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बेगूसराय : काफी रोमांचक किस्सा है यह पाताल लोक का

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तापमान लाइव ब्यूरो
22 अप्रैल, 2023

BEGUSARAI : यह कथा लालू-राबड़ी शासन के उस रक्तरंजित कालखंड की है जिसे अदालत (Court) ने प्रसंगवश ‘जंगल राज’ की संज्ञा दी थी. स्थापित तथ्य है कि उस कालखंड में कानून (Law) का नहीं, शातिर सरगनाओं की बंदूकों का शासन चलता था. अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग सरगना का. कहीं-कहीं अपराध-सत्ता पर काबिज होने के लिए बंदूकें टकराती थीं, लाशें गिरती थीं. खून बहता था. आततायियों का अट्टहास गूंजता था, संवेदनाएं सिसकती थीं. बात बेगूसराय की. संगठित अपराध (Crime) और बंदूकबाजी के मामले में यह जिला तस्कर सम्राट (वामपंथियों की नजर में) कामदेव सिंह (Kamdeo Singh) के जमाने से ही बदनाम था. कथित रूप से कामदेव सिंह की मुख्य मोर्चाबंदी ‘वामपंथी बंदूकबाजों’ से थी. घात-प्रतिघात और हत्या-प्रतिहत्या के उस भयावह दौर में दोतरफा अनेक लोग मौत के मुंह में झोंक दिये गये थे. कामदेव सिंह के खात्मे के बहुत बाद सरगनाओं का सांसें अटका देने वाला खूनी दौर आया. सिर्फ बेगूसराय ही नहीं, बिहार का प्रायः हर हिस्सा इससे हलकान रहा.

सूरजभान सिंह के गुरू
मुख्य रूप से उसे ही ‘जंगल राज’ कहा गया. अदालत की ऐसी टिप्पणी को तब के विपक्ष ने अपने अभियान का मुख्य मुद्दा बना लिया. उस दौर में बेगूसराय में कई सरगना थे. स्थानीय भाषा में ‘सरदार’ थे. रामलखन सिंह (Ramlakhan Singh), सूरजभान सिंह (Surajbhan Singh), अशोक सम्राट (Ashok Samrat), रतन सिंह (Ratan Singh), नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह (Narendra Singh urf Bogo Singh) का नाम लोग बेधड़क गिना बैठते थे. वैसे, छोटे-बड़े और भी सरगना थे. इस मामले में वामपंथी मोर्चा भी कमजोर नहीं था. अंदरूनी तौर पर टकराने का पूरा सामर्थ्य संग्रहित कर रखा था. इस मोर्चे के भी टारगेट में रहने वाले भाजपा (BJP) नेता रामलखन सिंह की आपराधिक गतिविधियों में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कोई संलिप्तता थी या नहीं, इसकी मुकम्मल जानकारी नहीं, पर उनके बारे में चर्चा होती थी कि मोकामा (Mokama) के सूरजभान सिंह के वह गुरु हैं. सूरजभान सिंह को किस विषय की उन्होंने ‘शिक्षा’ दी यह कोई नहीं बताता. इस ‘गुरुअई’ का अर्थ लोग अपने मन से गढ़ते-गुनते हैं. अंडरवर्ल्ड (Underworld) में ध्रुवतारे की तरह उगा अशोक सम्राट ‘आतंक राज’ का सुख ज्यादा दिनों तक नहीं भोग पाया. 5 मई 1995 को काल के गाल में समा गया.

मुक्ति मिली, दाग नहीं मिटे
अंडरवर्ल्ड की जानकारी रखने वालों की मानें, तो ब्रह्मर्षि समाज से रहने के बावजूद तब के सवर्ण सरगनाओं के सिंडिकेट (Syndicate) से अलग हथियार चमकाने का खामियाजा उसे मौत के रूप में भुगतना पड़ गया. ‘जंगल राज’ के खात्मे के बाद बिहार (Bihar) में ‘कानून का राज’ और ‘सुशासन’ कायम हुआ तब सरगनाओं की पहचान पहले ‘बाहुबली’ और फिर ‘समाजसेवी’ की बन गयी. अपराध जगत से सीधा लगाव-जुड़ाव लगभग खत्म हो गया. प्रायः सब के सब ठेकेदारी (Contracting) के धंधे से जुड़ गये. राजनीति (Politics) में पांव जमाने लग गये. आरोपों-अभियोगों से करीब-करीब मुक्ति भी मिल गयी. लेकिन, दाग नहीं मिटे हैं. सूरजभान सिंह (Surajbhan Singh) और नरेंद्र सिंह उर्फ बोगो सिंह (Narenda Singh urf Bogo Singh) को ‘माननीय’ बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. रामलखन सिंह की ऐसी अनेक कोशिशें नाकामयाब रहीं. तब उनका कायांतरण पैतृक गांव बिहट के ही एक मठ के महंत के रूप में हो गया. लेकिन, ठेकेदारी और राजनीति से विरक्ति नहीं हुई. सक्रियता पूर्व की तरह ही बनी है. ठेकेदारी को मुख्य पेशा बना रखे रतन सिंह जिला परिषद (Zila Prishad) की राजनीति में रम गये. अकेले ही नहीं, पत्नी वीणा देवी (Veena Devi) के साथ. नयी व्यवस्था वाली जिला परिषद का प्रथम अध्यक्ष भी बने. अध्यक्ष बनने का सौभाग्य वीणा देवी को भी प्राप्त हुआ. लोगों को हैरानी होती है कि जिला परिषद से ऊपर की राजनीति के लिए इन्होंने कभी कोई कारगर कोशिश क्यों नहीं की. जुड़ाव राजद (RJD) से है. चुनावों में उम्मीदवारी की बात दूर, दलीय संगठन में भी कोई सम्मानजनक पद नहीं मिला. वैसे, उन्हें सुकून इससे अवश्य मिलता होगा कि दामाद रजनीश कुमार (Rajnish Kumar) की पहचान भाजपा के बड़े नेता की है. वह इस पार्टी के विधान पार्षद भी रहे हैं.


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वह दौर गैंगवार का था
वह गैंगवार का दौर था. वर्चस्व के लिए खून-खराबे का दौर. अघोषित मोर्चाबंदी रामलखन सिंह बनाम अशोक सम्राट (Ashok Samrat) की थी. जानकारों के मुताबिक़ सूरजभान सिंह (Surajbhan Singh) के ‘गुरु’ रहने की वजह से रामलखन सिंह (Ramlakhan Singh) अपेक्षाकृत अधिक ताकतवर तो थे, पर आधुनिक हथियारों के मामले में अशोक सम्राट भारी पड़ रहा था. उसके पास प्रतिबंधित एके 47 राइफल थी. कहां से और कैसे उसके ठिकाने पर आयी इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है. वैसे, कहा जाता है कि पंजाब (Punjab) के खालिस्तानियों ने उपलब्ध करायी थी. वर्तमान में संत के रूप में कथा बांच रहे पूर्व पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय (Gupteshwar Pandey) बेगूसराय के पुलिस अधीक्षक (SP) थे. इस रूप में संभवतः पहली पदस्थापना थी. जोश से लबालब थे. उस समय एके 47 राइफल बिहार के अपराध जगत के लिए बड़ा हथियार था. अब तो सस्ते देशी कट्टे की तरह उपलब्धता आसान हो गयी है. (जारी)

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