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बागेश्वर धाम: कैसे और क्यों पहुंच जाते हैं इतने सारे लोग?

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बहुचर्चित बागेश्वर बालाजी धाम और पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री से संबंधित किस्तवार आलेख की यह तीसरी कड़ी है :

राजकिशोर सिंह
25 मई 2023
Bageshwar dham : बागेश्वर बालाजी धाम में अर्जी लगाने का भी यहां एक अलग विधान है. इसके लिए लोग अलग-अलग रंग के कपड़े में अर्जी के साथ मन्नत (Prayer) का नारियल बांध एक बड़े से पेड़ में लटका देते हैं. कामना सिद्धि (Wish Fulfillment) के लिए लाल, प्रेत-बाधा मुक्ति के लिए काला, विवाह एवं अन्य मांगलिक कार्य के लिए पीला, पितरों को मोक्ष के लिए सफेद कपड़ों में नारियल (Coconut) बांध अर्जी लगाने का विधान है. बागेश्वर धाम सरकार (Bageshwar Dham Sarkar) के मुताबिक प्रावधान यह भी है कि जो भक्त बागेश्वर धाम आने में असमर्थ हैं वे अपने घर में भी अर्जी लगा बालाजी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं. ऐसे लोगों को कहा जाता है कि लाल रंग के कपड़े में नारियल एवं पांच लौंग बांध बागेश्वर धाम बालाजी सरकार सद्गुरु संन्यासी बाबा का ध्यान कर घर के मंदिर या पूजा स्थान पर रख दें. ‘ओम बागेश्वराय नमः’ मंत्र की एक माला का जप करें.

यह है स्वीकृति का संकेत
चार दिनों के बाद परिवार के किसी सदस्य को लगातार दो दिनों तक सपने में बंदर दिखायी दे तो उसे बालाजी सरकार के चरणों में अर्जी की स्वीकृति का संकेत (Signal) माना जाता है. ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय बाद उन्हें बागेश्वर धाम सरकार का बुलावा आ जाता है. बागेश्वर धाम पर अर्जी (Arjee) का लगना ही महत्वपूर्ण है. अर्जी लगने का मतलब है कि आप बागेश्वर धाम बालाजी के दरबार में किस भाव से आये हैं, मन में किस समस्या को लेकर चिंतन-मनन चल रहा है, किन व्याधियों से घिरे हुए हैं इत्यादि प्रश्न बिना बताये ही बागेश्वर धाम सरकार धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री (Dhirendra Krishn Shastri) द्वारा एक पर्ची पर लिखकर पहले से रख दिया जाता है. सरकार के सामने जाने पर समस्या की एक पंक्ति बताते ही वह संपूर्ण विवरण लिखित रूप में प्रस्तुत कर देते हैं.

सिद्धि पर सवाल
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की इस सिद्धि का रहस्य (Mystery)जानने का प्रयास अनेक लोगों ने किया. अंधश्रद्धा निमूर्लन समिति द्वारा सिद्धि पर सवाल उठाये जाने के बाद एक साथ कई खोजी पत्रकार (Investigative Reporter) बाला जी धाम पर पहुंचे. ‘चमत्कृत’ होकर लौटे. दरबार में उपस्थित दो अपरिचित-अंजान श्रद्धालुओं को बालाजी सरकार के समक्ष ले गये. समान अनुभूति हुई, लेकिन रहस्य नहीं जान पाये. महत्वपूर्ण बात यह कि इस रहस्य को न तो वैज्ञानिक (Scientist) सुलझा पाये हैं और न शोधकर्त्ताओं (Researchers) को कोई ठोस सुराग मिला है. इससे सनातनियों की इस धारणा को मजबूती मिली है कि विज्ञान सीमित है, अध्यात्म (Spirituality) की कोई सीमा नहीं है.

बागेश्वर धाम की है यह राह.

समाधान के हैं दो रास्ते
यहां यक्ष प्रश्न यह है कि दूसरी जगहों पर बार-बार छले जाने, झाड़-फूंक, जादू-टोना और तंत्र-मंत्र में माथा मुड़ा जाने के बाद भी ‘दिव्य दरबार (Divya Darbar)’ जैसे कार्यक्रमों में इतनी बड़ी संख्या में लोग कैसे और क्यों पहुंच जाते हैं? इसका जवाब बहुत कठिन है. यह हर कोई जानता है कि समस्याओं को समझने और समाधान खोजने के मुख्यतः दो रास्ते हैं. एक विज्ञान का और दूसरा धर्म का. पर, दोनों की समझ में बुनियादी (Basic) फर्क है. विज्ञान अपनी बातें प्रमाण के आधार पर कहता है. गलत होने की बात भी करता है. धर्म में ऐसी गुंजाइश नहीं के बराबर है. लेकिन, कभी-कभार लोग इन दोनों रास्तों से अलग अंधविश्वास (Superstition) की राह बढ़ जाते हैं. यह उनकी कमजोरी है. इसी कमजोरी का फायदा तांत्रिक-मांत्रिक और बाबा लोग उठा रहे हैं.


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सिर्फ सनातन धर्म के खिलाफ क्यों?
भारत का संविधान (Constitution) वैज्ञानिक चेतना की बात करता है, पाखंड की नहीं. लेकिन, बागेश्वर धाम सरकार के मामले में एक तबके में जो बौखलाहट दिखी उससे सनातन धर्मावलंबियों की आस्था (Faith) निःसंदेह आहत हुई है. इस बात से कुछ अधिक कि ऐसी बौखलाहट और चिल्लाहट सिर्फ सनातन धर्म (Sanatan Dharm) के खिलाफ क्यों होती है? क्या दूसरे धर्मों में ऐसी अंधश्रद्धा, अंधविश्वास और पाखंड नहीं है? सनातन धर्मावलंबियों के इस संदेह को यही सवाल पुष्ट बनाता है कि सबकुछ सुनियोजित है. विदेशी विचार और विदेशी धन से संचालित है. धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री सनातनी संस्कार की रक्षा में लगे हैं. इसलिए उन पर हमले हो रहे हैं. रामचरित मानस (Ramcharit Manas) की कुछ चौपाइयों पर उठे विवाद को भी इसी का एक हिस्सा माना जा रहा है.

इसलिए हो रहा विरोध
बजरंगवली  (Bajrangwali) के बड़े भक्त पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री लगभग एक दशक से देश के अलग- अलग जगहों पर रामकथा और हनुमान कथा कर रहे हैं. बागेश्वर धाम में दिव्य दरबार लगा रहे हैं. सनातन विरोधियों के खिलाफ मुखर हैं. इसको लेकर पहले कभी किसी के पेट में दर्द नहीं हुआ. उन्होंने धर्म परिवर्तन रोकने और भटक गये हिन्दुओं को सनातन धर्म में लौटाने का काम शुरू किया, व्यास पीठ से समाज और धर्म के सामने खड़ी चुनौतियों से लड़ने का आह्वान किया तो ये सब राष्ट्र विरोधी और सनातन विरोधी गिरोहों की आंखों में शूल की तरह चुभने लग गये. यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री ने मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) के पन्ना जिले में आदिवासियों के ठठ कलदा पहाड़ पर पड़ाव डाला, रामकथा के उपरांत अनेक लोगों की अपने धर्म में वापसी (Return to Religion) करायी तो दमोह में रामकथा के दौरान तकरीबन दो सौ लोगों को फिर से सनातन से जोड़ा. उसके बाद ही आक्रामक हो इन गिरोहों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

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