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विष्णुकांत मिश्र
23 अगस्त 2021

पटना. बिहार प्रदेश भाजपा में इधर एक बड़ा सांगठनिक बदलाव हुआ. दो दशक से आसन जमाये संगठन महामंत्री नागेन्द्र जी की अप्रत्याशित ‘पदोन्नति’ हो गयी. किसी राजनीतिक पार्टी का महामंत्री और वह भी प्रदेश स्तर का, खबर की दृष्टि से कोई विशेष महत्व नहीं रखता. परन्तु, भाजपा के संगठन महामंत्री का मामला कुछ अलग किस्म का होता है. इसलिए इसे महत्वपूर्ण की श्रेणी में रखा गया है. इस पद पर आमतौर पर भाजपा के पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस ) के पूर्णकालिक लोग ही बैठाये जाते हैं. मकसद भाजपा के सांगठनिक ढांचे को आरएसएस की तरह मजबूत बनाना होता है. इस दृष्टि से ऐसे बदलाव को प्रायः बड़ा माना जाता है. संगठन महामंत्री के तौर पर अपने गृह राज्य उत्तर प्रदेश में अनुभव हासिल करने वाले नागेन्द्र जी के बिहार के दस वर्षीय कार्यकाल में भाजपा को निःसंदेह मजबूती मिली, जनाधार का विस्तार हुआ. चुनावों में आशातीत सफलता भी हासिल हुई. पर, कई तरह के आरोप भी उछले. हाल फिलहाल भाजपा के एक विधान पार्षद के मुंह से सच या झूठ जो बातें निकलीं और सार्वजनिक हुईं वे बेहद गंभीर थीं. उस गंभीरता की चपेट में संभवतः नागेन्द्र जी भी हैं. ऐसे में संगठन महामंत्री पद से अचानक रुखसती को लेकर रोचकता तो बढ़ ही जाती है. हालांकि, इसके इस पक्ष को नजरंदाज नहीं किया जा सकता कि इतने लंबे गहरे जुड़ाव के दौरान इधर-उधर की कुछ न कुछ बातें हो ही जाती हैं, कोई न कोई आरोप उछल ही जाते हैं. सबको तो संतुष्ट रखा नहीं जा सकता.
नागेन्द्र जी उर्फ नागेन्द्र नाथ त्रिपाठी को भाजपा में बिहार-झारखंड का क्षेत्रीय संगठन महामंत्री बनाया गया है. मुख्यालय पटना से दूर रांची कर दिया गया है. कभी बिहार के उनके पूर्ववर्ती संगठन महामंत्री हृदय नारायण जी

नागेन्द्रजी उर्फ नागेन्द्रनाथ त्रिपाठी.

के साथ भी ऐसा ही हुआ था. स्पष्ट है कि इतिहास दुहरा रहा है. बिहार में संगठन महामंत्री की जिम्मेवारी गुजरात निवासी भीखूभाई दलसानिया को मिली है. सामान्य लोगों एवं कार्यकर्ताओं की बात छोड़ दें, प्रदेश भाजपा के गिने- चुने नेताओं के ही कान में कभी यह नाम गया होगा. अब उनके दलीय व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान खूब हो रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का खासमखास बता विशेष मिशन पर बिहार आने की बात कही जा रही है. जोर देकर यह भी कहा जा रहा है कि वह गुजरात के पाटीदार समाज से हैं. यानि कुर्मी हैं. कुर्मी पर जोर देने का मतलब बताने की शायद जरूरत नहीं. यह सच है कि आरएसएस पृष्ठभूमि के भीखूभाई दलसानिया गुजरात भाजपा की अग्रिम पंक्ति के नेता रहे हैं. नरेंद्र मोदी से निकटता भी रही है. तीन दशक तक गुजरात भाजपा के संगठन महामंत्री का पद संभालने का यह भी एक आधार रहा है. पार्टी में हैसियत ऐसी कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर वह भी उभर आये थे. किस्मत आनंदीबेन पटेल की चमक गयी थी. हार्दिक पटेल के पाटीदार आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में आनंदीबेन पटेल की मुख्यमंत्री पद से विदाई के वक्त भीखूभाई दिलसानिया की दावेदारी फिर से मजबूत हो गयी. पर, दुर्भाग्य देखिये कि उस वक्त वह अवसर छिटक कर विजय रूपाणी के हाथ में जा गिरा. इस रूप में उन्हें कुछ तो हासिल नहीं ही हुआ, उनकी उफनायी महत्वाकांक्षा नरेंद्र मोदी और अमित शाह की आंखों में जरूर खटक गयी. देर से ही सही, उसी महत्वाकांक्षा ने उनके लिए बिहार में गंगा स्नान का सुयोग बैठा दिया. अब इस सुयोग का सच समझिये. भीखूभाई दलसानिया सांगठनिक मामलों के विशेषज्ञ हैं, ऐसा भाजपा के लोग ही कहते हैं. यह सच है, तो ऐसे विशिष्ट लोगों की जरूरत तो अभी गुजरात में है जहां कुछ माह बाद विधानसभा का चुनाव होना है. बिहार में यह चुनाव तो अभी काफी दूर है. फिलहाल पंचायत चुनाव होना है. तो क्या इसी पंचायत चुनाव के लिए इतने बड़े सांगठनिक विशेषज्ञ को बिहार भेजा गया है? ऐसा नहीं है. दरअसल, गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद उनकी मुख्यमंत्री पद की महत्वाकांक्षा फिर से उफान न खाने लगे इसके लिए ही उन्हें बिहार भेजा गया है, ऐसा विश्लेषकों का मानना है. गौर करने वाली बात यह भी है कि गुजरात से बाहर उनकी सांगठनिक क्षमता की परख पश्चिम बंगाल के हालिया संपन्न चुनाव में हो चुकी है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने बड़ी उम्मीद से उन्हें वहां भेजा था. परिणाम क्या आया, यह सबके सामने है.

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