तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

जाति आधारित गणना : क्या दर्शाते हैं रोहिणी आयोग के आंकड़े?

शेयर करें:

बिहार में जाति आधारित गणना का मामला उलझ गया-सा दिखता है. उससे संबंधित किस्तवार आलेख की यह पांचवीं कड़ी है :


महेन्द्र दयाल श्रीवास्तव
09 मई 2023

PATNA : जाति आधारित गणना (Caste Based Enumeration) का निर्णय उपेक्षितों-वंचितों के हक की चिंता का हिस्सा है या राजनीति का, यह नहीं कहा जा सकता. पर, यह निर्विवाद तथ्य है कि राष्ट्रीय स्तर पर आरक्षण (Reservation) के बहुत बड़े हिस्से पर संपन्न-समृद्ध व प्रभावशाली जातियों का ही कब्जा है. अज्ञानता कहें या अक्षमता, पिछड़े समुदायों की अधिसंख्य जातियों को समान रूप से इसका लाभ नहीं मिल रहा है. पिछड़ा वर्ग (Backward Class) की श्रेणी में अनेक ऐसी जातियां हैं, जिनकी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक हैसियत सवर्ण समाज के ऐसे ही तबके से रत्ती भर कम नहीं है. दूसरी तरफ इसी वर्ग में अधिसंख्य जातियां ऐसी हैं जिनके जीवनयापन का कोई न्यूनतम स्तर नहीं है. दीन-हीन, बुद्धि-बल हीन. हाशिये पर पड़ीं इन जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिले, मुट्ठीभर जातियों की ही मुट्ठी में यह जकड़ा नहीं रहे, इसे सुनिश्चित करने के लिए नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कारगर पहल की.

टी रोहिणी

उपवर्गीकरण की पहल
02 अक्तूबर 2017 को पिछड़ा वर्ग से आने वाली दिल्ली उच्च न्यायालय की अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी (Chief Justice G. Rohini)की अध्यक्षता में चार सदस्यीय आयोग का गठन हुआ. ऐसा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) की पहल पर हुआ. रोहिणी आयोग को मुख्य रूप से यह चिन्ह्ति करने की जिम्मेवारी दी गयी कि पिछड़ा वर्ग की केन्द्रीय श्रेणी में शामिल किन-किन जातियों को आरक्षण का अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा है. साथ में पिछड़ी जातियों के उपवर्गीकरण के लिए नियम, मानदंड और मानक तय करने एवं केन्द्रीय सूची की संबंधित जातियों की पहचान कर उन्हें उपश्रेणियों में बांटने को भी कहा गया.

चौंकाने वाले आंकड़े
कार्यकाल में कई विस्तार के बाद भी रोहिणी आयोग ने अब तक अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है. उसका वर्तमान विस्तारित कार्यकाल 31 जुलाई 2023 को समाप्त हो जायेगा. उससे पहले रिपोर्ट मिल जाने की बात कही जा रही है. हालांकि, उच्च स्तर पर चर्चा यह भी है कि आयोग ने 2018 में ही रिपोर्ट सौंप दी थी. सामाजिक एवं राजनीतिक कारणों से रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाने का बहाना-दर-बहाना बनाया जा रहा है. जो हो, इन वर्षों में रोहिणी आयोग ने जो आंकड़े इकट्ठा किये वे बेहद चाैंकाने वाले हैं.


ये भी पढ़ें :
जाति आधारित गणना : तब ऐसा कोई फार्मूला लागू होता?
जाति आधारित गणना : ‘प्रभु वर्ग’ का बड़ा स्वार्थ!
जाति आधारित गणना : कमजोर पड़ जायेगा तब…


हड़प लिया 10 जाति समूहों ने
रोहिणी आयोग के सूत्रों के मुताबिक दस वर्षों के आकड़ों के विश्लेषण का निष्कर्ष है कि पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 27 प्रतिशत आरक्षण के एक-चौथाई हिस्से का लाभ 10 जाति समूहों ने हड़प लिया. दो-तिहाई फायदा 27 जाति समूहों को मिला. तीन-चौथाई का लाभ 100 जाति समूहों ने उठाया. यहां यह जानने की जरूरत है कि पिछड़ा वर्ग की केन्द्रीय सूची में 02 हजार 633 जातियां हैं. उनमें 02 हजार 486 जातियों को आरक्षण के सिर्फ पांचवें हिस्से का लाभ मिला. इनमें एक हजार से ज्यादा ऐसी जातियां हैं जिन्हें आरक्षण का कभी कोई लाभ नहीं मिला है, कहीं कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. रोहिणी आयोग ने पिछड़ा वर्ग की केन्द्रीय सूची में शामिल जाति समूहों को चार उपश्रेणियों और एक विशेष उपश्रेणी में रखने का फार्मूला तैयार किया.

यह है आरक्षण प्रारूप आरक्षण-प्रारूप
पिछड़ा वर्ग की जातियों के उपवर्गीकरण के बाद 27 प्रतिशत आरक्षण में उपश्रेणी एक के लिए 02, उपश्रेणी दो के लिए 06, उपश्रेणी तीन के लिए 09 एवं उपश्रेणी चार की जातियों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रारूप बनाया. पहली उपश्रेणी में 01 हजार 674 जातियों को रखा गया. मुख्यतः उन उपेक्षित पिछड़ी जातियों को जिन तक आरक्षण का लाभ आज तक नहीं पहुंच पाया है. दूसरी उपश्रेणी में 534 जातियां हैं. तीसरी में 328 और चौथी में 97 जातियों को शामिल किया गया है. इन 97 जातियों में ही पिछड़ों का नवोदित ‘प्रभु वर्ग’ भी है. इन जातियों की आबादी अधिक है, इसलिए हिस्सेदारी उसी अनुपात में तय की गयी है.

अगली कड़ी
जाति आधारित गणना : 33 वर्ष कम होते हैं क्या?

अपनी राय दें