लंगड़ी मार राजनीति : अपनों को निबटाना, है इसका मूल सिद्धांत !
विशेष प्रतिनिधि
28 जनवरी 2025
Patna : सभी राजनीतिक दल (political party) अपने विरोधियों से लड़ते हैं. लेकिन, बिहार (Bihar) में जदयू (JDU) की रणनीति दूसरे दलों से बिल्कुल अलग है. मौका मिलता है तो उसके नेता पहली फुरसत में अपनों को निबटा देते हैं. इस प्रक्रिया का असर यह है कि आज संगठन के किसी शीर्ष पद पर समता पार्टी (Samata Party) के दिनों का कोई नेता उपलब्ध नहीं है. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की कथित शक्तिशाली भूजा पार्टी में भी समता पार्टी के समय के नेता नहीं हैं. भूजा पार्टी के दो सीनियर मेंबर कांग्रेस (Congress) पृष्ठभूमि के हैं और इन दिनों ये दोनों एक दूसरे को निबटाने के प्रबंध में मनोयोग से जुट गये हैं. गौर से देखिये तो दो साल के भीतर कई बड़े नेता निबट गये.
ऐसे चला निबटाने का खेल
उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) याद होंगे. वह समता पार्टी के संस्थापक रहे हैं. नीतीश कुमार 2005 में जिस समय मुख्यमंत्री (Chief Minister) बने, उपेन्द्र कुशवाहा विधायक दल के नेता थे. कहते हैं कि निबटाने की बोहनी उन्हीं से हुई. वह उस समय विधानसभा (Assembly) का चुनाव हार गये. उसके बाद जार्ज फर्नांडिस (George Fernandes) की बारी आयी. उन्हें 2009 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) में निबटा दिया गया. उसी समय बांका वाले दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) भी किनारे कर दिये गये. निबटान योजना में शरद यादव (Sharad Yadav) प्रमुख थे. जार्ज फर्नांडिस के निबटने के पांच-छह साल बाद शरद यादव भी निबटा दिये गये.
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सिलसिला रुका नहीं
निबटाने का सिलसिला रुका नहीं. उपेंद्र कुशवाहा तीसरी बार पार्टी से जुड़े. संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया. कुछ महीने बाद ही उनके विरुद्ध निबटान योजना का सूत्रपात हुआ. वह निकल गये. कुशवाहा निबटान योजना के सूत्रधार ललन सिंह (Lalan Singh) भी राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से निबटा दिये गये. रामचंद्र बाबू यानी आरसीपी सिंह (RCP Singh) का हश्र सबको पता है. उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में टिकट बांटते समय इतने योग्य उम्मीदवारों को निबटाया कि पार्टी तीसरे नम्बर पर जा गिरी,
कार्यकर्ताओं की जुबान पर आ गये
निबटान योजना के ताजा शिकार भारतीय प्रशासनिक सेवा (Indian Administrative Service) के अवकाश प्राप्त अधिकारी मनीष वर्मा (Manish Verma) बने हैं. वह पार्टी के महासचिव बने. नीतीश कुमार के करीब रहने के दौरान उन्होंने देखा कि दल में जमीनी कार्यकर्ताओं की पूछ नहीं है. महासचिव (General Secretary) बनने के कुछ दिनों बाद उन्होंने जिलों का दौरा शुरू किया. कार्यकर्ता सम्मेलन कराना शुरू किया. देखा गया कि मनीष वर्मा पार्टी कार्यकर्ताओं की जुबान पर आ गये हैं. उन्हें निबटाने की योजना दो किस्तों में बनी. पहली किस्त में वर्मा के कार्यक्रम का अपहरण किया गया.
यही मूल सिद्धांत है
उनके समानांतर कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया गया. बाद में कहा गया कि एक ही तरह का दो कार्यक्रम क्यों चलेगा. इसलिए उनके कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया. अब देखना है कि मनीष वर्मा को निबटाने में लगे नेता स्वयं कब निबटते हैं. क्योंकि पार्टी का यही मूल सिद्धांत है-कोई आगे बढ़ रहा है तो लंगड़ी मार के गिरा दो.
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