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देवघर : शुद्धता की कहीं कोई गारंटी नहीं

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देवव्रत राय
05 अगस्त 2023

Deoghar : बैद्यनाथ धाम (Baidyanath Dham) पहले जंगली क्षेत्र में था. उस कालखंड में जंगली बेर का चूर्ण, जिसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है, वहां का प्रसाद हुआ करता था. कुछ श्रद्धालु प्रसाद के तौर पर आज भी वह चूर्ण खरीदते हैं. लेकिन, मुख्य प्रसाद अब पेड़ा हो गया है. मुकुनदाना और रायपुरी चूड़ा को सह प्रसाद की मान्यता मिली हुई है. मुख्य प्रसाद के रूप में पेड़ा का काफी महत्व है इसलिए इसका कारोबार बड़े पैमाने पर हो रहा है. बाबा मंदिर और आस-पास के इलाके में सैकड़ों की संख्या में पेड़ा की दुकानें हैं. घोरमारा  (Ghormara) की तरह यहां भी खोआ और पेड़ा का निर्माण कुटीर उद्योग का रूप लिये हुए है. घोरमारा में पेड़ा व्यवसाय के अप्रत्याशित- अकल्पित फैलाव और सावन (Sawan) माह में बाबा नगरी की सख्त प्रशासनिक व्यवस्था से गंभीर रूप से प्रभावित होने के बावजूद सालाना तकरीबन 20 करोड़ का कारोबार होता है.

दबंगियत भी है इसमें
चूंकि व्यवसाय बहुत बड़ा है, इसलिए इसमें दबंगियत भी है. खासकर, खोआ के व्यवसाय में. जानकारों के मुताबिक शुरुआती दौर में केसरवानी समाज के लोग इस व्यवसाय से जुड़े थे और बाबा मंदिर के पश्चिम द्वार के निकट उनकी दुकानें थीं. इस वजह से उसका नाम पेड़ा गली पड़ गया. ऐसा कहा जाता है कि पेड़ा की पहली दुकान वहां भागीरथ साह (Bhagirath Shah) ने खोली थी. घोरमारा के सुखाड़ी मंडल (Sukhari Mandal) की तरह देवघर के भागीरथ साह का नाम भी दूर-दूर तक फैला है. भागीरथ साह के बाद केसरवानी समाज के ही गंगा साह, कन्हाई साह, सत्यनारायण साह, महावीर साह आदि कई लोगों ने इस व्यवसाय को अपना लिया. शुद्धता के मामले में इन सबकी भी कोई सानी नहीं थी.

देवघर में है इस नाम की धूम
वर्तमान में भी इन नामों से कई दुकानें चल रही हैं, जो उनके वारिसों की बतायी जाती हैं. भागीरथ साह के रिश्ते में पौत्र आनंद कुमार ने शिवम पेड़ा भंडार (Shivam Peda Bhandar) के नाम से अपनी अलग दुकान खोल रखी है. इस दुकान की भी प्रसिद्धि कायम हो गयी है. शिवम सिन्दूर का कारोबार भी उनका है. शिवम पेड़ा भंडार के बगल में भागीरथ साह एंड संस के नाम से पेड़ा की दुकान है, जिसे आनंद कुमार के पिता चलाते हैं. भागीरथ साह की मूल दुकान पेड़ा गली में ही है. इधर के दिनों में खोआ-पेड़ा व्यवसाय की कमाई से प्रभावित पंडा समाज के लोग भी इसमें कूद पड़े हैं. पूरे देवघर में इस समाज के लोगों की कई दुकानें हैं. उनमें झा जी पेड़ा भंडार का खूब नाम है. खोआ व्यवसाय पर मुख्य रूप से पंडा समाज ही हावी है.

खोआ कहां से आता है?
सवाल उठना स्वाभाविक है कि देवघर और घोरमारा के बड़े पेड़ा बाजार की जरूरत पूरा करने के लिए खोआ की उपलब्धता कैसे और कहां से होती है? इलाकाई उत्पादन क्षमता इतनी है? व्यवसाय से जुड़े लोग बताते हैं कि इलाकाई खोआ की अल्प आपूर्ति होती है. एक चौथाई से भी कम की. कुछ बड़े पेड़ा व्यवसायी खुद की छोटी-मोटी डेयरी चलाने का दावा करते हैं. उनके दावे में कितना दम है, यह नहीं कहा जा सकता. जानकारों की मानें तो बिहार (Bihar) के मोकामा-बड़हिया, उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी-मोगलसराय और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कान्दी से खोआ की जरूरत की पूर्त्ति होती है.

इस बात में है दम
सच क्या है यह कहना थोड़ा कठिन है, पर पेड़ा व्यवसायी ही अपने उत्पाद की शुद्धता सिद्ध करने के क्रम में मिलावट और कृत्रिम खोआ की बात करने से खुद को रोक नहीं पाते हैं. पेड़ा का निर्माण मशीन से होने की बात भी चर्चा में है. इस बात में दम दिखता है. इस रूप में कि पहले करीब-करीब सभी बड़ी दुकानों में पेड़ा निर्माण की प्रक्रिया दिखती थी. अब सीधे शो केस में पेड़ा सजे नजर आते हैं. पेड़ा निर्माण में मशीनीकरण (Mechanization) ने सैकड़ों लोगों को बेरोजगार कर दिया है. लेकिन, इस ओर किसी का ध्यान नहीं है.


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ऐसे होती है मिलावट
देवघर में आजकल केसरिया और मलाई वाले पेड़े की बिक्री होती है. इसकी शुद्धता कितनी है इसको जांचने-परखने वाला कोई नहीं है. सामान्य पेड़े में केसर के इत्र एवं पीला रंग डालकर उसे केसरिया पेड़ा के नाम से बेचा जा रहा है. उपभोक्ताओं को अमूमन शुद्ध पेड़ा चखाकर मिलावटी दे दिया जाता है. व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता में पेड़ा के कारोबारी जो रहस्य खोलते हैं उसके मुताबिक खोआ में मिल्क पाउडर, आरारोट, मैदा, शकरकंद का आटा, निम्नस्तरीय बिस्कुट का चूर्ण और भुर्रा की मिलावट होती है. संभवतः इसी वजह से पेड़ा के भाव में एकरुपता नहीं रहती है. कहीं 320 रुपये किलो बिकता है तो कहीं 220 रुपये.

अपवाद भी हैं कुछ
कीमत के इस अंतर में ही मिलावट का सच छिपा है. यदा-कदा गुणवत्ता की नमूना जांच में यह खुलकर सामने भी आ जाता है. इसके बावजूद इसकी निर्बाधता बनी हुई है. जिला प्रशासन (District Administration) इस पर अंकुश लगाने में असहाय दिखता है. गौरतलब है कि जिला प्रशासन के द्वारा हर साल श्रावणी मेला (Sravani Mela) के अवसर पर खोआ और चीनी की मात्रा के अनुरूप पेड़ा की कीमत निर्धारित की जाती है. परन्तु, उस पर कभी कोई अमल नहीं होता. हालांकि, सभी दुकानदार ऐसा ही करते हैं, यह बात भी नहीं. कुछ के यहां शुद्धता और उचित मूल्य की गारंटी भी है. यही घोरमारा और देवघर के पेड़ा की विश्वसनीयता बचाये हुए है.

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