मखाना उत्पादन एवं कारोबार में खिलेगी अब मुस्कान
महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
16 नवम्बर, 2022
PATNA : उत्तर बिहार (Bihar) के मधुबनी (Madhubani) और दरभंगा (Darbhanga) समेत कई जिलों में मखाना की खेती की जाती है. स्वास्थ्य के लिए मखाना बड़ा फायदेमंद है. इसका उपयोग दवा बनाने में भी किया जाता है. हालांकि, ज्यादा उपयोग अल्पाहार (स्नैक्स) में किया जाता है. मिथिलावासी बड़े चाव से इसे खाते हैं. कहा भी जाता है, माछ, मखान, पान और मुस्कान मिथिला (Mithila) की है पहचान. मखाना (Makhana) का उपयोग बुखार, किडनी, डायरिया, लिक्यूरिया आदि में दवा (Medicine) के रूप में किया जाता है. इसकी इसी खासियत की वजह से दवा कंपनियां अब इसमें अधिक रुचि लेने लग गयी है.
औषधीय गुणों से भरा
अपने औषधीय गुणों के कारण मखाना न केवल उत्तर बिहार (North Bihar) बल्कि संपूर्ण भारत (All India) के साथ-साथ विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया है. लोग मखाना से कई तरह के व्यंजन भी तैयार करते हैं जिसे विशेष अवसरों पर भोजन के रूप में लिया जाता है. मधुबनी जिले (Madhubani District) में मखाना की ज्यादा खेती की जाती है. इस जिले में इसका उत्पादन तकरीबन 3500 मिट्रिक टन होता है जो पूरे बिहार (Bihar) में होने वाले उत्पादन का 20 प्रतिशत है. कटिहार (Katihar) जिले में इस नगदी फसल का कुल उत्पादन 18 प्रतिशत है. इसी तरह दरभंगा, पूर्णिया, मधेपुरा और सहरसा जिलों में भी इसकी खेती होती है.
श्रमसाध्य उत्पादन
मखाना की खेती काफी कठिन है. यह तालाब एवं अन्य ठहरे पानी (Water) के अंदर उपजता है और काफी श्रमसाध्य है. इसकी खेती मुख्य रूप से मछली (Fish) उत्पादन की तरह है. यह जितना श्रमसाध्य है उतना ही कष्टदायक भी है. यही कारण है कि संपन्न किसान (Farmer) इसकी खेती से परहेज करते हैं. मखाना की खेती आमतौर पर एक जाति विशेष के लोग ही करते हैं. हालांकि, इनके पास अपना तालाब नहीं है. दूसरों के तालाब (Pond) भाड़े पर लेकर मखाना की खेती करते हैं. इस जाति विशेष की महिलाएं (Womens) और बच्चे (युवा) इसकी देखभाल में विशेष अभिरुचि लेते हैं. एक तरह से इस जाति विशेष, जिसे मछुआरा (मल्लाह) कहते हैं का पूरा परिवार (Family) मखाना की खेती में बोआई से लेकर भुनाई तक भिड़े रहते हैं.
मछुआरा ही करते हैं खेती
चूंकि मखाना की खेती का ज्ञान अन्य किसी जाति के लोगों के पास नहीं है इसलिए सरकार (Government) ने भी मछुआरा (Machhuara) जाति को ही इसकी खेती करने का संपूर्ण अधिकार दे रखा है. साथ ही सहकारी समितियों के माध्यम से सरकार भी तालाब, झील और अन्य जलकर इन्हें ही आवंटित करती है. मखाना (Makhana) के साथ ही सरकार ने मछली पालने और पकड़ने का संपूर्ण अधिकार इस जाति की मत्स्यजीवी सहयोग समिति को दे रखा है. इससे इनके जीवन स्तर में सुधार आया है. प्राचीन काल से मछुआरा जाति के लोग मछली पकड़ने और मखाना की खेती (Farming) करते आ रहे हैं.
बिचौलियों के चंगुल में
मछुआरों के पास पूंजी की कमी के कारण शहरी व्यापारी (Businessman) पूंजी लगाते हैं. फलस्वरूप इनकी मेहनत का एक बड़ा हिस्सा वे अपनी झोली में भर लेते हैं. इतना ही नहीं, मखाना का मूल्य भी वही तय करते हैं. नतीजतन मछुआरे जहां से चले थे, वहीं ठहर जाते रहे हैं. भंडारण (Storage) के अभाव के कारण ये अपनी मेहनत का लाभ नहीं ले पाते रहे हैं. आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है. हां, अब ये खुद खेती नहीं करते, मजदूर (Labour) की तरह मखाना के खेतों में दैनिक पारिश्रमिक पर काम करते हैं.
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टूटेगा एकाधिकार
महत्वपूर्ण बात यह कि अब युवा (Youth) वर्ग मखाना की खेती में रुचि लेने लगा है, फलस्वरूप बिचौलियों के एकाधिकार को चुनौती मिलने लगी है. वर्षों से ये बिचौलिये इनकी खून-पसीने की कमाई हड़प जाते रहे हैं. फिर, सरकार (Government) भी सतर्क हुई है. कुछ युवाओं ने कल्पवृक्ष कॉमोडिटी (Kalpavriksha Commodity) नाम से एक स्टूडेंट स्टार्ट अप (Student Startup) की शुरूआत की है. इसका उद्देश्य इस व्यापार के क्षेत्र का विस्तार करना है. ये युवा मुजफ्फरपुर (Muzaffarpur) की शाही लीची (Shahi Litchi), भागलपुर (Bhagalpur) के जर्दालू आम (Jardaloo Mango) और कतरनी चुड़ा (Katarni Chura) को भी इसके दायरे में ला रहे हैं.
आ रहे अच्छे दिन
स्टार्ट अप के आने से मखाना (Makhana) की सप्लाई चेन को मजबूती के साथ मखाना उत्पादकों को सीधे प्रोसेसिंग (Prosessing) से जोड़ रहे हैं. जहां इन्हें समय पर भुगतान के साथ मुनाफा (Income) भी होने लगा है. मखाना की खेती को प्रोत्साहित करने की दिशा में उत्पादक और उपभोक्ता को सीधे जोड़ने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है. इस स्टार्ट अप के संस्थापक पटना (Patna) के 24 साल के कार्तिक कश्यप, जो इन्टरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया (Entrepreneurship Development Institute of India) गांधीनगर, गुजरात के छात्र हैं, ने इसके विकास के लिए कई काम किये हैं. कार्तिक कश्यप (Kartik Kashyap) ने पहले वैसे उद्यमियों को इससे जोड़ने का काम किया है जिनको मोमो कार्ट (Momo Cart) है और अपना डिजिटल पब्लिकेशन (Digital Publication) है. जहां तक बिहार (Bihar) का सवाल है तो यहां भी धीरे-धीरे एग्रोटेक (Agrotech) का विकास हो रहा है.
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