तापमान लाइव

ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

बात द्विज जी की : परायों की मत पूछो, हाय हमें…

शेयर करें:

बिहार के जिन प्रतिष्ठित साहित्यकारों की सिद्धि और प्रसिद्धि को लोग भूल गये हैं उन्हें पुनर्प्रतिष्ठित करने का यह एक प्रयास है. विशेषकर उन साहित्यकारों , जिनके अवदान पर उपेक्षा की परतें जम गयी हैं. चिंता न सरकार को है और न वंशजों को. ‘शैली सम्राट’ के रूप में चर्चित राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह की साहित्यिक विरासत की उपेक्षा को उजागर करने के बाद अब पं. जनार्दन प्रसाद झा द्विज की स्मृति के साथ परिवार, समाज और सरकार के स्तर से जो अवांछित व्यवहार हो रहा है उस पर दृष्टि डाली जा रही है. संबंधित‌ किस्तवार आलेख की यह चौथी कड़ी है :


अश्विनी कुमार आलोक
15 अगस्त 2023

पं.जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’(Pt. Janardan Prasad Jha ‘Dvij’) सिर्फ कवि, कथाकार और आलोचक नहीं थे, स्वतंत्रता सेनानी, प्रतिभा संपन्न विद्वान और प्रकांड वेदज्ञ भी थे. उन्हें हिन्दी और अंग्रेजी की विद्वता प्राप्त थी. उनका जन्म 24 जनवरी 1904 ई. को हुआ था. 5 मई 1964 को देहावसान हो गया. पिता माध्यमिक विद्यालय में शिक्षक थे. गांव में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) के विचारों से प्रभावित होकर काशी चले गये. महामना पं. मदन मोहन मालवीय (Pt. Madan Mohan Malviya) और रामनारायण मिश्र (Ramnarayan Mishra) के सान्निध्य में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (Kashi Hindu University) से हिन्दी और अंग्रेेजी में एमए किया. जयशंकर प्रसाद के प्रभाव में आकर छायावादी कविताएं लिखीं, तो प्रेमचंद के (Premchand) प्रभाव ने कथा-लेखन प्रतिभा का विकास किया. द्विज जी ने प्रेमचंद के जीवनकाल में ही उनकी कथा-लेखन-कला पर आलोचनात्मक कृति की रचना की.

पड़ी रह गयीं पांडुलिपियां
काशी से विद्यार्जन के बाद वह देवघर हिन्दी विद्यापीठ (Deoghar Hindi Vidyapeeth) में रजिस्ट्रार नियुक्त हुए. फिर छपरा (Chhapra) के राजेन्द्र कालेज में हिन्दी विभागाध्यक्ष बनाये गये. थोड़े ही समय के बाद औरंगाबाद (Aurangabad) एवं गया (Gaya) के कालेजों में प्रचार्य हुए. लेकिन, उनके अनन्य मित्र, लेखक और राजनेता लक्ष्मीनारायण सुधांशु के प्रयास से जब पूर्णिया कालेज की स्थापना हुई, तो वह पूर्णिया कालेज में प्राचार्य बनकर समूचा जीवन बिता गये. उनकी कविता-पुस्तकों, अनुभूति, अंतर्ध्वनि, कथा-पुस्तकों ‘किसलय’, ‘माका’, ‘मृदुल’ और ‘मधुमयी’ के अतिरिक्त स्केच ‘चरित्र रेखा’ प्रकाशित हैं. किंतु अधिकांश रचनाएं या तो पत्र-पत्रिकाओं तक भी नहीं नहीं पहुंचीं या पुस्तक रूप में उनका संकलन नहीं हो सका.

सभी ने आदर किया
पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ ने अपनी रचनाओं में समाज की विषमता, स्वार्थ की पराकाष्ठा, स्वाभिमान के विलोप एवं आदर्श की स्थापना के स्वर संजोये. वह अनेक लेखकों, कवियों के लिए प्रेरणाप्रद रहे और सभी ने उनका आदर किया. कहते हैं कि ‘रश्मिरथी’ के एक सर्ग की रचना राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’  (Ramdhari Singh ‘Dinkar’) ने उन्हीं के सान्निध्य में पूर्णिया कालेज (Purnia College) में बैठकर की थी. पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की कविता ‘विश्ववेदना’ लोगों के कंठों तक आज भी समादृत हैंः
दानवता की विजय, पराजय मानवता की
घोर अनय है…
बात परायों की मत पूछो, हाय हमें
अपनों का भय है.

पूर्णिया कॉलेज पूर्णिया

लोग चर्चा कर रहे थे
उनकी कविता पुस्तक ‘अनुभूति’ छायावादी कवियों के काव्य- आंदोलन का नवीन आशय लेकर सामने आयी थी. उन्होंने वैयक्तिकता के छायावादी स्वरूप को सरस संकल्पनाओं से सजाया था. जिन दिनों सुमित्रानंदन पंत (Sumitra Nandan Pant) की कविता ‘मौन निमंत्रण’ काव्य विश्लेषकों की ओर से नवीन चेतना की कविता के रूप में उद्धृत हो रही थी, उन्हीं दिनों और उसी के समानांतर द्विज जी की कविता ‘अयि अमर शांति की जननि जलन’ की लोग चर्चा कर रहे थे. स्वयं रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है-‘ अंतर्जगत’ और ‘अनुभूति’ की कविताओं को पढ़ने से यह साफ जाहिर होता है कि प्रेम का घाव संसार में सबसे सुंदर और सबसे भयानक चीज है. इस घाव से मनुष्य का हृदय ही नहीं, उसकी आत्मा भी फट जाती है और ज्यों-ज्यों इसका विस्तार बढ़ता है, त्यों-त्यों मनुष्य भी गहरा और विस्तीर्ण होता जाता है.


ये भी पढें :
सड़क पर बिखर गयीं थातियां!
बहुत कुछ बयां कर रही हैं ढनमनायी भित्तियां
बड़ी जलन है इस ज्वाला में


प्रेमचंद पर शोध
अमृतलाल नागर ने पं. जनार्दन प्रसाद झा ‘द्विज’ की कथाओं के संबंध में कहा है-‘श्रद्धेय द्विज जी अंग्रेजी (English), बांग्ला (Bangla), हिन्दी (Hindi) और मैथिली  (Maithili) के पंडित तो थे ही, जहां तक मैंने सुना है, वह संस्कृत के भी अच्छे विद्वान थे. उनकी कहानियों ने अपने समय में खूब प्रतिष्ठा पायी थी. मुझे याद आता है कि हिन्दी के प्रथम कहानी-संकलन ‘मधुकरी’ के लिए स्वर्गीय पंडित विनोद शंकर व्यास ने उनकी भी एक कहानी चुनी थी. किसलय, मृदुल, मालिका, मधुमयी और अंतर्ध्वनि आदि उनकी रचनाओं ने अपने समय में यथेष्ट कीर्ति प्राप्त की थी. द्विज जी शायद पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने प्रेमचंद की कहानी और उपन्यास-कला पर शोध प्रबंध लिखा.’

#Tapmanlive

अपनी राय दें