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मुंगेरिया कट्टा : पुलिस भी‌ हक्का बक्का !

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विष्णुकांत मिश्र
5 सितम्बर 2024

Munger : यह कहें कि मुंगेर को अलग-अलग महत्व वाले मां चंडिका स्थान, मीर कासिम का किला, उत्तर वाहिनी गंगा, गंगा किनारे योग विद्यालय, बंदूक कारखाना, रेल कारखाना, सिगरेट कारखाना आदि से जितनी प्रसिद्धि मिली उससे कहीं अधिक चर्चा अब इसकी देशी कट्टा को लेकर हो रही है, तो वह कोई अतिश्योक्ति (Exaggeration) नहीं होगी. वैसे, मुंगेर में सिर्फ देशी कट्टा का ही नहीं, अवैध तरीके से पिस्तौल समेत हर प्रकार के आग्नेयास्त्रो का निर्माण हो रहा है. असाल्ट राइफल, एके 47 और एके‌ 56 सरीखे तमाम अत्याधुनिक हथियारों का भी. नकल की इंजीनियरिंग (Copy Engineering) ऐसी कि पहचान करने में बड़े- बड़े पारखियों‌ के दिमाग भी चकरा जाते हैं.

ऊब गयी है पुलिस
स्थानीय लोगों के मुताबिक इन हथियारों का भूमिगत निर्माण कुटीर उद्योग (Cottage Industry) की माफिक हो रहा है. यह जानकर हैरानी होगी कि किसी एक जगह पर इसका निर्माण नहीं होता है. हथियार का अलग-अलग हिस्सा अलग-अलग जगह पर बनता है. घर-घर में भट्ठी, लेथ आदि सब कुछ हैं. ‌‌पार्ट-पुर्जा वहीं बनते हैं. शाम में बच्चे उन्हें हथियार का रूप देने वाले कारीगर के पास पहुंचा देते हैं. ऐसा नहीं कि कानून विरुद्ध इन गतिविधियों पर पुलिस की नजर नहीं रहती है. गहन नजर रहती है, पर हकीकत यह है कि छापेमारी और बड़ी संख्या में बरामदगी के अंतहीन सिलसिला से वह ऊब चुकी है.

सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता
जानकारों की मानें, तो अदृश्य उपलब्धता (Invisible Availability) मुंगेर निर्मित हर हथियार की है, पर मांग अधिक देशी कट्टा की है. ‌‌‌पुलिस भी मानती है कि मुंगेर लम्बे समय से अवैध हथियारों का बड़ा आपूर्तिकर्ता बना हुआ है. देश में कहीं भी हथियारों की खरीद हो या अवैध हथियारों की बरामदगी, उसके तार किसी न किसी रूप में मुंगेर से जुड़े होते ही हैं. एक अनुमान के अनुसार अपराध के नब्बे प्रतिशत मामलों में मुंगेरिया हथियार का इस्तेमाल होता है. खासकर मुंगेरिया कट्टे का. इतिहास बताता है कि मुंगेर में बंदूक कारखाना (Gun Factory) का निर्माण मीर कासिम ने कराया था. अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए. अंग्रेजी शासन काल (British Rule) में भी उसका अस्तित्व रहा. स्वतंत्र भारत में कारखाने की व्यवस्था लड़खड़ा गयी. ‌‌


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उठ रही है अब आवाज
अवकाशप्राप्त और छंटनीग्रस्त कारीगरों ने अवैध तरीके से बंदूक निर्माण को कुटीर उद्योग का रूप दे दिया. ऐसे ‘सिद्धहस्त कारीगरों’ की सिर्फ मुंगेर में ही नहीं, पूरे देश में मांग है. मजदूरी मनमाफिक मिलती है. जो हो, बंदूक निर्माण की इस वैध-अवैध कहानी के बीच यह आवाज उठने लगी है कि जब स्थानीय लोगों में ऐसा कौशल है, इतनी दक्षता है, तो फिर सरकार यहां आयुध‌ कारखाना (Ordnance Factory) क्यों नहीं स्थापित कर देती है? केन्द्र में मंत्री का पद संभाल रहे क्षेत्रीय सांसद ललन सिंह (Lalan Singh) से लोगों की ऐसी अपेक्षा है. उनका ध्यान इस ओर जाता भी है या नहीं, देखना दिलचस्प होगा.

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