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रामवृक्ष बेनीपुरी : गेहूं के साम्राज्य पर भारी पड़ गया गुलाब …

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बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों , जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है और न वंशजों को. ‘शैली सम्राट’ के रूप में चर्चित राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह और पं.. जनार्दन प्रसाद झा द्विज की साहित्यिक विरासत की उपेक्षा को उजागर करने के बाद अब ‘कलम के जादूगर’ रामवृक्ष बेनीपुरी की स्मृति के साथ समाज और सरकार के स्तर से जो व्यवहार हो रहा है उस पर दृष्टि डाली जा रही है. संबंधित किस्तवार आलेख की यह अंतिम कड़ी है.


अश्विनी कुमार आलोक
06 जनवरी 2023

हिन्दी साहित्य में प्रयोगवाद का प्रत्युत्तर नकेनवाद ने दिया था. नकेनवाद को प्रपद्यवाद भी कहते हैं. दुर्भाग्य यह कि नकेनवाद के जिन कवियों ने हिन्दी साहित्य के विस्तृत समाज में क्रांति लायी थी, वे भुला दिये गये. उसी तरह रामवृक्ष बेनीपुरी की समस्त कृतियों को ग्रंथावली में समाहित करने की चेष्टा का परिणाम बहुत परेशानियों के बाद सामने आया. लालगंज के शारदा सदन पुस्तकालय एवं मुजफ्फरपुर के धर्म समाज संस्कृत महाविद्यालय के पुस्तकालय में अनेक रचनाएं संग्रहित मिलीं. लेकिन, पुणे के गजानन चौहान की भूमिका बेनीपुरी साहित्य के संग्रह में जितनी विस्मयकारी (Awesome) दिखी, उतनी ही उपयोगी भी.

सुयोग्य प्रकाशक भी थे
गजानन चौहान के सहयोग से महेन्द्र बेनीपुरी एवं डा. राजेश्वर प्रसाद सिंह को रामवृक्ष बेनीपुरी की ग्रंथावली के प्रकाशन में सर्वाधिक सहयोग मिला. यहां तक कि अनछपी कृति ‘गांधीनामा’ भी छप गयी. रामवृक्ष बेनीपुरी (Ramvriksha Benipuri) एक सुयोग्य प्रकाशक भी थे. वर्षों तक उनकी प्रकाशकीय विरासत को उनके भतीजे वीरेन्द्र बेनीपुरी ने संभाला. कभी रामवृक्ष बेनीपुरी के घर आचार्य शिवपूजन सहाय भी आये थे. वह जब चलने लगे, तो मौलिश्री का पौधा लगाया था. बेनीपुरी जी की इच्छा थी कि मृत्यु के उपरांत उन्हें उसी पौधे के निकट समाधिस्थ किया जाये. जब 7 सितंबर 1968 को उनका देहांत (Death) हुआ, तो उनके परिजनों ने उन्हें उसी स्थान पर समाधिस्थ किया था. वह जगह उनके पैतृक घर के रूप में जानी जाती है. किंतु बागमती की विप्लवी धारा में घर बालू की भीता से ढक चुका है. उस जगह बेनीपुरी जी की मूर्ति बनवायी जा चुकी है.डा. रघुवंश प्रसाद सिंह की इच्छा
पूर्व सांसद डा. रघुवंश प्रसाद सिंह की इच्छा थी कि बेनीपुरी जी के पैतृक घर को बांध बनाकर संरक्षित कर लिया जाये, लेकिन यह नहीं हो सका. रामवृक्ष बेनीपुरी के देहांत के बाद रामवृक्ष बेनीपुरी महिला महाविद्यालय की स्थापना की गयी थी. कुछ वर्षों तक यह महाविद्यालय किराये के मकान में चला, फिर भूमिहार ब्राह्मण ट्रस्ट के सचिव एवं कर्पूरी ठाकुर (Karpuri Thakur) के मुख्यमंत्रित्वकाल में विधायक रहे महेश्वर प्रताप नारायण सिंह ने उसके लिए जमीन दी थी. 1980 में डा. जगन्नाथ मिश्र के मुख्यमंत्रित्वकाल में वह महाविद्यालय बिहार विश्वविद्यालय से अंगीभूत हो गया. 1995 में उसी परिसर में रामवृक्ष बेनीपुरी की कांस्य प्रतिमा स्थापित की गयी, तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने उसका अनावरण किया था.

बेनीपुरी स्मारक
जब बेनीपुरी जी का गांव बागमती की चपेट में आ गया, तो ग्रामीणों के पुनर्वास के साथ ही नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने रामवृक्ष बेनीपुरी के स्मारक-निर्माण के लिए एक एकड़ चौदह डिसमिल जमीन दी. परंतु, सरकार के स्तर पर स्मारक निर्माण में देर हुई. जब कटौंझा के एक कार्यक्रम में रामवृक्ष बेनीपुरी की रचना ‘डायरी के पन्ने’ का मुख्यमंत्री ने विमोचन किया, तो बेनीपुरी जी के नाती महंथ राजीव रंजन दास, विधान पार्षद देवेशचंद्र ठाकुर आदि ने इस ओर ध्यान आकृष्ट कराया. विलंब की अवधि बढ़ी तो देवेशचंद्र ठाकुर ने विधान परिषद में भी सवाल उठाया. प्रशासनिक शिथिलताओं के बीच 4 करोड़ 19 लाख रुपये भवन, मूर्त्ति, अतिथि कक्ष आदि के लिए आवंटित (Allotted) किये गये.


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समुचित श्रद्धांजलि
विधायक रामसूरत राय, महेश्वर प्रसाद यादव आदि ने बेनीपुरी जी की मूर्त्तियां बनवाने में संकोच नहीं किया. सांसद अजय निषाद ने भी भवन निर्माण के लिए साढ़े दस लाख रुपये दिये. उनके गांव के समीप रेलवे ने बेनीपुरी हाल्ट बनाकर समुचित श्रद्धांजलि (Homage) दी. रामवृक्ष बेनीपुरी की स्मृतियां कायम रहेंगी, जैसे उनके गुलाब की गंध संस्कृति के कला-सहभाग का समग्र सुयज्ञ लेकर साहित्य समाज की रगों में दौड़ रही है. सुखद है कि अन्य साहित्यकारों की तरह कलम का जादूगर उपेक्षित न रहा, उसके गुलाब की गंध गेहूं के साम्राज्य पर भारी पड़ी. बेनीपुर चेतना समिति ट्रस्ट ने रामवृक्ष बेनीपुरी के साहित्य तथा स्मृति के अन्य पक्षों को संभालने का जो लक्ष्य लक्ष्य है, वह अनुकरणीय (Exemplary) है.

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