फरकिया : समृद्धि मुंह चिढ़ाती है, खुशहाली खिलखिलाती है…
राहत रंजन
23 जुलाई 2023
Khagaria : मां कात्यायनी स्थान (Maa katyayani Sthan) का महात्म इस रूप में चर्चित-वर्णित है कि यह 51 शक्ति पीठों (Shakti Peethas) में एक है. ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर सती की दांयी भुजा गिरी थी. इस शक्ति पीठ की खोज के संदर्भ में कई कथाएं हैं, कई तरह की व्याख्याएं हैं. संभवतः स्कंद पुराण में भी इसकी चर्चा है. मां कात्यायनी स्थान के मुख्य पुजारी विजेन्द्र भगत (Vijendra Bhagat) की मानें तो वहां मंदिर का निर्माण 1835 में हुआ था. इसके प्रथम पुजारी तियर समाज के बिकाऊ प्यारे (Bikaoo Pyare) थे. तब से यह विरासत पीढ़ी-दर-पीढ़ी उनके ही परिवार के लोग संभाल रहे हैं. विजेन्द्र भगत उसकी नवीनतम कड़ी बताये जाते हैं. पुजारी का काम ‘फुलाइश’ कराना होता है. पूजा-पाठ पंडित कराते हैं.
दक्षिणा के लिए तकरार
स्थानीय लोगों की पंचायत ने पंडित की श्रेष्ठता स्थापित कर रखी है. तब भी दक्षिणा को लेकर पुजारी और पंडित के बीच अक्सर तकरार होती रहती है. दक्षिणा में स्थानीय दबंग भी हिस्सेदारी लेते हैं. मंदिर का निर्माण किसने कराया, इसको लेकर भी दावे-प्रतिदावे हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक ‘पुश्तैनी पुजारी’ होने के नाते तियर समाज इसे अपनी ‘जागीर’ समझता है तो चौथम राज (Chautham Raj) के वंशज मां कात्यायनी को कुलदेवी बता वहां प्रभुत्व कायम करना चाहते हैं. 1901 के सर्वे का हवाला देते हुए पूर्व जिला पार्षद अरुण यादव कहते हैं कि पहले जो हुआ सो हुआ, फिलहाल मंदिर परिसर रेलवे (railway) की जमीन पर है इसलिए भी यह सार्वजनिक है, किसी की ‘जागीर’ नहीं है.
किसी का एकाधिकार नहीं
दूसरी तरफ न्यास समिति (trust committi) के उपाध्यक्ष युवराज शंभु का कहना है कि मंदिर का कुछ ही हिस्सा रेलवे की जमीन पर है, शेष दान में मिली जमीन पर है. वह सहज स्वीकार करते हैं कि मंदिर का निर्माण सार्वजनिक सहयोग से हुआ है इसलिए इस पर किसी का एकाधिकार नहीं बनता है. संभवतः यह मामला अदालत में है.
पहला दूध मां पर
मंदिर में मां कात्यायनी की दायीं भुजा पर दूध (Milk) चढ़ाने की पौराणिक परंपरा है. इस वजह से उन्हें ‘दूध की देवी’ भी कहा जाता है. सिर्फ कोशी क्षेत्र के ही नहीं,आसपास के कई जिलों के पशुपालकों की गायें जब बच्चा देती हैं तो ‘बीसतौरी’ के बाद वे पहला दूध मां कात्यायनी पर चढ़ाते हैं. ऐसी मान्यता है कि दूर-दराज से ऐसे जो भी श्रद्धालु शुद्ध अंतर्मन से आते हैं उनका दूध खराब नहीं होता. मुख्य पुजारी विजेन्द्र भगत की मानें तो दूध के साथ दही-चूड़ा और गांजा चढ़ाने का भी रिवाज है. गांजा अब चढ़ाया जाता है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता. श्रद्धालु गाय के दूध से मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना के बाद दही-चूड़ा एवं बताशे का भोग लगा ब्राह्मणों एवं दरिद्रनारायणों को भोजन कराते हैं. उस दौरान स्थानीय लोकगीत ‘आरहयिन’ का गायन होता है जिसमें माता रानी की महिमा का बखान है.
सोमवार व शुक्रवार को विशेष पूजा
मां कात्यायनी स्थान में हर सोमवार एवं शुक्रवार को विशेष पूजा होती है, जिसे स्थानीय लोग वैरागन कहते हैं. दोनों दिन भारी मेला लगता है, हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. एक अनुमान के मुताबिक यह संख्या 50 हजार से एक लाख के आसपास तक पहुंच जाया करती है. चढ़ावे के तौर पर प्रति वैरागन 50 हजार से सवा लाख रुपये तक की राशि संग्रहित होती है. जानकारों की मानें, तो श्रद्धालुओं की संख्या के अनुपात में यह राशि घटती-बढ़ती रहती है. इसके अलावा ढाई सौ ग्राम से एक किलोग्राम तक चांदी और सोना की झांपी चढ़ायी जाती है.
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नाले में बह जाता है दूध
मां कात्यायनी मंदिर न्यास समिति (Maa Katyayani Temple Trust Committee) के पूर्व सदस्य विद्यानंद यादव के मुताबिक हर वैरागन औसतन 20 क्विंटल दूध मां कात्यायनी पर चढ़ता है जो नाले में बह जाया करता है. विद्यानंद यादव लम्बे समय से समिति के सदस्य हैं. वह इस बात पर चिंता जताते हैं कि न्यास समिति के खाते में 37 लाख के आसपास रुपया रहने के बाद भी मंदिर परिसर का अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है. बताया जाता है कि चूड़ा-दही के चढ़ावे से तकरीबन 50 हजार रुपये की आमदनी होती है. इसके अलावा दानपेटी भी है जिसमें श्रद्धालु गुप्त दान करते हैं. दानपेटी को महीने-डेढ़ महीने पर खोला जाता है. औसतन डेढ़ से दो लाख रुपये उससे निकलते हैं. हवन आदि की राशि और दुकानदारों से वसूली से भी अच्छी आय होती है.
आमदनी पर विवाद
कहते हैं कि मां कात्यायनी मंदिर की यही आमदनी इन दिनों विवाद का मुद्दा बना हुआ है और इससे जुड़े लोग एक दूसरे पर राशि हड़पने का आरोप मढ़ रहे हैं. विवाद का जातीय आधार भी है. रोहियार पंचायत (Rohiyar Panchayat) में तीन गांव हैं- तियर (बिंद) बहुल बरकुण्डा, यादव बहुल रोहियार और कुशवाहा बहुल बंगलिया. मंदिर के सेवायत (पुजारी) तियर जाति से होते रहे हैं. पहले इन्हीं तीन जातियों में वर्चस्व की अंदरूनी जंग छिड़ी थी. बाद के वर्षों में इसका स्वरूप बदल गया.
तब विवाद नहीं उभरा
जानकारों की मानें तो स्थानीय स्तर पर मंदिर न्यास समिति थी जो मां कात्यायनी स्थान की देखरेख करती थी. उस समिति पर तियर जाति का प्रभुत्व था. इसी जाति के सुरेन्द्र भगत के अध्यक्ष कार्यकाल तक कभी कोई बड़ा विवाद नहीं उभरा. इसकी दो वजह हो सकती है. या तो व्यवस्था बिल्कुल दुरुस्त थी, आय-व्यय में कहीं कोई छेद नहीं थी या फिर तमाम प्रभावशाली लोग मिल जुलकर ‘उपभोग’ कर रहे थे. इसको लेकर स्थानीय स्तर पर कई तरह की बातें की जाती हैं. तियर समाज के प्रभुत्व को खत्म करने की अप्रत्यक्ष कोशिश भी खूब होती थी.
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