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भिरहा का रंगोत्सव : पड़ जाती है फीकी ब्रज की होली

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विकास कुमार
13 मार्च 2025

Samastipur : बात है यह बिहार के भिरहा गांव की. वहां आयोजित होने वाली ब्रज की होली से भी अधिक मादकता भरी होली की. भिरहा (Bhirha) गांव समस्तीपुर जिले के रोसड़ा (Rosera) प्रखंड क्षेत्र में है. रोसड़ा से तकरीबन पांच किलोमीटर की दूरी पर बसा है यह गांव. शहरों की बात अलग है, उस दौर में गांवों में भी विश्व प्रसिद्ध ब्रज की होली (World famous Braj Holi) की चर्चा खूब होती थी. बड़ी संख्या में लोग आनंद उठाने वृदांवन (Vrindavan) जाते थे. साल संभवतः 1835 था. भिरहा गांव के भी कुछ लोग होली उत्सव को अपनी आंखों में बसाने के लिए वृदांवन गये थे. ऐसा बसा कर लौटे कि अगले साल यानी 1836 से भिरहा गांव में आयोजित रंगोत्सव (Rangotsav) में उसकी झलक दिखने लग गयी.

परम्परा अटूट है
यहां यह बता देना आवश्यक है कि कहीं-कहीं साल के रूप में 1935 और 1936 की चर्चा होती है. उदयनाचार्य रोसड़ा कालेज, रोसड़ा (Udayanacharya Rosra College) के प्रधानाचार्य थे प्रो. फूलेंद्र कुमार राय. भिरहा गांव के ही थे. अब इस धरा पर नहीं हैं. उन्होंने एक पुस्तक लिखी थी ‘अपना गांव अपनी वाटिका.’ उसमें भिरहा में इस रूप में होली मनाने की परंपरा का इतिहास लगभग दो सौ वर्ष पुराना बताया गया है. लेकिन, किस साल इसकी शुरूआत हुई, इसका जिक्र नहीं है. शुरुआत जिस साल भी हुई हो, परम्परा अटूट है.

अलग-अलग सजते हैं मंच
तीन दिवसीय होलिकोत्सव में साम्प्रदायिक सौहार्द्र (Communal Harmony) एवं सामाजिक समरसता से अनेकता में एकता के जो भाव प्रस्फुटित होते हैं, वही इस परंपरा को अक्षुण्ण व अखंड बनाये रखने के मूल आधार हैं. आयोजन में प्रतिस्पर्धा (Competition) होती है. पर, सन् 1941 से पहले ऐसी कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं थी. आबादी बढ़ जाने को कारण मानें या खुद का प्रभुत्व कायम करने की छटपटाहट, उस साल आयोजन पुवारी, पछियारी और उत्तरवारी टोलों में विभाजित हो गया. तबसे इन टोलों में अलग-अलग मंच सजते हैं, अलग-अलग महफिलों में फाग के राग के रंग जमते हैं. लोग खूब आनंद उठाते हैं. सिर्फ भिरहा गांव के ही नहीं, मिथिलांचल (Mithilanchal) के अलावा दूसरे क्षेत्रों के लोग भी इसकी मादकता से मोहित हो खुद-ब-खुद खींचे चले आते हैं.

साझी संस्कृति की छटा
यहां गौर करनेवाली बात यह भी है कि आयोजन में श्रेष्ठता के लिए तीनो टोलों में होड़ अवश्य होती है, पर उस होड़ में कटुता, वैमनस्यता और प्रतिद्वंदिता जैसी कोई अवांछित भावना नहीं होती है. अंदरूनी बात जो रहती हो, गांव की गरिमामयी धरती पर प्रत्यक्ष रूप में ऐसा कुछ नहीं दिखती है. सभी टोलों में आपसी प्रेम, सद्भाव और सहकार का अद्भुत समागम दिखता है, जो दूसरे गांवों के लिए स्वप्न सरीखा माना जाता है. भिरहा में मैथिल ब्राह्मणों की बहुलता है. ऐसा कहा जाता है कि उनके पूर्वज मधुबनी (Madhubani) जिले के अरेर गांव से आकर यहां बसे थे. गांव के बीच में तीन मंदिर हैं. उन्हीं मंदिरों के परिसरों में तीनो टोलों का अलग-अलग ‘फाग का अखाड़ा’ जमता है जहां वृंदावन और बिहार की साझी संस्कृति की छटा नजर आती है.

जलवा बिखेरती हैं नामचीन नर्त्तकियां
श्रेष्ठता के लिए तीनो टोलों में होड़ साज-सजावट एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के बेहतर आयोजन के लिए होती है. इस होड़ की वजह से लोगों को गीत-संगीत की उत्कृष्ट प्रस्तुति का आनंद मिलता है. तीन दिवसीय रंग उत्सव के प्रथम दिन होलिका दहन (Holikadahan) के समय ब्रास बैण्ड पार्टी की कलाकारी देखने-सुनने को मिलती है. एक टोला मध्य प्रदेश से ब्रास बैण्ड पार्टी को बुलाता है तो दूसरा राजस्थान से. तीसरा अपने राज्य बिहार के अलावा उत्तर प्रदेश से भी मंगवाता है. इसी तरह संगीतज्ञों और नर्त्तकियों का आगमन होता है. मुंगेर, मुजफ्फरपुर, बनारस आदि की नामचीन नर्त्तकियां जलवा बिखेरती हैं.

बरसते हैं भाईचारे के रंग
होलिका दहन गांव के नीलमणि केदारनाथ उच्च विद्यालय के मैदान में होता है और उसी जगह से गीत-संगीत-नृत्य (Song-Music-Dance) की शुरूआत हो जाती है. रात भर कार्यक्रम चलता है. होली के दिन तीनों टोलों के लोग रंग-अबीर खेलते-उड़ाते ‘फगुआ पोखर’ पर पहुंचते हैं. ‘फगुआ पोखर’ (Fagua Pokhad) के पानी में रंग घुला होता है. उसी पानी की एक-दूसरे पर बौछार कर लोग होली खेलते हैं. इसमें सभी जाति और वर्ग के लोग शामिल होते हैं. अमीर-गरीब सभी. गांव वालों की पिचकारियों से भाईचारे के जो रंग बरसते हैं उससे भिरहा की माटी की सोंधी सुगंध खास बन जाती है. इस मायने में ब्रज, वृंदावन, बरसाने और मथुरा की होली फीकी पड़ जाती है.


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राजकीय होली महोत्सव’ की मान्यता
लंबे समय से भव्य लोक उत्सव (Folk Festival) की सर्वमान्य पहचान बना रखे भिरहा के विशिष्टता भरे इस रंग-पर्व को सरकार के स्तर से पर्यटन केंद्र (Tourist Center) सरीखा स्वरूप देने की मांग पहले भी उठी थी, अब भी उठ रही है. रोसड़ा (Rosera) के भाजपा (BJP) विधायक वीरेन्द्र कुमार (Verendra Kumar) ने इस ‘होली आनंदोत्सव’ को ‘राजकीय होली महोत्सव’ (Government Holi Festival) की मान्यता देने की मांग विधानसभा में उठायी है. तर्क यह रखा है कि भिरहा की होली की भव्यता और क्षेत्रीय लोगों की राग-द्वेष रहित सहभागिता का जिक्र करते हुए राष्ट्रकवि (National poet ) रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (Ramdhari Singh ‘Dinkar’) ने भिरहा को ‘बिहार का वृन्दावन’ (Vrindavan of Bihar) बताया था. कहा था कि होली में जो लोग वृन्दावन नहीं जा पाते हैं वे वहां की झलक इस गांव की होली में देख सकते हैं.

पहल का स्वागत
अब इसे विधायक वीरेन्द्र कुमार की पहल का परिणाम मानिये या सरकार के स्तर से प्रयास, पर्यटन विभाग के उप-सचिव ने समस्तीपुर के जिलाधिकारी (DM Samastipur) से भिरहा की होली की विशिष्टता के संदर्भ में जानकारी मांगी है. भिरहा गांव निवासी भाजपा नेता संतोष कुमार राय की मानें तो सरकार की जागृत हुई इस चेतना से भिरहा की होली के और अधिक अच्छे दिन आने के संकेत मिल रहे हैं. इससे क्षेत्र के लोगों को काफी प्रसन्नता है. भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष डा. रामविलास राय, रोसड़ा की प्रखंड प्रमुख उषा देवी, मुखिया सुनयना देवी, पूर्व मुखिया घनश्याम राय आदि ने विधायक वीरेन्द्र कुमार और राज्य सरकार की इस पहल का स्वागत किया है.

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