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फरकिया : जातिवादी सोच ने रोक रखी है विकास की राह !

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राहत रंजन
24 जुलाई 2023

Khagaria : सोनबरसा  (Sonbarsa) गांव निवासी पूर्व जिला पार्षद अरुण यादव (Arun Yadav) मां कात्यायनी स्थान का इतिहास लिख रहे हैं. ‘कात्यायनी महात्म’ नाम से उसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने की उनकी योजना है. अरुण यादव का कहना है कि विवाद की शुरुआत बीसवें दशक में हुई. तियर समाज के लोगों ने बिहार धार्मिक न्यास पर्षद में आवेदन दे अधिकार स्थापित करने के लिए अपनी कमेटी बना ली. परन्तु, बिहार धार्मिक न्यास पर्षद ने इसे अपने नियंत्रण में लिया तो मां कात्यायनी (Maa Katyayani) स्थान को पुश्तैनी नहीं, सार्वजनिक माना और उक्त कमेटी को भंग कर दिया.

रास नहीं आयी समिति
उस वक्त किशोर कुणाल (Kishor Kunal) बिहार धार्मिक न्यास पर्षद के मुख्य प्रशासक थे. उन्होंने नयी कमेटी बनायी और तियर (बिंद) समाज के ही सुरेन्द्र भगत (Surendra Bhagat) को उसका अध्यक्ष नामित कर दिया. हालांकि, यह समिति 18 माह ही अस्तित्व में रह पायी. उसके बाद 2015 में खगड़िया के अनुमंडलाधिकारी की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय न्यास समिति गठित हुई, जिसमें युवराज शंभु को उपाध्यक्ष का पद मिला. कहा जाता है कि सुरेन्द्र भगत को यह समिति रास नहीं आयी. वह मामले को बिहार धार्मिक न्यास पर्षद (Bihar Religious Trust Board) में ले गये.

जातीय गोलबंदी
इस बीच क्षत्रिय समाज (Kshatriya Samaj) के युवराज शंभु की बढ़ी सक्रियता ने स्थानीय स्तर पर जातीय गोलबंदी की पृष्ठभूमि तैयार कर दी. स्थानीय लोगों के मुताबिक मंदिर पर वर्चस्व के लिए पहले तियर, यादव (Yadav) और कुशवाहा समाज  (Kushwaha Samaj) के महत्वाकांक्षी लोग आपस में टकराते थे, वे सब युवराज शंभु के सवाल पर एक हो गये और 19 मार्च 2018 को उन्हें और उनके समर्थक सदस्यों को वहां से खदेड़ दिया. उस उग्र आंदोलन के नेतृत्वकर्त्ताओं में पूर्व जिला पार्षद मिथिलेश यादव और रोहियार पंचायत के पूर्व मुखिया विजेन्द्र यादव भी शामिल थे.

“दूध की देवी” मां कात्यायनी.

बाद में पड़ गये नरम
बताया जाता है कि स्थानीय स्तर पर युवराज शंभु से ‘निबट’ लेने के बाद मंदिर पर काबिज होने के लिए नेतृत्वकर्त्ताओं में ही जंग छिड़ गयी. परिणाम यह निकला कि पूर्व जिला पार्षद मिथिलेश यादव और पूर्व मुखिया विजेन्द्र यादव का रुख न्यास समिति के उपाध्यक्ष युवराज शंभु के प्रति नरम पड़ गया.सींगें रोहियार पंचायत (Rohiyar Panchayat) के तत्कालीन मुखिया विजेन्द्र यादव और सरपंच भरत कुमार यादव (Bharat Kumar Yadav) की फंस गयीं. भरत कुमार यादव भारी दिखे. वर्तमान में इस पंचायत के मुखिया भुजुंगी यादव (Bhujungi Yadav) और सरपंच विनोद यादव (Vinod Yadav) हैं.

और बदतर हो गयी स्थिति
खगड़िया जिला परिषद के उपाध्यक्ष रहे जिला पार्षद मिथिलेश यादव (Mithilesh Yadav) का कहना रहा कि युवराज शंभु (Yuvraj Shambhu) द्वारा इतिहास को तोड़-मरोड़ कर मां कात्यायनी स्थान को पुश्तैनी साबित करने की कोशिश की प्रतिक्रिया में वह बखेड़ा खड़ा हुआ था. लेकिन, बाद में स्पष्ट हुआ कि उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं थी. जहां तक मां कात्यायनी मंदिर की बात है, तो उक्त प्रकरण के बाद स्थिति और भी बदतर हो गयी है. पूर्व मुखिया विजेन्द्र यादव (Vijender Yadav) का भी ऐसा ही कुछ कहना रहा. वर्चस्व की इस होड़ में न्यास समिति के पूर्व सचिव रामानंद सदा (Ramanand Sada) और पूर्व कोषाध्यक्ष चंदेश्वरी राम  (Chandeshwari Ram) ‘तटस्थ’ रहे.


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मजबूर हैं लोग
उधर, तमाम घोषणाओं एवं आश्वासनों के बावजूद कोशी एवं बागमती नदियों पर सड़क पुल का मामला अधर में ही अटका है. सरकार ने इन पुलों के निर्माण का आश्वासन 2013 के धमारा घाट (Dhamara Ghat) रेलवे स्टेशन हादसे के बाद दिया था. नौ साल गुजर जाने के बाद भी वह उसी रूप में है. इधर, सरकार कहने लगी है कि उसने ऐसा कभी कोई आश्वासन नहीं दिया है और न घोषणा की है. वर्तमान में सड़क मार्ग से गुजरना जान जोखिम में डालने के समान है. लोग जोखिम उठाने को मजबूर हैं.

खत्म नहीं हुआ खतरा
बागमती (Bagmati) एवं कोशी (Koshi) पर छोटी रेल लाइन का पुल है. आमान परिवर्तन के बाद रेलवे ने जर्जरता के मद्देनजर इन दोनों पुराने पुलों को ‘उपयोग के लायक नहीं’ करार दिया. स्थानीय लोगों ने उन दोनों ‘रिटायर पुलों’ पर लोहे का चदरा एवं लकड़ी का पटरा रख आवागमन की कामचलाऊ व्यवस्था कर ली. तब भी खतरा खत्म नहीं हुआ. खासकर बागमती के ‘रिटायर पुल’ पर. इसलिए कि यह व्यवस्था आधी-अधूरी ही है. रेलवे का ‘अनापत्ति-पत्र’ नहीं मिलने के कारण जिला प्रशासन ने हाथ बांध रखा है.

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