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कश्मीर : फन फैला रहा फिर आतंकवाद

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अविनाश चन्द्र मिश्र
02 नवम्बर 2024

श्मीर में जब कभी अमन लहूलुहान होता है, दिमाग में खौफनाक इतिहास (Scary History) कौंध उठता है. सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मुस्लिम बहुल इस भूभाग पर भारत विभाजन के वक्त से ही पाकिस्तान गिद्ध दृष्टि जमाये हुए है. इसे हासिल करने के लिए उसने 1948 और 1961 में भारत पर आक्रमण किया. जबड़ातोड़ जवाब मिला. युद्ध में पार नहीं पाने पर कश्मीर में आतंकवाद (Terrorism) बो दिया. गुलाम कश्मीर में प्रशिक्षण शिविर संचालित कर आतंकी तैयार किये. कश्मीरी युवकों को कट्टरता की घुट्टी पिला सशस्त्र विद्रोह के लिए भड़का दिया. 1989 से यह सिलसिला बना हुआ है. इस दरमियान तकरीबन 42 हजार लोगों की हत्या कर दी गयी. प्रसंगवश यहां विशेष राज्य की चर्चा आवश्यक है. देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) से गहरी मित्रता का सबसे बड़ा लाभ शेख अब्दुल्ला ने कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के रूप में उठाया. 1949 में विशेष राज्य का दर्जा के साथ कश्मीर में अनुच्छेद 370 लागू हो गया. इसे अतिशय उदारता कहें या तुष्टिकरण की नीति, राष्ट्र की सुरक्षा के ख्याल से पंडित जवाहरलाल नेहरू से राजनीतिक चूक हो गयी. यह कहें कि कश्मीर में दहशतगर्दी की बुनियाद वहीं पड़ गयी, तो वह कोई अतिश्योक्ति (Exaggeration) नहीं होगी.

चल पड़ी है आतंकी हिंसा की नयी लहर
ठीक 70 साल बाद 05 अगस्त 2019 को उसका संवैधानिक परिमार्जन (Constitutional Amendment) हुआ. विशेष राज्य का दर्जा और अनुच्छेद 370 समाप्त हो गया. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ सघन व समन्वित अभियान से दहशतगर्दों और कट्टरपंथियों की कमर टूट गयी. पाकिस्तान से धन का प्रवाह रुक गया. तात्कालिक तौर पर ही सही, आतंकवाद पस्त हुआ. जमीन पर उसका असर दिखने लगा. धरती के स्वर्ग (Heaven on Earth) की पहचान रखने वाली कश्मीर घाटी में सुकून लौट आया. पर्यटकों की आवाजाही बढ़ गयी. उदास पहाड़ों की मुस्कुराहट फिर से खिल उठी, खूबसूरत वादियों में नये सिरे से रौनक छा गयी. राज्य में निवेश बढ़ा, विकास को रफ्तार मिलने लगी. सिर्फ सत्ता के लिए कश्मीर के रक्तरंजित इतिहास (Bloody History) से नजर फेर तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों को यह निस्संदेह अटपटा लगेगा, पर यह अकाट्य है कि केन्द्र में भाजपा की मजबूत सरकार रहने से ही कश्मीर में आतंकवाद की कब्र खुद गयी और अमन के फूल खिलने लग गये. परन्तु, इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि 2024 के संसदीय चुनाव (Parliamentary Elections) में देश के मतदाताओं को कश्मीर-समस्या की गंभीरता समझ में नहीं आयी. तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों के बहकावे में आ गये. दुष्परिणाम स्वरूप संसदीय चुनाव में भाजपा (BJP) के कमजोर पड़ जाने के बाद घाटी में लगभग उखड़ गये आतंकवाद के कोपलें फिर फूट गये. आतंकी हिंसा की नयी लहर चल पड़ी. चुनाव बाद तीर्थयात्रियों और सेना के जवानों पर हमले हुए.

बौखला गयी है पाकिस्तान की सेना
इधर, जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला (Umar Abdullah) की सरकार के सत्ता में आने के बाद आतंकवादी और कट्टरपंथी अपनी मौजूदगी और खतरनाक इरादों का फिर से अहसास कराने लग गये हैं. कश्मीर घाटी में सात दिनों के अंदर चार आतंकी हमलों में 14 लोगों की हत्या से तो ऐसा ही कुछ प्रतीत हो रहा है. तर्क रखा जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर में दस वर्षों के बाद हुए विधानसभा के शांतिपूर्ण चुनाव (Peaceful Elections) और उसमें मतदाताओं की बड़ी भागीदारी से पाकिस्तान की सेना एवं उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई बौखला गयी है. उसी बौखलाहट में हिंसक हमले करा रही है. इस तर्क को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता. पर, मुख्य बात यह है कि केन्द्र की सत्ता में भाजपा की शक्ति क्षीण पड़ जाने से आतंकवाद फिर से फन फैलाने लग गया है. भारत के लिए चिंता की बात यह है कि आतंकवादियों की रणनीति बदल गयी है, हथियार बदल गये हैं. दहशतगर्द हाथों में एम-4 कारबाइन रायफल और असाल्ट रायफल आ गये हैं.


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आतंकियों की तीमारदारी बड़ी समस्या
पाक प्रशिक्षितों-संरक्षितों का फिर से कश्मीर घाटी में आतंक राज न कायम हो, इसके लिए सीमा पर अतिरिक्त सतर्कता बरतने की जरूरत है. आतंकवादियों की घुसपैठ पर सख्त नजर रखने के साथ उन स्थानीय कट्टरपंथियों (Local Fanatics) को बेनकाब करने की भी जो उन्हें रसद पानी और पनाह देते हैं. ऐसा इसलिए कि आतंकियों की तीमारदारी सुरक्षाबलों के लिए बड़ी समस्या बनी हुई है. पानी सिर से गुजर जाये उससे पहले पाकिस्तान (Pakistan) को सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक की याद दिला देने की आवश्यकता है. आतंकवाद राष्ट्रीय अखंडता पर फिर खतरा न पैदा कर दे, नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) और उनके पुत्र जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को भी सकारात्मक भूमिका निभानी होगी. इस मामले में केन्द्र से सहयोग की नीति अपनानी होगी. जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा की जिद फिलहाल छोड़ दें, तो वह राष्ट्रहित में होगा.

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