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सृजन घोटाला : को बड़ छोट कहत अपराधू…

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विष्णुकांत मिश्र
19 अगस्त 2023

Bhagalpur : कर्रा प्रसु रमैया (K P Ramaiah) फरवरी 2003 से जुलाई 2004 तक जिलाधिकारी रहे. उनके बाद मिहिर कुमार सिंह आये और अप्रैल 2005 तक पद पर रहे. अप्रैल 2005 से मार्च 2008 तक विपिन कुमार (Vipin Kumar) को जिलाधिकारी (District Magistrate) के पद पर रखा गया. लगभग 14 वर्षों के उस कालखंड में 11 आईएएस (IAS) अधिकारियों की जिलाधिकारी के रूप में पदस्थापना हुई, उनमें एकमात्र विपिन कुमार ही थे जिन्हें तीन साल का कार्यकाल पूरा करने का अवसर मिला. 2008 में सीएजी ने सृजन (Srijan) के खाते में सरकारी धन रखने को नियम विरुद्ध बता आपत्ति जतायी थी. शायद उसी के मद्देनजर विपिन कुमार ने उस पर रोक लगा दी थी. पर, सबौर (Sabour) के प्रखंड विकास पदाधिकारी (Block Development Officer) तथा कुछ अन्य ने जिलाधिकारी के आदेश का अनुपालन नहीं किया था.

जांच क्यों नहीं करायी?
स्पष्ट है कि विपिन कुमार ने फर्जीवाड़े की आशंका के तहत आदेश जारी किया होगा. यदि ऐसा था तो फिर उन्होंने इसकी जांच क्यों नहीं करायी? यह सवाल उनकी नीयत पर संदेह पैदा करता है. विपिन कुमार के बाद आये संतोष कुमार मल्ल अगस्त 2009, वंदना प्रेयसी अक्तूबर 2009, राहुल सिंह फरवरी 2011, नर्मदेश्वर लाल जून 2012, प्रेम सिंह मीणा जनवरी 2014, बी कार्तिकेय जुलाई 2014 तथा डा. वीरेन्द्र प्रसाद यादव अगस्त 2015 तक जिलाधिकारी रहे.घोटाले के खुलासे के वक्त आदेश तितरमारे जिलाधिकारी थे. एसआईटी (SIT) जांच में इस तरह के तथ्य सामने आये कि 14 वर्षीय फर्जीवाड़े में सौ से अधिक अधिकारियों व कर्मचारियों, बैंककर्मियों एवं सृजन से जुड़े सफेदपोशों ने सरकारी धन की बहती गंगा में हाथ साफ किये. कुछ अधिकारियों की पत्नियों ने भी डुबकी लगायीं.

पत्नियों ने भी लगायी डुबकी
उस समय दो नाम सार्वजनिक हुए. पूर्व अनुमंडलाधिकारी (Sub Divisional Magistrate) कुमार अनुज की पत्नी दिव्या सिन्हा और जेल में रहते दिवंगत हो गये जिला कल्याण पदाधिकारी अरुण कुमार की पत्नी इंदु गुप्ता के . इस बात की भी खूब चर्चा हुई कि सर्वाधिक राशि का फर्जीवाड़ा जिलाधिकारी डा. वीरेन्द्र प्रसाद यादव (Dr. Virendra Prasad Yadav) के कार्यकाल में हुआ-2014 से 2015 के बीच. जानकारों के मुताबिक जमुई के रहनेवाले डा. वीरेन्द्र प्रसाद यादव राजद (RJD) अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) के चंद पसंदीदा अधिकारियों में शामिल रहे हैं. उनका भागलपुर से तबादला हुआ तब उन्हें भोजपुर (Bhojpur) का जिलाधिकारी बना दिया गया. राजद के प्रभुत्व वाले महागठबंधन की सरकार के अस्तित्व में आने के बाद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद उन्हें पटना का जिलाधिकारी बनाने के लिए जोर लगाये हुए थे. कहते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) इसके लिए तैयार नहीं हुए. महागठबंधन में तकरार का एक कारण संभवतः वह भी था.


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संदेह उन पर भी
महागठबंधन में बिखराव के बाद राजग (NDA) की सरकार बनी तब डा. वीरेन्द्र प्रसाद यादव को भोजपुर से तबादला कर पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग में विशेष सचिव बना दिया गया. संदेह के दायरे में घोटाले के वक्त के जिलाधिकारी आदेश तितरमारे भी हैं. ऐसा कहा जाता है कि दिवंगत जिला कल्याण पदाधिकारी (District Welfare Officer) अरुण कुमार और इसी विभाग के नाजिर महेश मंडल (मृत्यु से पूर्व) ने फर्जीवाड़े में इनकी भूमिका को भी इंगित किया था. मनोरमा देवी (Manorama Devi) के एक वरिष्ठ स्वजातीय आईएएस अधिकारी के बारे में बताया गया कि वह सृजन के अघोषित संरक्षक थे.

संरक्षण स्वजातीय अधिकारी का
2002-2003 में सहकारिता विभाग के सचिव रहते उक्त अधिकारी ने कथित रूप से सृजन की संचालिका मनोरमा देवी को पांव जमाने में काफी मदद की थी. चर्चा है कि के पी रमैया का सृजन से जुड़ाव उन्हीं के जरिये हुआ था. आरोपों के मुताबिक स्थानीय को-ऑपरेटिव चुनाव में हार जाने के बावजूद मनोरमा देवी को उस दौरान बिहार स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक (Bihar State Co-Operative Bank) के निदेशक का पद मिल गया था. वह अप्रत्यक्ष रूप से उन्हीं की देन थी. कहा जाता है कि नियमों एवं कानूनों को ताक पर रख मनोरमा देवी को निदेशक बनवा दिया गया था.

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