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आरिफ मोहम्मद खान : सर्वोपरि है संविधान व स्वाभिमान

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तापमान लाइव ब्यूरो
04 जनवरी 2025

PATNA : काफी प्रचलित लोकोक्ति है- ‘पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं.’ अंग्रेजी में Morning Shows The Day कहा जाता है. विधिवत पद संभालने से पहले और बाद में भी, अप्रत्याशित पहल के तौर पर राज्यपाल (Governor) आरिफ मोहम्मद खान (Arif Mohammad Khan) ने पटना में जो कुछ किया और कहा, उस परिप्रेक्ष्य में इस लोकोक्ति के उद्धरण को बिल्कुल उपयुक्त माना जा सकता है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के गांव पहुंच उनके माता-पिता की प्रतिमाओं पर श्रद्धा सुमन अर्पित करना और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (Rabri Devi) के आवास पर राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) से मुलाकात. सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों को समान सम्मान!

पहला सुखद अनुभव
इस सम्मान के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा सकते हैं. पर, तटस्थ नजर में यह कलुषित राजनीति (Politics) के वर्तमान दौर में प्रेम और सद्भाव का अनुपम उदाहरण है. राज्यपाल के स्तर पर बिहार के लिए संभवतः पहला सुखद अनुभव है. अब यह प्रोटोकॉल के तहत था या नहीं, एक अलग विषय है. वैसे, आत्मीय जन से भेंट-मुलाकात बहस या विवाद से परे है. आरिफ मोहम्मद खान बड़े विद्वान हैं. ज्ञानी इतने कि उन्होंने कुरान के साथ-साथ रामायण और महाभारत का भी गहन अध्ययन कर रखा है.

सिद्धांतों से समझौता नहीं
महत्वपूर्ण बात यह भी कि उन्हें सिद्धांतों से समझौता नहीं करने वाले विचारवान राजनेता के रूप में जाना जाता है.वरिष्ठ पत्रकार विभेष त्रिवेदी के शब्दों में इतिहास गवाह है कि बहुचर्चित शाहबानो प्रकरण (Shahbano Case) में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) की मुस्लिम तुष्टिकरण नीति (Muslim Appeasement Policy) का खुला विरोध किया. राजीव गांधी से लड़ गये और कांग्रेस (Congress) से इस्तीफा दे दिया.बाद में वह विश्वनाथ प्रताप सिंह (Vishwanath Pratap Singh) मंत्रिमंडल में शामिल किए गये.


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बिहार क्यों लाया गया ?
आरिफ मोहम्मद खान ने केरल में विधि सम्मत सख्ती और सूझबूझ से एक स्ट्रांग गवर्नर की छवि हासिल की. वहां जब तक रहे, अपनी योग्यता, शासनिक कुशलता और दृढ़ता की बदौलत वामपंथियों की सरकार को संविधान के दायरे में रहने को बाध्य किये रहे.यह सब तो है, पर सवाल यहां यह उठ रहा है कि आखिर उन्हें बिहार क्यों लाया गया है? उनके लिए पश्चिम बंगाल से पंजाब के बीच किसी ऐसे राज्य में जगह बनायी जा सकती थी, जहां एनडीए की सरकार नहीं है.

देखना दिलचस्प होगा
विभेष त्रिवेदी के मुताबिक लोगों की समझ में यह बात भी नहीं आ रही है कि जब राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर (Rajendra Vishwanath Arlekar) के कार्यकाल में सब कुछ ठीक ठाक था, तो साल भर के अंदर ही उन्हें हटाने की जरूरत क्या थी? इसका जवाब केरल को उनकी अधिक जरूरत के रूप में दिया जा सकता है. बहरहाल, बिहार के संदर्भ में ऐसा माना जा रहा है कि आरिफ मोहम्मद खान वही करेंगे जो कानून कहेगा और नरेंद्र मोदी की सरकार को सही लगेगा. इस दृष्टिकोण से इस परिवर्तन को राज्य के सत्ता शीर्ष के लिए अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता है. आगे क्या होता है, देखना दिलचस्प होगा.

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