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मोकामा उपचुनाव: इस बार नहीं ऐंठ पा रहे हैं मूंछ!

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कृष्णमोहन सिंह/ राजकिशोर सिंह
27.10.2022

MOKAMA: राजद (RJD) की सवर्ण उम्मीदवार, जदयू (JDU) का समर्थन और अनंत सिंह(ANANT SINGH) का अपना क्षेत्रीय प्रभाव- सरसरी तौर पर मोकामा उपचुनाव के परिणाम को लेकर संशय की कोई ज्यादा गुंजाइश नहीं बनती है. सामान्य समझ में, बस औपचारिकता निभायी जा रही है. जेल में बंद सजायाफ्ता पूर्व विधायक अनंत सिंह के मुख्य रणनीतिकार पूर्व मंत्री कार्तिकेय कुमार उर्फ कार्तिक मास्टर हों या कोई साधारण कार्यकर्त्ता, परिणाम की बाबत सबके मुंह से ऐसा ही कुछ निकलता है. चुनावी आंकड़ों, स्थानीय राजनीतिक एवं सामाजिक समीकरणों और सात दलों के महागठबंधन के बड़े आकार पर आधारित आकलन-विश्लेषण भी दर्शाता है कि राजद उम्मीदवार नीलम देवी (NEELAM DEVI)का कहीं कोई मुकाबला नहीं है. रिकार्ड मतों से जीत तय है. दावा यह भी कि 2020 के चुनाव में जितने मतों के अंतर से अनंत सिंह की जीत हुई थी उससे कहीं अधिक मतों से उनकी पत्नी नीलम देवी की जीत होगी.

मुकाबले में नयापन नहीं
नीलम देवी का मुकाबला भाजपा (BJP)प्रत्याशी सोनम देवी (SONAM DEVI)से है, जो नलिनी रंजन शर्मा उर्फ ललन सिंह की पत्नी हैं. अनंत सिंह और ललन सिंह के बीच ऐसी भिड़ंत पहले भी होती रही है. दोनों चार बार टकराये हैं. तीन बार अनंत सिंह बनाम ललन सिंह तो एक बार अनंत सिंह बनाम सोनम देवी. इन मुकाबलों में जीत अनंत सिंह की होती रही है, ललन सिंह मात खाते रहे हैं. इस दृष्टि से वर्तमान मुकाबले में कोई नयापन नहीं है. दोनों एक दूसरे के चुनावी दांव-पेंच से पूरी तरह वाकिफ हैं. इतना जरूर है कि इस बार पूर्व की तरह त्रिकोणीय- बहुकोणीय मुकाबला नहीं है, आमने-सामने की टक्कर है. चुनाव मैदान में अभी जो दिख रहा है, उसमें महागठबंधन के लोग नीलम देवी को ‘अपराजेय’ मान सकते हैं. परन्तु, जमीनी हकीकत कुछ और है जो मुकाबले के अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह (SURAJBHAN SINGH) के रूप में बदल जाने पर आधारित है. तभी तो अनंत सिंह के समर्थक इस बार के चुनाव अभियान में मूंछें नहीं ऐंठ रहे हैं, अदब के साथ मतदाताओं से समर्थन मांग रहे हैं.

सोनम देवी और ललन सिंह

कहीं कोई मुद्दा नहीं
चुनाव में जातीय जोड़-तोड़ के अलावा कहीं कोई मुद्दा नहीं है, समीकरण नहीं है. जाति से अलग की तमाम बातें सिर्फ नेताओं के भाषणों में हैं. मतदाताओं के मन मिजाज में नहीं. इसलिए सीधे तौर पर बात जातीय समीकरण की ही. ऐसा कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. चुनावी मुकाबले में जातीय सूत्र तलाशने वालों का अनुमान है कि 2 लाख 83 हजार मतदाताओं वाले मोकामा विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक मत ब्रह्मर्षि समाज के हैं- लगभग 80 हजार मत. धानुक, कहार, कोइरी और कुर्मी मतों की संख्या 70 हजार के आसपास है. तकरीबन 50 हजार मतदाता यादव समाज के हैं. मतदाताओं की चौथी और पांचवीं बड़ी संख्या वैश्य एवं पासवान बिरादरी की है-15 से 20 हजार के बीच. शेष में निषाद समाज के मतों की संख्या अधिक रहने की बात कही जाती है. मुख्य मुकाबले की दोनों प्रत्याशी ब्रह्मर्षि समाज की हैं. पूर्व के चुनाव में भी ऐसा ही होता रहा है. स्वजातीय समाज के मत बंटते रहे हैं. इस बार भी बटेंगे. अंतर इतना अवश्य दिखेगा कि तब अधिसंख्य मत अनंत सिंह के पक्ष में गिरते थे, इस बार भाजपा की प्रत्याशी होने के नाते सोनम देवी के पक्ष में गिरेंगे. परन्तु, फर्क ज्यादा का नहीं होगा.

चुनौती विजय कुमार सिन्हा के लिए भी
भाजपा विधायक दल के नेता विजय कुमार सिन्हा (VIJAY KUMAR SINHA)इसी विधानसभा क्षेत्र के रहने वाले हैं. वर्षों बाद भाजपा मोकामा से चुनाव लड़ रही है. स्वजातीय मतों को सोनम देवी के पक्ष में किस हद तक वह गोलबंद करते हैं, इस पर आम लोगों के साथ-साथ भाजपा नेतृत्व की भी नजर रहेगी. यहां गौर करने वाली बात यह है कि विजय कुमार सिन्हा का समधियाना अनंत सिंह के मुख्य रणनीतिकार कार्तिकेय कुमार उर्फ कार्तिक मास्टर के यहां है. इस रिश्ते को लेकर कई तरह की चर्चाएं होती हैं. 2020 के चुनाव में अनंत सिंह राजद के उम्मीदवार थे. तेजस्वी प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री के रूप में देखने की उत्कट अभिलाषा के तहत यादव समाज का करीब-करीब संपूर्ण समर्थन उन्हें मिला था. इस बार इस समाज में वैसी आक्रामकता नहीं है. इसका लाभ भाजपा को दिलाने के लिए कर्णवीर सिंह यादव उर्फ लल्लू मुखिया, घोसवरी के प्रखंड प्रमुख मिथिलेश यादव उर्फ मिट्ठू यादव और गोसाईं गांव के बुल्लू यादव आदि जोर लगा रहे हैं.

सोनम देवी का चुनाव प्रचार अभियान

विभाजन कराने की हैसियत तो है ही
कर्णवीर सिंह यादव उर्फ लल्लू मुखिया पंडारक के उन यादव बहुल पंचायतों के रुख को भाजपा की ओर मोड़ने के लिए एड़ी चोटी एक किये हुए हैं जो मोकामा विधानसभा क्षेत्र के तहत आते हैं. मिथिलेश यादव उर्फ मिट्ठू यादव की घोसवरी क्षेत्र में कैसी पकड़ है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि 2001 से ही वह या फिर उनकी पत्नी वहां के प्रखंड प्रमुख के पद पर काबिज है. ऐसा भी नहीं कि ये तमाम यादव नेता स्वजातीय मतों को पूरी तरह भाजपा की ओर मोड़ देंगे. लेकिन, अच्छी संख्या में विभाजन कराने की हैसियत तो ये रखते ही हैं.

घोसवरी में है सफलता की कुंजी
मोकामा और पंडारक प्रखंडों में मुकाबला लगभग बराबर का है. कहीं अनंत सिंह भारी हैं तो कहीं भाजपा. भाजपा के इस भारीपन में पूर्व सांसद सूरजभान सिंह का भी बड़ा योगदान है. जोर पूर्व सांसद वीणा देवी भी लगा रही हैं. सफलता की कुंजी घोसवरी प्रखंड में है. मोकामा-बड़हिया टाल का यह टापूनुमा मध्यवर्त्ती क्षेत्र पहले काफी पिछड़ा था. बिहटा-सरमेरा-मोकामा फोरलेन सड़क ने विकास का नया द्वार खोल इसकी तकदीर बदल दी है. इस प्रखंड में आठ पंचायतें हैं. पूर्व के चुनावों में अनंत सिंह का दबदबा दिखता था. इस बार का गणित कुछ बदला-बदला सा नजर आता है. ऐसा कि उसे अनुकूल बनाने के लिए उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को भी जोर लगाना पड़ रहा है. इस जोर का कोई असर पड़ेगा इसकी संभावना नहीं दिखती है.
नीलम देवी का चुनाव प्रचार अभियान
इस पर निर्भर है सोनम देवी का भाग्य
इस क्षेत्र में अत्यंत पिछड़ा वर्ग के धानुक समाज के मत निर्णायक माने जाते हैं. आमधारणा में कुर्मी, कोइरी और धानुक समाज के लोगों को जदयू का समर्थक माना जाता है. परन्तु, अब वैसी बात नहीं है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पाला बदलने की प्रवृत्ति ने उनमें भी विरक्ति का भाव भर दिया है. कुर्मी और कोइरी मतों की संख्या अपेक्षाकृत कम है. कोइरी समाज के लोग नीतीश कुमार के प्रभाव से मुक्त दिखते हैं. कारण यह कि भाजपा में कुशवाहा बिरादरी के पूर्व मंत्री सम्राट चौधरी को जो उभार मिल रहा है, उसे यह समाज एक अवसर के रूप में देख रहा है. कुर्मी समाज के मतों में कोई खास उत्साह नहीं है. मामला किसी दूसरे क्षेत्र का होता, तो इन दोनों सामाजिक समूहों के लगभग शत प्रतिशत मत राजद के विरोध में जाते. बात यहां अनंत सिंह की है, इसलिए सब मुद्दा गौण पड़ जाता है. इन सामाजिक समूहों के बड़े तबके पर ‘छोटे सरकार’ का स्थानीय कारणों से ‘प्रभाव’ है. विशेष कर पंडारक के टाल क्षेत्र में. इन मतों में भाजपा के रणनीतिकार कितनी सेंध लगा पाते हैं, सोनम देवी का भाग्य उसी पर निर्भर करेगा.

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