दिनकर भूमि सिमरिया : उर में दाह, कंठ में ज्वाला…
अश्विनी कुमार आलोक
21 सितम्बर 2023
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने अपनी एक वसीयत लिखी थी, उसमें रामसेवक सिंह के पुत्र एवं केदारनाथ सिंह को अलग-अलग पुस्तकों की रॉयल्टी का अधिकारी घोषित किया था. बाद में इस वसीयतनामे (Testament) को बदलकर कुछ और पुस्तकों के लिए रामसेवक सिंह के पुत्र अरविंद कुमार सिंह को पात्र बनाया था. किन्तु, चाचा-भीतीजे का मतभेद आज भी कायम है. अरविंद कुमार सिंह ने दिनकर की अनेक पांडुलिपियां संरक्षित की थीं, वे रामकृष्ण दास के वाराणसी अवस्थित कला भवन एवं बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन को दान कर दी गयीं. ‘उर्वशी’ और ‘रश्मिरथी’ की रॉयल्टी को लेकर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (Ramdhari Singh ‘Dinkar’) के पुत्र केदारनाथ सिंह और पौत्र अरविंद कुमार सिंह के बीच दिल्ली हाईकोर्ट में 12 वर्षों तक मुकदमा चला. 1986 में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने अरविंद कुमार सिंह के पक्ष में निर्णय दिया. इसके बाद भी विवाद बना हुआ है.
बिना बंटवारे के बेच दी जमीन
अरविंद कुमार सिंह का कहना है कि जिस घर को तोड़कर केदारनाथ सिंह ने मकान बनवा लिया, उसमें उनका (अरविन्ंद कुमार सिंह) भी हिस्सा है. मकान जब बनवाया जा रहा था, तब दिनेश प्रसाद सिंह ने मध्यस्थता की थी. मकान के एक कमरे और रसोई घर-स्नानघर पर अरविंद कुमार सिंह का अधिकार स्थापित हुआ था. लेकिन, वैसा हुआ नहीं. अरविंद कुमार सिंह को कुछ भी नहीं मिला. अरविंद कुमार सिंह मानते हैं कि दालान में केदारनाथ सिंह का भी हिस्सा है. लेकिन, उनका आरोप है कि केदारनाथ सिंह ने बिना बंटवारे के जमीन बेच दी थी. यही सब कारण है कि दिनकर के परिजनों का भूमि एवं संपत्ति का विवाद सुलझ नहीं पा रहा है.
दिनकर स्मृति पुरस्कार
असहिष्णु (Intolerant) राजनीति, अनुदार (Unyielding) राजनेता और असंवेदनशील (Insensitive) प्रशासन ने रामधारी सिंह ‘दिनकर’ को पूरी तरह विस्मृत कर दिया, यह कहना सही नहीं होगा. बेगूसराय (Begusarai) के साहित्यकारों की मांग पर 1992 में तत्कालीन जिलाधिकारी रामेश्वर सिंह ने दिनकर जयंती मनाने की योजना बनायी, लेकिन इससे पहले स्थानांतरित होकर चले गये. अगले जिलाधिकारी प्रफुल्ल रंजन सिन्हा ( पी आर सिन्हा) ने बैद्यनाथ चौधरी, आनंद नारायण शर्मा, अखिलेश्वर कुमार और चन्द्रकुमार शर्मा बादल के परामर्श से दिनकर स्मृति राष्ट्रीय एवं दिनकर स्मृति जनपदीय पुरस्कार आरंभ किया. इन पुरस्कारों के पहले गृहिता क्रमशः भगवती शरण मिश्र और अरुण प्रकाश रहे.
ये भी पढें :
कविताओं से जुड़ा है गांव का बच्चा-बच्चा
एक नेता गया, दूसरा आया…
मानस की पाठ-परंपरा से निखरी काव्य प्रतिभा
समय के रथ का घर्घर नाद सुनो…
दिनकर कला भवन
1997 में तत्कालीन जिलाधिकारी विमल कीर्ति सिंह ने बरौनी रिफाइनरी (Barauni Refinery) एवं जनसहयोग से जीरो माइल चौक पर दिनकर की कांस्य प्रतिमा स्थापित की थी. रंगकर्मियों ने बेगूसराय में नगर भवन की स्थापना की थी, अब वह दिनकर कला भवन के नाम से अस्तित्व में है. प्रवीण प्रियदर्शी, नरेन्द्र कुमार सिंह, जनार्दन प्रसाद सिंह, अनिल पतंग जैसे लोगों ने दिनकर की स्मृतियां संरक्षित कीं. बहरहाल, ग्रामीणों की मांग है कि जिस प्रकार ‘कामायनी एक्सप्रेस’ नाम से रेलगाड़ी चलायी जा रही है, उसी तरह ‘रश्मिरथी एक्सप्रेस’ भी चलायी जाये, सिमरिया (Simaria) पुल का नाम ‘दिनकर पुल’ रखा जाये.
‘साहित्य तीर्थ’ की आकांक्षा
साहित्यकारों, कलाकारों एवं स्थानीय लोगों ने रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविताओं को समादृत करने का जो कर्तव्यबोध पाया, वह राजनीतिक उपेक्षा (Political Neglect) से चिंतित तो है, पर विचलित कदापि नहीं. समूची धरती को अपनी कविताओं के तेज से प्रशस्त पंथ दिखलाने वाले राष्ट्रकवि का गांव अपनी इच्छाओं का आदर स्वयं करता है. स्वयं को ‘युगचारण’ और ‘समय-सूर्य’ कहने वाले दिनकर के परिजन अपने पारिवारिक आचरणों के सूत्र नहीं संभाल पा रहे हैं, उनमें भेद-भिन्नता की तृषावंत व्याकुलता उठ रही है, दूसरी ओर दिनकर की जन्मभूमि साहित्य तीर्थ बनने की आकांक्षा (Aspiration) के बीच सामान्य सुविधाओं के लिए भी प्रतीक्षा कर रही है –
उर में दाह, कंठ में ज्वाला
सम्मुख यह प्रभु का स्थल है
जहां पथिक जल की झांकी में
एक बूंद के लिए विकल है.
#Tapmanlive