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कुढ़नी में न तेजस्वी हारेंगे, न भाजपा जीतेगी

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विभेष त्रिवेदी
30 नवम्बर, 2022

MUZAFFARPUR : पिछले चुनावों के परिणाम गवाह हैं कि कुढ़नी (Kurhani) में महागठबंधन और खुद मनोज कुशवाहा भी अपराजेय नहीं हैं. लोकसभा चुनाव 2014 से पहले नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने जब राजग छोड़कर अलग से जदयू (JDU) उम्मीदवार खड़े किये तो उनकी पार्टी चारो खाने चित हो गयी. उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में राजद (RJD) से तालमेल किया. सिटिंग-गेटिंग फार्मूला के आधार पर तत्कालीन विधायक मनोज कुशवाहा को फिर जदयू का उम्मीदवार घोषित किया गया. उम्मीद थी कि राजद-जदयू की संयुक्त ताकत राजग पर भारी पड़ेगी और मनोज कुशवाहा (Manoj Kushwaha) आसानी से चुनाव जीत जायेंगे. मगर ऐसा हो नहीं सका और भाजपा उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता (Kedar Prasad Gupta) ने मनोज कुशवाहा को करीब 11 हजार मतों से शिकस्त दे डाली. महज 18 महीने बाद नीतीश कुमार ने पलटी मारी और जदयू का कुनबा फिर से राजग (NDA) में शामिल हो गया.


महागठबंधन और भाजपा के वोटों में बड़े बिखराव से चौंकाने वाला परिणाम आयेगा. दूसरी – मनोज कुशवाहा की जीत हुई तो वह तेजस्वी प्रसाद यादव की जीत होगी. जीत का सेहरा उनके ही सिर बंधेगा.


महागठबंधन और मनोज कुशवाहा अपराजेय नहीं
2020 में सिटिंग-गेटिंग के तहत कुढ़नी सीट पर भाजपा (BJP) उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता की दावेदारी मजबूत मानी गयी. जदयू के मनोज कुशवाहा टिकट से वंचित हो गये. नीतीश कुमार ने मनोज कुशवाहा को मीनापुर (Minapur) के लिए उम्मीदवार घोषित कराया. मनोज कुशवाहा हवा का रुख भांपने मीनापुर पहुंचे तो उनका व्यापक विरोध हो गया. टिकट (Ticket) के प्रबल दावेदार युवा जदयू नेता पंकज किशोर पप्पू (Pankaj Kishor Pappu) ने स्थानीय उम्मीदवार की मांग करते हुए मनोज कुशवाहा का खुला विरोध किया. माहौल भांप मनोज कुशवाहा ने मीनापुर का टिकट लौटाते हुए कहा कि वह कुढ़नी छोड़कर कहीं से चुनाव नहीं लड़ेंगे. अंततः नीतीश कुमार ने मनोज कुमार नाम के एक स्थानीय नेता को मीनापुर से उम्मीदवार बनाया, परन्तु पार्टी हार गयी.

कई कोण हैं मुकाबले के
कुढ़नी उपचुनाव (By-Election) का परिणाम जो हो, तीन बातें तय हैं. पहली – वीआईपी (VIP) और एआईएमआईएम (AIMIM) के मैदान में उतरने से बहुकोणीय मुकाबला होगा. मल्लाहों, भूमिहारों, मुसलमानों का मान मनौव्वल होगा. महागठबंधन और भाजपा के वोटों में बड़े बिखराव से चौंकाने वाला परिणाम आयेगा. दूसरी – मनोज कुशवाहा की जीत हुई तो वह तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) की जीत होगी. जीत का सेहरा उनके ही सिर बंधेगा. तीसरी यह कि अगर केदार प्रसाद गुप्ता जीत गये तो वह भाजपा (BJP) की जीत नहीं, नीतीश कुमार और मनोज कुशवाहा की हार होगी. कोई यह नहीं कहेगा कि तेजस्वी प्रसाद यादव की वजह से जदयू (JDU) की हार हुई है. पराजय के लिए जदयू खुद जिम्मेदार होगा. कहने का अभिप्राय यह है कि भाजपा अपने जनाधार की बदौलत नहीं, नीतीश कुमार की नाकामियों और मनोज कुशवाहा की अलोकप्रियता की वजह से जीतेगी.


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एआईएमआईएम से बड़ी चुनौती
यादव, भूमिहार और मुस्लिम वोट कुढ़नी में निर्णायक होंगे. आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पूर्व जिला पार्षद गुलाम मुर्तजा अंसारी (Gulam Murtaza Ansari) को प्रत्याशी बना मुकाबले को रोमांचक बना दिया है. इस क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय की बड़ी आबादी है. जिला परिषद के पूर्व उपाध्यक्ष शाह आलम शब्बू (Shah Alam Sabbu) पर्याप्त वोट बटोरते रहे हैं. बसौली पंचायत के मुखिया पति मो. फैजुद्दीन (Md. Faijuddin) बताते हैं कि उन्हें एआईएमआईएम (AIMIM) प्रत्याशी बनने का प्रस्ताव मिला था, उन्होंने मना कर दिया. मनोज कुशवाहा से उनका व्यक्तिगत संबंध है, उनकी मदद करेंगे. दूसरी ओर ऐसे मुसलमानों की बड़ी संख्या है, जिन्हें मनोज कुशवाहा से चिढ़ है. मनोज कुशवाहा जब भी जीते, भाजपा की बदौलत जीते. मुसलमानों ने उनका जमकर विरोध किया. जीतने के बाद मुसलमानों से उनकी स्वाभाविक दूरी रही. कुढ़नी के प्रखंड प्रमुख के पद से खुर्शीद आलम (Khurshid Alam) की पत्नी को हटाने का मामला इस चुनाव में तूल पकड़ेगा. मुसलमान वोटरों का एक वर्ग किसी की जीत सुनिश्चित करने को नहीं, बल्कि किसी की हार सुनिश्चित करने के लिए वोट डालेगा. भले ही आज वह महागठबंधन के प्रत्याशी हैं, लेकिन मुसलमानों से दूरी पाटकर निकटता कायम करने में उन्हें नाकों चने चबाने पड़ेंगे.

मुसलमानों के लिए है बड़ा अवसर
मुसलमानों को यह एक बड़ा अवसर दिख रहा है. कहते हैं कि कुढ़नी (Kurhani) की हार से तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) की सेहत पर असर नहीं पड़ेगा. राजद ने जिस तरह कई छोटी-छोटी पार्टियों से गठबंधन किया है, उसी तरह सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Ovaisi) की पार्टी एआईएमआईएम से भी करना चाहिए. उनका मानना है कि एआईएमआईएम को पर्याप्त वोट मिल जायेंगे तभी राजद वाले असदुद्दीन ओवैसी से गठबंधन को मजबूर होंगे. एआईएमआईएम और इसके उम्मीदवार गुलाम मुर्तजा अंसारी को हल्का समझना भारी भूल होगी. वह 2000 से लगातार मदरसा इसलामिया गौसूलवरा के नाजिमे आला के पद पर कायम हैं. मुसलमानों में यह संस्था अच्छी पहचान रखती है. 2005 से ऑल इंडिया मोमिन कान्फ्रेंस (All India Momin Conference) के सदस्य हैं. शुरुआत में राजद में सक्रिय रहने के बाद गुलाम मुर्तजा अंसारी मुजफ्फरपुर (Muzaffapur) जिला जदयू के उपाध्यक्ष पद पर लंबे समय तक रहे. 2012 में जिला पार्षद निर्वाचित हुए थे. यादवों की नाराजगी दूर नहीं हुई तो मुसलमानों में बिखराव भी बढ़ेगा.

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