तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

वहां है करोड़पति कुत्तों की जमींदारी!

शेयर करें:

तापमान लाइव ब्यूरो
02 मई 2023

PATNA : यह कोई गप या कटाक्ष नहीं है, वाकई गुजरात (Gujarat) में करोड़पति कुत्ते बसे हुए हैं. बनासकांठा (Banaskantha) जिले के कुशकल गांव में उनकी ‘जमींदारी’ है. स्वाभाविक रूप से उन्हें खाने के लिए भटकना नहीं पड़ता है. गांव (Village) वाले बड़े प्यार से उन्हें खाना खिलाते हैं. स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं. इन कुत्तों (Dogs) की सेवा ग्रामीणों के लिए सामाजिक दायित्व की तरह है. गांव के लिए यह एक परंपरा-सी है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही है. कुत्ते पांच से छह के छोटे झुंड में बड़ी शान से दौड़ते-कूदते हैं. वर्तमान पीढ़ी के माता-पिता और दादा-दादी इन कुत्तों की देखभाल करते थे. अब उस जिम्मेवारी को इस पीढ़ी के लोग निभा रहे हैं. कुत्तों को लोग खिचड़ी, रोटी और दूध खिलाते-पिलाते हैं. तकरीबन दो सौ कुत्तों का कुनबा है. गांव के बाहर सड़क (Road) से सटी 26 बीघा का भूखंड है.

तीन सौ वर्षों से है स्वामित्व
इस जमीन पर लगभग तीन सौ वर्षों से इन्हीं कुत्तों का स्वामित्व है. इसलिए इन्हें ‘जमींदार’ (Landlord) माना जाता है. वैसे, यह भूमि ‘समस्त गांव कुतरानी समिति’ के नाम से निबंधित है, जो कुत्तों की देखरेख करती है. समिति (Samiti) के 12 सदस्य हैं. वे सब जमीन के संरक्षक हैं, मालिक नहीं. कुत्तों की देखभाल और जमीन पर खेती के बारे में निर्णय समिति लेती है. गांव के लोग गर्व से कहते हैं कि उनके गांव के कुत्ते करोड़पति (Karorpati) हैं. जानकारों के मुताबिक मुगलकाल में गांव वालों के पास कुत्तों को खिलाने के लिए संसाधन नहीं थे. मदद के लिए ग्रामीण नवाब तालिब मोहम्मद खान (Talib Mohhamad Khan) के पास गये. नवाब ने कुत्तों को रखने के लिए जमीन का एक टुकड़ा दे दिया. वही यह जमीन है.

सरकार कोे नहीं मिली जमीन
स्थानीय प्रशासन ने एक बार हम जमीन को खरीदने की कोशिश की. गांव वालों के मुताबिक 20 साल पहले जिलाधिकारी (DM) ने जमीन खरीदने का प्रस्ताव रखा था. ‘समस्त गांव कुतरानी समिति’ ने उसे नकार दिया. तर्क यह कि भूमि धार्मिक कार्यों के लिए है, कुत्तों के लिए है. इसे सरकार (Government) को क्यों दिया जाये? पिछले कुछ वर्षों में जमीन की कीमत में काफी वृद्धि हुई है. बाईपास (Bypass) सड़क उस जमीन के पास से गुजरती है. गांव (Village) में बदलाव की हवा भी बह रही है. ग्रामीण व्यावहारिक हैं. भूमि बर्बाद नहीं होती है. हर साल किसान (Farmer) खेती के लिए इसकी बोली लगाते हैं. अधिक बोली वाले को फसल उगाने की अनुमति मिलती है. उस पैसे को कुत्तों के कल्याण के लिए स्थापित ट्रस्ट (Trust) में जमा किया जाता है.


यह भी पढ़ें :
ज्योतिष शास्त्र : खर्च की सीमा नहीं सिंह राशि वालों की
घर के मंदिर में नहीं रखें ये मूर्तियां


ऐसे मनाते हैं खुशखबरी पर जश्न
सूरज ढलना शुरू होता नहीं कि गांव के चौराहे पर एक ऊंचे चबूतरे पर कुत्ते खुद-ब-खुद पहुंच जाते हैं. बड़े पिंजड़ों में भोजन करते हैं. कुत्तों के लिए भोजन तैयार करना ग्रामीण जीवन का अनिवार्य अंग है. गांव का एक परिवार (Family) रोज पांच किलो बाजरे या गेहूं की रोटियां बनाकर कुत्तों को खिलाता है. खाना खिलाने की जिम्मेदारी महिलाओं की होती है. मोटी रोटियां बनाने में दो घंटे का समय लगता है. इसकी तैयारी दोपहर से ही करनी पड़ती है. नयी बहूओं के लिए यह नया अनुभव होता है. धीरे-धीरे वे भी इस दिनचर्या को स्वीकार कर परंपरा को आगे बढ़ाती हैं. गांव के जिस चबूतरे पर कुत्तों को खाना खिलाया जाता है उसके ठीक सामने एक किराना (Kirana) स्टोर है. गांव वालों के मुताबिक जब भी किसी को कोई खुशखबरी मिलती है तो वह यहां कुत्तों को खिलाकर जश्न मनाते हैं. कभी-कभी दुकानों से बिस्किट (Biscuit) खरीदकर खिलाते हैं.

प्रेम कुछ अधिक गहरा है
शाम के करीब पांच (Five) बजे कुत्तों को रात का खाना परोसा जाता है. कुछ कुत्ते भोजन करने नहीं आते हैं. इसलिए कि इधर-उधर मुंह मारने से उनका पेट (Abdomen) भर चुका होता है. अनेक परिवार अपने घरों के बाहर कुत्तों के खाने के लिए मिट्टी के बर्तन रखते हैं. त्योहारों के दिन ‘समस्त गांव कुतरानी समिति’ द्वारा मंदिर (Mandir) के मैदान में कुत्तों का भोजन तैयार किया जाता है. खिचड़ी, हलवा और दूध की कुछ चीजें. कुशकल गांव (Kushkal Village) में जानवरों के प्रति प्रेम कुछ अधिक गहरा है. बच्चों, उनके माता-पिता और दादा-दादी के लिए कुत्तों का परिवार है. किस मुहल्ले में कितने कुत्ते हैं और किसने कितने बच्चे पैदा किये है यह भी सबको मालूम रहता है. गांव वाले छोटे पिल्लों के साथ खेलते हैं और उनकी जरूरतों पर ध्यान रखते हैं. कुत्ते गांव की गलियों में गश्त लगाते हैं और घरों की रखवाली करते हैं.

#TapmanLive

अपनी राय दें