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हताश-निराश प्राध्यापक की जग गयी फिर आस

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शिवकुमार राय
10.09.2021

SAMASTIPUR. डा. चन्द्रधारी यादव उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के काशीपुर गांव के हैं. जीवन यापन के लिए बिहार के समस्तीपुर में निजी क्षेत्र में संचालित मौलाना मजहरूल हक (MAULANA MAZHARUL HAQUE) टीचर्स ट्रेनिंग कालेज में प्राचार्य  (PRINCIPAL) पद की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी संभाल रहे हैं.
निजी क्षेत्र की ऐसी सेवा की जिन्दगी कैसी होती है इसके वह भी अपवाद नहीं हैं. पर, बेहतरी के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं. उसी क्रम में उन्होंने भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय,मधेपुरा (B N MANDAL UNIVERSITY, MADHEPURA) में प्राध्यापक पद के लिए आवेदन दिया था. साक्षात्कार में खरा उतरे और उस पद के लिए चयन हो गया.

अटक गयी पदस्थापना
भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्र विभाग में दो प्राध्यापकों की बहाली के लिए 31 मार्च 2018 को विज्ञापन निकला था. 17 अप्रैल 2018 को विश्वविद्यालय परिसर में साक्षात्कार हुआ. डा. बुद्धप्रिय और डा. चन्द्रधारी यादव चयनित हुए. कुछ दिनों बाद डा. बुद्धप्रिय को शिक्षा शास्त्र विभाग के प्रधान के रूप में योगदान करा दिया गया. डा. चन्द्रधारी यादव का मामला अधर में अटक गया.

डा. चन्द्रधारी यादव को मौखिक रूप से बताया गया कि उस वर्ष यूनिट एक का वर्ग संचालन हो रहा है. इसलिए तात्कालिक तौर पर सिर्फ एक प्राध्यापक को योगदान कराया गया है. अगले साल द्वितीय यूनिट का वर्ग संचालन शुरू होगा तब उन्हें (डा. चन्द्रधारी यादव) योगदान कराया जायेगा. कारण जो रहा हो, वैसा हुआ नहीं. तकरीबन साढ़े तीन साल बीत गये. प्राध्यापक की बेहतर नौकरी की आस में वह दुबले हो रहे हैं.

कहीं कोई संतुष्टि नहीं मिली
इन वर्षों के दौरान उन्होंने कई बार विश्वविद्यालय से पत्राचार किया, सक्षम प्राधिकार के समक्ष सशरीर भी उपस्थित हुए. किसी स्तर पर कोई संतुष्टि नहीं मिली. इधर, हताश-निराश डा. चन्द्रधारी यादव की नजर समकालीन तापमान (SAMKALEEN TAPMAN) के अगस्त 2021 के अंक में ‘लाट साहब मेहरबान… पहलवान!’ शीर्षक से प्रकाशित ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डा. मुश्ताक अहमद की ‘कलंक कथा’ पर गयी.

उसका उन्होंने पूरे मनोयोग से अध्ययन किया. इसी क्रम में समकालीन तापमान के जरिये किस्मत संवरने की उम्मीद जग गयी. तत्काल उन्होंने पत्रिका के मुख्य कार्यालय से संपर्क किया. डा. चन्द्रधारी यादव की व्यथा के मानवीय पक्ष को दृष्टिगत रख समकालीन तापमान ने मामले की छानबीन की.

पूर्व कुलसचिव ने दिखायी राह
इस समझ के तहत कि अन्य कुछ विश्वविद्यालयों में व्याप्त अंधेरगर्दी की तरह यह भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय की यह अवांछित करतूत तो नहीं है. खोजबीन के दौरान जाने-अनजाने विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव डा. कपिलदेव प्रसाद से बात हो गयी. इस संदर्भ में हालांकि वह खुद कोई विशेष जानकारी नहीं दे पाये, लेकिन सजन्नता इतनी जरूर दिखायी कि शिक्षा शास्त्र विभाग का प्रभार संभाल रहे प्रो. नरेश कुमार से संपर्क की राह बता दी.

प्रो. नरेश कुमार विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर रसायन शास्त्र विभाग में प्राध्यापक हैं. संबंधित जानकारी उन्होंने पूरी ईमानदारी से उपलब्ध करा दी. उनके मुताबिक डा. चन्द्रधारी यादव को योगदान की बाबत अप्रैल 2018 में दिये गये आश्वासन पर अप्रैल 2019 में अमल होता कि किसी कारणवश मामला एक साल के लिए अटक गया.

संवर जायेगी अब किस्मत
अगले साल यानी 2020 में कोरोना संक्रमण का संकट घिर गया. तब से अन्य क्षेत्रों की तरह इस विश्वविद्यालय में भी अस्त-व्यस्तता और अनिश्चितता की स्थिति रही. जुलाई 2021 के बाद से स्थिति सामान्य हुई है. प्रो. नरेश कुमार के अनुसार डा. चन्द्रधारी यादव के मामले को संबद्ध प्रबंध समिति के समक्ष रखा गया है. निर्णय भी करीब-करीब हो गया है. आने वाले कुछ ही दिनों के अंदर उनका योगदान हो जायेगा.

प्रबंध समिति के अध्यक्ष कुलपति होते हैं. इस मामले में उन्होंने यह दायित्व प्रतिकुलपति को सौंप रखा है. प्रो. नरेश कुमार के कथन से महसूस हुआ कि यह विश्वविद्यालय अभी अंधेरगर्दी से दूर है.

बहरहाल, इस नये आश्वासन से डा. चन्द्रधारी यादव की किस्मत संवरने की नयी आस तो जगी है, पर पूर्व के अनुभव आधारित आशंकाओं से वह पूरी तरह मुक्त नहीं हैं. भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय उन्हें इस त्रासदी से कब उबारता है, यह देखना दिलचस्प होगा.

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