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सिर्फ साधु नहीं योद्धा भी : नागा बाबा का चिमटा लग जाये तो बेड़ा पार!

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सचमुच रहस्यमयी जिंदगी होती है नागा संन्यासियों की. इनको लेकर सबसे बड़े आम जिज्ञासा यह होती है कि कुंभ के दौरान बड़ी संख्या में अवतरित होने वाले नागा साधु सामान्य दिनों में कहां और कैसे रहते हैं. तापमान लाइव ने इस पर शोध किया है. प्रस्तुत है किस्तवार संबंधित आलेख की पांचवीं कड़ी :

महर्षि अनिल शास्त्री

14 जनवरी 2025

नागा साधु (Naga Sadhu) सबसे ज्यादा ध्यान तिलक (Tilak) पर देते हैं. यह पहचान और शक्ति दोनों का प्रतीक है. रोज तिलक एक जैसा लगे, इसको लेकर वे बहुत सावधान रहते हैं. कभी अपने तिलक की शैली को बदलते नहीं हैं. तिलक लगाने में इतनी बारीकी से काम करते हैं कि अच्छे-अच्छे मेकअप मैन मात खा जाये. भस्म की तरह नागाओं को रूद्राक्ष (Rudraksh) भी बहुत प्रिय है. कहा जाता है कि रूद्राक्ष भगवान शिव (lord shiva) के आंसुओं से उत्पन्न हुए हैं. यह साक्षात भगवान शिव के प्रतीक हैं. इस कारण लगभग सभी शैव साधु रूद्राक्ष की माला पहनते हैं. ये मालाएं साधारण नहीं होतीं. इन्हें बरसों तक सिद्ध किया जाता है. कहते हैं कि अगर कोई नागा साधु किसी पर खुश होकर अपनी माला उसे दे दे तो उस व्यक्ति की किस्मत फिर जाती है.

कुछ नागा साधु लंगोट धारण करते हैं
कई नागा साधु रत्नों की मालाएं भी धारण करते हैं. महंगे रत्न जैसे मूंगा, पुखराज, माणिक आदि रत्नों की मालाएं धारण करने वाले नागा कम ही होते हैं. उन्हें धन (Wealth) से मोह नहीं होता, लेकिन ये रत्न उनके शृंगार के आवश्यक हिस्सा होते हैं. आमतौर पर नागा साधु निर्वस्त्र रहते हैं. उन्हें वस्त्र धारण करने की अनुमति नहीं होती. लेकिन, कई नागा साधु लंगोट धारण करते हैं, गेरुआ रंग (Gerua Rang) की. इसके अलावा वे किसी भी रूप में गेरुआ वस्त्र का भी धारण नहीं कर सकते. लंगोट धारण करने के कुछ खास कारण हैं. सबसे बड़ा कारण यह कि भक्तों को उनके पास आने में कोई झिझक नहीं होती. कई साधु हठयोग के तहत भी लंगोट धारण करते हैं- जैसे लोहे की लंगोट, चादी की लंगोट, लकड़ी की लंगोट आदि. यह भी एक तप की तरह होता है.


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चिमटा रखना है अनिवार्य
नागाओं को सिर्फ साधु नहीं, बल्कि योद्धा माना गया है. वे युद्ध कला (Art of war) में माहिर, क्रोधी और बलवान शरीर के स्वामी होते हैं. अक्सर नागा साधु अपने साथ तलवार, फरसा या त्रिशूल लेकर चलते हैं. ये हथियार इनके योद्धा होने के प्रमाण तो हैं ही साथ ही इनकी पहचान भी हैं. नागाओं में चिमटा (Chimata) रखना अनिवार्य है. धुनि रमाने में सबसे ज्यादा काम चिमटे का ही पड़ता है. चिमटा हथियार भी है और औजार भी. यह नागाओं के व्यक्तित्व का एक अहम हिस्सा भी है. कई साधु चिमटे से भक्तों को आशीर्वाद भी देते हैं. नागा बाबा का चिमटा लग जाये तो नैया पार. जटाएं भी नागा साधुओं की सबसे बड़ी पहचान होती है. मोटी-मोटी जटाओं की देख-रेख भी उतने ही जतन से की जाती है. काली मिट्टी (black soil) से उन्हें धोया जाता है. सूर्य की रोशनी में सुखाया जाता है.

जटाओं का भी करते हैं शृंगार
अपनी जटाओं (Jataon) को नागा सजाते भी हैं. कुछ फूलों से, कुछ रूद्राक्षों से तो कुछ मोतियों की मालाओं से उसका शृंगार करते हैं. नागा साधुओं के लिए दाढ़ी का भी विशेष महत्व है. इसकी देखरेख भी वे जटाओं की तरह करते हैं. उसे पूरे जतन से साफ रखते हैं.हालांकि, कुछ ऐसे भी साधु होते हैं जो सिर पर बाल नहीं रखते. शिखा सूत्र (चोटी) व दाढ़ी भी नहीं. जिस तरह भगवान शिव बाघाम्बर यानी शेर की खाल को वस्त्र के रूप में पहनते हैं. वैसे ही कई नागा साधु जानवरों की खाल पहनते हैं. जैसे हिरण या शेर. हालांकि, शिकार और पशु खाल पर प्रतिबंध के कारण अब पशुओं की खाल मिलना बहुत मुश्किल होता है, फिर भी कई साधुओं के पास जानवरों की खाल देखी जा सकती है.

(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)

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