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किस्सा कोठी का : और इस दिल में… तेरा ही दर्द छिपा रखा है!

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विशेष प्रतिनिधि
11 दिसम्बर 2024

Patna : चिराग पासवान ‘चांडाल’ है! ऐसा किसी और ने नहीं, खुद उनके चाचा रालोजपा (Rljp) अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस (Pashupati Kumat Paras) ने कहा है. 28 नवम्बर 2024 को लोजपा के स्थापना दिवस पर पैतृक गांव खगड़िया (Khagriya) जिले के शहरबन्नी (Saharbanni) में बड़े भाई रामविलास पासवान (Ramvilesh Paswan) और छोटे भाई रामचंद्र पासवान (Ramchandra Paswan) की प्रतिमाओं का एक साथ अनावरण करते हुए उन्होंने चिराग पासवान के ‘चांडाल चरित्र’ की चर्चा की तो उनके आंसू निकल पड़े. तकरीबन सात वर्षों से दिल में दबा रखे दर्द को उन्होंने इस मौके पर जिन तल्ख शब्दों में व्यक्त किया उसका लब्बोलुआब यही था कि चिराग पासवान ने अंतिम समय में उन्हें बड़े भाई से मिलने नहीं दिया.

गप्प नहीं, सब यथार्थ
पशुपति कुमार पारस ने जिस लहजे में इस दर्द को सार्वजनिक किया उस पर चिराग पासवान (Chirag Paswan) और उनके हिमायतियों को गुस्सा आना स्वाभाविक है. पर, पासवान परिवार के निकट रहने वालों पर भरोसा करें, तो उस दिन पशुपति कुमार पारस के छलक पड़े दर्द में तनिक भी गप्प नहीं था, सब यथार्थ था. ऐसे लोगों के मुताबिक अंतिम समय में बड़े भाई से नहीं मिलने देने की बात बहुत बाद की है, हकीकत यह है कि लोजपा (LJP) की कमान और 12 जनपथ की व्यवस्था संभालने के साथ ही चिराग पासवान अप्रत्यक्ष रूप से पिता रामविलास पासवान को उनके भाइयों से दूर रखने का उपक्रम करने लग गये थे.

कड़ा पहरा बिठा दिया
शुरुआत 12 जनपथ (12 Janpath) में अतरिक्त निर्माण को ध्वस्त करने से हुई थी. कहते हैं कि उसी क्रम में लोजपा के जन-संगठनों के कार्यालय को भी उस कोठी से बाहर कर दिया गया. इतना ही नहीं, सांसद बनने के तीन साल बाद यानी 2017 में चिराग पासवान ने हमेशा खुले रहने वाले 12 जनपथ के दरवाजे पर कड़ा पहरा बिठा दिया. किसी भी समय जाने-आने वाले लोगों से कई सवाल पूछे जाने लगे. रजिस्टर पर दर्ज होने लगा कि कहां से आये हैं, किनसे मिलना है. मिलने का मकसद क्या है और यह भी कि मुलाकात का समय लिया है या नहीं.

लोगों ने जाना कम कर दिया
नयी दिल्ली में इतनी औपचारिकता केंद्र सरकार के कार्यालयों में प्रवेश के समय पूरी की जाती है.‌ इस व्यवस्था के पीछे समझ जो रही हो, असर यह हुआ कि धीरे-धीरे यह बात पटना होते हुए हाजीपुर (Hajipur) संसदीय क्षेत्र के आम लोगों के बीच फैल गयी. लोगों ने वहां जाना कम कर दिया. करीब के लोग किस्सा सुनाते हैं कि किसी भी समय कोठी में जाने वाले पशुपति कुमार पारस और रामचंद्र पासवान जैसे सगे भी चिराग पासवान के मूड का पता करके ही बड़े भाई के घर में प्रवेश करने लगे थे.


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किस्से का एक हिस्सा यह भी
सांसद बनने से पहले पशुपति कुमार पारस नयी दिल्ली में अपने अनुज और दिवंगत सांसद रामचंद्र पासवान के ही सरकारी आवास पर ठहरते थे. इस किस्से का एक हिस्सा यह भी है कि चिराग पासवान ने सबसे पहले उन लोगों को धीरे-धीरे 12 जनपथ से दूर किया जो किसी जमाने में रामविलास पासवान के प्रिय हुआ करते थे. वीरेश्वर सिंह, महेश्वर सिंह, रामा सिंह सहित दर्जनों नेता रामविलास पासवान से दूर होते चले गये. उनकी मजबूरी ही थी कि बेचारे कभी आह भी नहीं निकाल पाये. उल्टे हर समय बेटे की तारीफ ही करते रहे. कहते रहे कि होनहार है. समय की समझ है. ये चिराग ही थे, जिन्होंने 2014 में राजग में शामिल होने का वाजिब फैसला किया. हम तो दुविधा में थे.

इतनी जल्दी क्यों…
ऐसी तारीफ उन्होंने आम जनता के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (Narendra Modi) के सामने भी की. लोकसभा चुनाव के दौरान जब सीटों को लेकर भाजपा के साथ मतभेद उभर रहा था, चिराग पासवान ने पिता को पीछे रखकर मोर्चा संभाल लिया. बेशक उस मुहिम में उन्हें जबर्दस्त कामयाबी मिली. संयोग से सभी सीटों पर मिली जीत ने लोजपा की कतारों में उनके नेतृत्व को स्थापित दिया. फिर भी लोग यह सवाल पूछते रहे कि आखिर यह नौजवान सब कुछ इतनी जल्दी क्यों हासिल कर लेना चाहता है ? उतावलापन क्यों है? क्षेत्रीय पार्टियों का यही चलन रहा है कि संस्थापक के पुत्र ही पारिवारिक संपत्ति की तरह पार्टी के उत्तराधिकारी होते हैं. आज न कल, नेतृत्व तो उन्हें ही संभालना था. उन्होंने संभाल भी लिया.

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