महिला नागा साधु : इनकी भी है अपनी अलग रहस्यमयी दुनिया!
सचमुच रहस्यमयी जिंदगी होती है नागा संन्यासियों की. इनको लेकर सबसे बड़े आम जिज्ञासा यह होती है कि कुंभ के दौरान बड़ी संख्या में अवतरित होने वाले नागा साधु सामान्य दिनों में कहां और कैसे रहते हैं. तापमान लाइव ने इस पर शोध किया है. प्रस्तुत है किस्तवार संबंधित आलेख की छठी एवं अंतिम कड़ी:
महर्षि अनिल शास्त्री
15 जनवरी 2025
वर्तमान में कई अखाड़ों (Akhadon) में महिलाओं (women) को भी नागा साधु (Naga Sadhu) की दीक्षा दी जाती है. इनमें विदेशी (Foreigner) महिलाओं की संख्या काफी अधिक रहा करती है. महिला नागा साधु और पुरुष साधु के नियम व कायदे लगभग समान हैं. अंतर इतना कि महिला नागा साधु को एक पीला वस्त्र लपेट कर रहना पड़ता है और यही वस्त्र पहनकर स्नान करना पड़ता है. नग्न स्नान की अनुमति नहीं है. यहां तक कि कुंभ मेले (Kumbh Mela) में भी नहीं. महाराष्ट्र (Maharashtra) के नासिक-त्रयंबकेश्वर में आयोजित कुंभ में प्रयाग (इलाहाबाद) महाकुंभ की तरह महिला संन्यासियों के लिए अलग से अखाड़ा बना और शाही स्नान में शामिल होने की अनुमति दी गयी. 2013 के प्रयाग (Prayag) महाकुंभ में शुरू हुई इस नयी व्यवस्था का विरोध भी हुआ था. उसमें पहली बार पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ों ने साध्वी वेदगिरी को महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar) की उपाधि दी थी.
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जूना अखाड़े में हैं ज्यादा महिला संन्यासी
नागा साधुओं के अखाड़ों में महिला संन्यासियों को एक अलग पहचान और विशेष महत्व दिया जाता है. पर, नग्न स्नान पर पाबंदी होती है. अखाड़ों का मानना है कि महिलाओं का नग्न रहना भारतीय संस्कृति का खुला उल्लंघन है. महिला संन्यासियों की अलग दुनिया है. उनके शिविर में कोई भी व्यक्ति बिना इजाजत के प्रवेश नहीं कर सकता है. इन संन्यासियों के लिए भगवान दत्तात्रेय की मां अनुसुइया ईष्ट हैं. सबसे ज्यादा महिला नागा संन्यासी जूना अखाड़े (Juna Akhara) में हैं. वहां के संन्यासिन अखाड़े में अधिकतर महिला साधु नेपाल (Nepal) से आयी हैं. इसकी खास वजह है. यह कि नेपाल में ऊंची जाति की महिलाओं को दोबारा शादी समाज स्वीकार नहीं करता है. ऐसे में महिलाएं घर में उपेक्षित रहने की बजाय साधु बन जाती हैं.
करना पड़ता है खुद का पिंडदान और तर्पण
महिला नागा संन्यासिन बनने से पहले साधु-संत संबद्ध महिला के घर-परिवार और पिछले जीवन की जांच-पड़ताल करते हैं. महिला को यह साबित करना होता है कि उसे परिवार और समाज से कोई मोह नहीं है. वह सिर्फ भगवान की भक्ति करना चाहती है. उसके ऐसे आचरण से संतुष्ट होने के बाद ही गुरु (Guru) उसे संन्यास की दीक्षा देते हैं. हालांकि, इससे पूर्व महिला को छह से बारह साल तक कठिन ब्रह्मचर्य (Brahmachary) का पालन करना होता है. जिस अखाड़े से महिला संन्यास की दीक्षा लेना चाहती है उसके आचार्य महामंडलेश्वर जब महिला के ब्रह्मचर्य के प्रति संतुष्ट हो जाते हैं तब ही उसे दीक्षा देते हैं. नागा संन्यासी बनने से पहले महिला का मुंडन किया जाता है और नदी में स्नान कराया जाता है. फिर खुद का पिंडदान और तर्पण करना पड़ता है. संन्यासिन बन जाने के बाद अखाड़े के सभी साधु-संत उसे माता कहकर संबोधित करते हैं. महिला नागा संन्यासिन को पूरे दिन भगवान (God) का जप करना होता है.
(यह आस्था और विश्वास की बात है. मानना और न मानना आप पर निर्भर है.)
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