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नीतीश कुमार को सीधी चुनौती दे रहे आरसीपी सिंह!

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भाजपा की मदद से बढ़ गये बहुत आगे …

राजनीतिक विश्लेषक
17 अगस्त 2021

पटना. स्वागत समारोह, कार्यकर्ता सम्मेलन और प्रेस कांफ्रेंस के जरिये केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने बता दिया कि अब वह स्वतंत्र छवि के निर्माण के रास्ते बहुत आगे बढ़ चुके हैं. इतना आगे कि फिर वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व को दोबारा स्वीकार नहीं कर पायेंगे. भाजपा ने उन्हें अहसास करा दिया है कि उनमें ही नेतृत्व की क्षमता है. भाजपा की मदद से बढ़े आत्मविश्वास के सहारे उन्होंने जद(यू) की नीतियों के समानांतर नयी लकीर खींच दी. वह भी छिप कर नहीं, पूरी तरह खुल कर. जातीय जनगणना और आरक्षण के बारे में उन्होंने जो कुछ कहा, उसका भाव यही है कि वे इन मुद्दों पर जद(यू) की तुलना में भाजपा के अधिक करीब हैं. यह पहली बार हुआ है, जब जद(यू) में किसी ने मुख्यमंत्री की राजनीतिक लाइन को खुल कर चुनौती दी है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सोमवार को जातीय जनगणना पर बोले. उनकी नजर में यह जरूरी है. दूसरी तरफ आरसीपी सिंह ने इसे गैर-जरूरी बताया. उन्होंने इसे आरक्षण से जोड़ा. आरएसएस और भाजपा की लाइन पर कहा कि आरक्षण अब मुद्दा नहीं रहा. जातीय जनगणना को इसी तर्क पर खारिज किया कि जब सभी सरकारी सुविधाएं हरेक नागरिक के लिए उपलब्ध हैं, तो किसी खास समूह को सुविधाओं का लाभ देने के लिए जातियों की गणना की क्या जरूरत है. वह अपनी जगह सही हो सकते हैं. लेकिन, यह लाइन जद(यू) के विपरीत और भाजपा- आरएसएस के करीब हैं.

नीतीश को बेपर्दा किया
आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के चेहरे पर पड़े उस पर्दे को भी हटा दिया, जिसकी आड़ में मुख्यमंत्री यह संदेश दे रहे थे कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में जद(यू) के शामिल होने का फैसला उनका नहीं था. आरसीपी सिंह ने एक पंक्ति में अगर यह झूठ है तो उसे बेपर्दा कर दिया-हम नीतीश कुमार की सहमति के बिना कुछ नहीं करते हैं. केंद्र में मंत्री भी उनकी सहमति से बने. इस वक्तव्य के जरिये आरसीपी सिंह ने नीतीश कुमार के उन समर्थकों को भी अपने पक्ष में करने की कोशिश की, जो इस बात से नाराज थे कि मंत्री बनकर पार्टी से गद्दारी की गयी है.

तो क्या मान लिया जाये कि आरसीपी सिंह ने जद(यू) में छाये कोहरे को साफ कर दिया? हां, कोहरा साफ हो गया है. आगे आरसीपी सिंह चाहेंगे कि नीतीश कुमार अपनी उस घोषणा पर अमल करें, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह चुनाव (2020 का विधानसभा चुनाव) उनका अंतिम है. नीतीश कुमार अमल करें न करें, आरसीपी सिंह अगर सक्षम हुए तो उन्हें अपनी घोषणा पर अमल करवा कर ही दम लेंगे. क्योंकि भाजपा उन्हें शह दे रही है. पिछड़ों और अति पिछड़ों में आरसीपी सिंह से अच्छा नेता उसे नहीं मिलेगा. इसमें दम भी है. हाल के दिनों में आरसीपी सिंह ने किसी और नेता की तुलना में अतिपिछड़ों के बीच अपनी सक्रियता दिखायी.

संगठन पर काबिज रहेंगे
कुछ लोग यह सोच रहे थे कि अध्यक्ष पद से हटने के बाद आरसीपी सिंह संगठन से अलग हो जायेंगे. उन्होंने इस संभावना को बड़ी ही मजबूती से खारिज किया. कहा कि संगठन को मजबूत बनाने के लिए पहले की तरह सक्रिय रहेंगे. यह हुआ तो जद(यू) कार्यकर्ता उनसे जुड़े रहेंगे. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पार्टी की प्रदेश इकाई के मौजूदा सभी पदधारक आरसीपी सिंह ने नामित किये हैं. नयी कमेटियों का गठन उनकी राय से हुआ. उनके अपने तमाम लोग संगठन में खप गये. सोमवार की मीटिंग में कार्यकर्ताओं को अपने पक्ष में बनाये रखने के लिए उन्होंने सरकारी बोर्ड, निगम और आयोग में बहाली का भरोसा दिया है. संभव है कि भाजपा से मिलकर वह बोर्ड-निगम के पदों को भरने का प्रयास करें.

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