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सियासी सुकून के लिए बहक रहे पांव!

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नरेन्द्र सिंह
21 अगस्त 2021

आरा. बिहार की राजनीति जिस तरह रोज ब रोज रंग बदल रही है उसमें शाहाबाद क्षेत्र में सेठ जी के नाम से चर्चित निवर्तमान विधान पार्षद राधाचरण साह को शायद अपना राजनीतिक भविष्य डगमगाता महसूस हो रहा है. तभी तो सियासत में सुरक्षित ठांव के लिए पांव इधर-उधर बहक जा रहे हैं. इसके बाद भी सुकून नहीं मिल पा रहा है. भोजपुर की तमाम तरह की गतिविधियों के चंद प्रमुख पात्रों में शुमार राधाचरण साह संभवतः दूसरे प्रयास में 2015 में आरा-बक्सर स्थानीय प्राधिकार निर्वाचन क्षेत्र से विधान पार्षद निर्वाचित हुए थे. राजद समर्थित उम्मीदवार के नाते उन्हें उस महागठबंधन का समर्थन प्राप्त था जिसमें तब जद(यू) भी शामिल था. जद(यू) फिलहाल राजग में है. भविष्य संवारने के लिए राधाचरण साह पूर्व विधायक विजेन्द्र यादव के साथ 2020 के विधानसभा चुनाव से कुछ समय पूर्व जद(यू) में शामिल हो गये. लेकिन, 2020 के विधानसभा चुनाव के शाहाबाद क्षेत्र के परिणाम से उनके तमाम सपने मुरझा गये. जद(यू) के ढहे जनाधार से वह इस कदर विचलित हो उठे कि सुकून के लिए नया सियासी ठांव तलाशने लग गये हैं. वैसे, जद(यू) से उनका कागजी जुड़ाव अब भी बना हुआ है. संभवतः वह प्रदेश जद(यू) के पंचायती राज प्रकोष्ठ के कोई पदधारी भी हैं. विधान परिषद के चुनाव में जद(यू) की उम्मीदवारी की संभावना बनी रहे, इसके लिए सभी बड़े नेताओं को साध रहे हैं.

विधान परिषद के 2015 के चुनाव में लोजपा के हुलास पांडेय राजग समर्थित उम्मीदवार थे. महागठबंधन की मजबूती और भाजपा के दबंग नेता विशेश्वर ओझा के अप्रत्यक्ष असहयोग की वजह से मात खा गये थे. वैसे, रणवीर सेना सुप्रीमो बरमेश्वर मुखिया की हत्या के मामले को भी एक बड़ा कारण माना गया था. संदेह के दायरे में हुलास पांडेय भी थे. 2009 के विधान परिषद चुनाव में भाजपा नेता विशेश्वर ओझा राजग समर्थित उम्मीदवार थे. 2015 में शाहपुर से भाजपा की उम्मीदवारी के आश्वासन पर विधान परिषद के चुनाव से अलग हो गये. 2020 के विधानसभा चुनाव के बाद उनकी हत्या हो गयी. राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि पिता विशेश्वर ओझा की विरासत संभालने के लिए उनके पुत्र राकेश विशेश्वर ओझा विधान परिषद के चुनाव में उतर सकते हैं. उनकी दावेदारी की स्थिति में राजग का समीकरण कुछ गड़बड़ा जा सकता है. वैसे, राधाचरण साह के सिटिंग रहने के आधार पर दावा जद(यू) का बनता है. लेकिन, राकेश विशेश्वर ओझा की दावेदारी के मद्देनजर भाजपा आसानी से पीछे हट जायेगी, इसकी संभावना नहीं दिखती है. राधाचरण साह के लिए परेशानी की बात यह भी है कि जद(यू) में एक और मजबूत दावेदार उभर रहा है. सहकारी क्षेत्र के चर्चित शख्सियत रहे दिवंगत पूर्व सांसद अजीत सिंह एवं जद(यू) की पूर्व सांसद मीना देवी के पुत्र विशाल सिंह के रूप में. विश्लेषकों का मानना है कि जद(यू) में जितने भी दावेदार हैं उनमें हर दृष्टि से ज्यादा सक्षम-समर्थ विशाल सिंह ही दिखते हैं. उधर चिराग पासवान वाली लोजपा में हुलास पांडेय का दावा तो स्थायी है ही. 2009 में उन्होंने भाजपा समर्थित विशेश्वर ओझा और कांग्रेस समर्थित राधाचरण साह को परास्त किया था. चुनाव अभी अनिश्चितताओं के भंवर में है. संभवतः इस कारण ही महागठबंधन का कोई चेहरा चर्चा में नहीं आया है. अंदरुनी दावेदारी कई लोगों की है. एक संभावना यह भी जतायी जा रही है कि राजग में बात नहीं बनने की स्थिति में निवर्तमान विधान पार्षद राधाचरण साह महागठबंधन की ओर मुखातिब हो जा सकते हैं. राजद या फिर कांग्रेस का समर्थन पाने का प्रयास कर सकते हैं. राजद में दाल शायद नहीं गल पायेगी. इसलिए कि उनका गहरा जुड़ाव नाबालिग बालिका से दुष्कर्म के मामले में आरोपित संदेश के पूर्व विधायक अरुण यादव विरोधी खेमे से है. भोजपुर के राजनीतिक मामलों में राजद नेतृत्व अरुण यादव को कितना महत्व देता है इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि इस आरोप में वह लंबे समय से फरार चल रहे हैं. कुर्की-जब्ती भी हो चुकी है. ऐसे संगीन आरोपों के बावजूद उनकी पत्नी किरण यादव को उम्मीदवार बनाने में राजद नेतृत्व को कोई हिचक नहीं हुई. किरण यादव भारी मतों के अंतर से निर्वाचित हुईं. इसके मद्देनजर राधाचरण साह ज्यादा जोर कांग्रेस में लगा सकते हैं. कुछ ही दिनों पूर्व वह बिहार प्रदेश कांग्रेस के मुख्यालय सदाकत आश्रम में चहलकदमी करते दिखे भी थे. वैसे भी वह कांग्रेसी पृष्ठभूमि के ही हैं.

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