसा करने के लिए जिलाधिकारी (District Magistrate) द्वारा अलग से शक्ति दी जाती है. इस प्रखंड विकास पदाधिकारी को वह शक्ति मिली और उन्होंने अंचलाधिकारी (CO) के पूर्व के निर्णय को पलट दिया. दाखिल खारिज को सलटा जमाबंदी (Jamabandi) रामसूरत कुमार के नाम करा दिया. हो सकता है कि सबकुछ नियम के अनुरूप हुआ हो, पर मामले के विभागीय मंत्री से जुड़े रहने के कारण नैतिकता का सवाल उठना स्वाभाविक है. इस सवाल को सरकार कैसे और किस रूप में लेती है, यह देखना दिलचस्प होगा.

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