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शहाबुद्दीन और लालू परिवार : तब भी खंडित नहीं हुई निष्ठा हीना शहाब और ओसामा की

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राजद और लालू-राबड़ी परिवार तथा शहाबुद्दीन परिवार के आपसी गहरे रिश्ते में गांठ क्यों पड़ गयी? प्रस्तुत है पांच किस्तों के आलेख की तीसरी किस्त…

राजेश पाठक
01 दिसम्बर, 2022

SIWAN : इसे महानता मानें या मजबूरी, शहाबुद्दीन (Shahabuddin) के इंतकाल के बाद भी लालू- राबड़ी परिवार के व्यवहार से क्षुब्ध-विक्षुब्ध हीना शहाब (Heena Shahab) और ओसामा शहाब पार्टी नेतृत्व के प्रति निष्ठावान रहे. समर्पण का भाव बना रहा. उस दौरान लालू प्रसाद (Lalu Prasad) में जमी उनकी आस्था को खंडित करने की खूब कोशिश हुई. टस से मस नहीं हुए. जदयू से लेकर आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) और समाजवादी पार्टी तक के रणनीतिकार उन्हें खुद से जोड़ने के लिए पैतृक गांव प्रतापपुर (Pratappur) तक पहुंच गये. उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के बाहुबली मुख्तार अंसारी, सलीम सिद्दीकी भी आये. सहानुभूति जाप सुप्रीमो राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव (Pappu Yadav) ने भी जतायी. हीना शहाब और ओसामा शहाब (Osama Shahab) ने आभार सबका जताया, पर राजद (RJD) नेतृत्व की कथित बेवफाई पर मुंह नहीं खोला. नेतृत्व के प्रति निष्ठा पर कोई आंच नहीं आने दी.

बन रहे थे रिश्तों में सुधार के आसार
तब भी विभिन्न दलों के नेताओं के आने-जाने और ओसामा शहाब की पीठ पर हाथ रखने से हीना शहाब के राजद से अलग होने की आशंका आकार लेने लग गयी. उसकी तपिश लालू-राबड़ी परिवार के आंगन तक भी पहुंच गयी. रिश्ते सुधारने और हीना शहाब के पांव किसी दूसरे राजनीतिक दल (Political Party) की ओर बढ़ने से रोकने के लिए इस परिवार की सक्रियता बढ़ गयी. उपयुक्त अवसर भी मिल गये. अवसाद के इसी एक वर्ष के दरम्यान दिवंगत शहाबुद्दीन (Shahabuddin) के परिवार में दो मांगलिक आयोजन हुए. शहाबुद्दीन और हीना शहाब की पुत्री डा. हेरा शहाब और पुत्र ओसामा शहाब का अलग-अलग तारीखों में निकाह हुआ. ऐसे आयोजनों में कभी तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) तो कभी तेजप्रताप यादव (Tejpratap Yadav) की प्रतापपुर में मौजूदगी राजनीति को चौंकाने वाली रही. अब्दुल बारी सिद्दीकी एवं राजद के अन्य नेताओं की भी आमद-रफ्त होने लगी. ऐसा लगा कि पूर्व की तरह दोनों परिवारों में हेलमेल हो गया है.


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वह भ्रम था जो उम्मीदवारी नहीं मिलने से टूट गया
शहाबुद्दीन के समर्थकों की मानें, तो यह भ्रम था जो राज्यसभा के चुनाव में हीना शहाब को उम्मीदवारी नहीं मिलने से टूट गया. कारण जो रहा हो, राजद (RJD) नेतृत्व ने उनकी इच्छा और दावेदारी को कोई महत्व ही नहीं दिया. उम्मीदवारी मीसा भारती (Misa Bharti) और मधुबनी के पूर्व विधायक डा. फैयाज अहमद (Faiyaj Ahmad) को मिल गयी. नेतृत्व की यह निष्ठुरता भावनाओं में उबाल लाने के लिए काफी थी. उबाल आया भी. परन्तु, विकल्पहीनता और भविष्य की चिंता ने उसे खतरे के निशान से ऊपर नहीं उठने दिया. खतरा किसके लिए था? विश्लेषकों की समझ है कि शहाबुद्दीन परिवार के समक्ष ‘आगे कुआं, पीछे खाई’ जैसे हालात हैं. तिहाड़ जेल में शेष उम्र काट रहे सजायाफ्ता शहाबुद्दीन राजद के लिए पहले ही ‘अनुपयोगी’ हो गये थे.

यह भी एक वजह थी दूरी बनाने की
सीवान में उनकी जमीनी वकत वैसी नहीं रह गयी थी जो उनके आतंक के चरमकाल में थी. उनके रहते तीन संसदीय चुनावों (2009, 2014 और 2019) में हीना शहाब (Heena Shahab) की लगातार हार से इसकी खुद-ब-खुद पुष्टि हो जाती है. शहाबुद्दीन परिवार से राजद की कथित दूरी की एक बड़ी वजह ‘आतंक काल’ में अनेक दबंग यादवों की हुई हत्या भी बतायी जाती है. गुस्सा इस बात का अधिक कि इससे ‘माय’ समीकरण रक्त रंजित हो बिखर गया. लाभ भाजपा (BJP) को मिल गया. मुसाफिर यादव, रामनारायण यादव, दीना यादव, छोटेलाल यादव, मुन्ना यादव एवं पत्रकार राजदेव रंजन की अलग-अलग समय में हुई हत्याओं से राजद का राजनीतिक खेल बिगड़ गया. हीना शहाब की तीन संसदीय चुनावों में हार के रूप में इसका खामियाजा शहाबुद्दीन को भी भुगतना पड़ा.

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