नागा साधु : जमीन पर सोते हैं और जो मिल गया वही खा लेते हैं
सचमुच रहस्यमयी जिंदगी होती है नागा संन्यासियों की. इनको लेकर सबसे बड़े आम जिज्ञासा यह होती है कि कुंभ के दौरान बड़ी संख्या में अवतरित होने वाले नागा साधु सामान्य दिनों में कहां और कैसे रहते हैं. तापमान लाइव ने इस पर शोध किया है. प्रस्तुत है किस्तवार संबंधित आलेख की चौथी कड़ी:
महर्षि अनिल शास्त्री
12 जनवरी 2025
बहुत कष्टकर होता है नागा साधुओं (Naga Sadhus) का जीवन. उन्हें रात और दिन मिलाकर केवल एक ही समय भोजन करना होता है. वह भोजन भी भिक्षा मांग कर लाया गया होता है. भिक्षाटन (Begging) में भी बंदिश है. एक नागा साधु को अधिक से अधिक सात (Seven) घरों में भिक्षा लेने का अधिकार है. दुर्भाग्यवश सातों घरों में से कहीं कोई भिक्षा नहीं मिली तो उसे भूखा रहना पड़ता है. जो खाना मिले, उसमें पसंद-नापसंद को नजरअंदाज कर प्रेमपूर्वक ग्रहण करना होता है. नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग नहीं कर सकते. यहां तक कि गद्दा पर सोने की भी मनाही होती है. वे केवल पृथ्वी (Earth) पर ही सोते हैं. यह बहुत ही कठोर नियम है जिसका पालन हर नागा साधु को करना पड़ता है.
आमलोगों से नहीं रहता जुड़ाव
बस्ती से बाहर निवास करना, संन्यासी (Sanyasi) के अलावा किसी और को प्रणाम नहीं करना और न किसी की निंदा करना आदि कुछ और कड़े नियम हैं जिनका दीक्षा लेने वाले हर नागा साधु को पालन करना पड़ता है. इन नियमों का जो पालन नहीं करते वे नकली नागा साधु होते हैं. ऐसे नकली नागा साधुओं की संख्या भी कम नहीं है. नागा साधु आमतौर पर हिमालय (Himalaya) की कन्दराओं (Kandaraon) व गुफाओं (Caves) में रहते हैं. कुछ संबद्ध अखाड़ों (Akhadon) में भी. आमतौर पर कुंभ-महाकुंभ (Kumbh-Mahakumbh) मेलों के दौरान ये प्रकट होते हैं और फिर वहीं लौट जाते हैं. आमलोगों से इनका कभी कोई खास जुड़ाव नहीं रहता है. शृंगार सिर्फ महिलाओं को ही प्रिय नहीं होता, नागा साधुओं को भी सजना-संवरना अच्छा लगता है. फर्क इतना कि नागाओं की शृंगार सामग्री महिलाओं के सौंदर्य प्रसाधनों से बिल्कुल अलग होती है. पर, उन्हें भी अपने लुक और स्टाइल की उतनी ही फिक्र होती है जितनी आम आदमी को.
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भस्म हैं सबसे ज्यादा प्रिय
नागा साधु प्रेमानंद गिरि (Premanand Giri) के मुताबिक नागाओं के अपने विशेष शृंगार साधन हैं. ये आम लोगों से अलग हैं, लेकिन नागाओं के प्रिय हैं. सबसे ज्यादा प्रिय भस्म है, यानी विभूति. भगवान शिव (lord shiva) के औघड़ रूप में भस्म रमाना सर्वविदित है. शैव संप्रदाय के साधु भी आराध्य प्रिय भस्म को अपने शरीर पर लगाते हैं. रोज सुबह स्नान के बाद शरीर पर भस्म रमाते हैं. भस्म ताजा होती है जो शरीर पर कपड़ों का काम करती है. कई नागा साधु नियमित रूप से फूलों की मालाएं धारण करते हैं. गेंदे के फूल उन्हें अधिक पसंद हैं. कारण संभवतः उसका अधिक समय तक ताजा रहना बताया जाता है. नागा साधु गले में, हाथों पर और विशेष तौर से अपनी जटाओं में माला लगाते हैं. हालांकि, कुछ खुद को फूलों से बचाते भी हैं. यह निजी पसंद और विश्वास का मामला है.
(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)
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