राजनीति बिहार की: इसलिए है…नीतीशे पर निसार भाजपा !
विष्णुकांत मिश्र
17 जनवरी 2025
PATNA : बिहार विधानसभा के 2025 के चुनाव के बाद सियासी चाचा नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और सियासी भतीजा तेजस्वी प्रसाद यादव (Tejaswi Prasad Yadav) के रिश्तों का स्वरूप क्या होगा, यह वक्त बतायेगा. फिलहाल मुंह फुलाने और फिर मुस्कुरा देने का क्रम बनाये रख नीतीश कुमार एनडीए (NDA) में ही रहेंगे. 2025 के चुनाव से पहले पलटी नहीं मारेंगे, यह करीब-करीब तय है. ऐसा इसलिए भी कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद (Lalu Prasad) ने उनके लिए जो दरवाजा खोला था उसे तेजस्वी प्रसाद यादव ने यह कहते हुए बंद कर दिया कि उनसे जुड़ना अपने पांव में कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा.
अड़चन पैछा हुई तब…
हालांकि, संभावनाओं के खेल के तकिया कलाम के बीच स्वार्थ भरी राजनीति (Poltics) में ऐसे बयानों का कोई मायने-मतलब नहीं होता. तब भी तात्कालिक तौर पर तो भरोसा किया ही जा सकता है. यह हर कोई जानता व समझता है कि अपनी प्रकृति के अनुरूप नीतीश कुमार को सत्ता में बने रहना है. चुनाव बाद एनडीए में अड़चन पैदा हुई और तेजस्वी प्रसाद यादव का ख्वाब फिर अधूरा रह गया तब चाचा-भतीजा के रिश्तों में पुनः प्रगाढ़ता आ जाये तो राजनीति के लिए वह चौंकने-चौंकाने वाली कोई बात नहीं होगी. मुख्यमंत्री नहीं तो उपमुख्यमंत्री ही सही, तेजस्वी प्रसाद यादव का बंद दरवाजा खुद-ब खुद खुल जायेगा.
भाजपा के रहमोकरम पर
वैसे, सच यह भी है कि खुदा न खास्ता महागठबंधन (Mahagathbandhan) को पूर्ण बहुमत प्राप्त हो गया, तेजस्वी प्रसाद यादव को स्वतंत्र सत्ता हासिल हो गयी तो फिर नीतीश कुमार की राजनीति भाजपा (BJP) के रहमोकरम पर निर्भर हो जायेगी. एक तरह से अस्त ही हो जायेगी. प्रभावित भाजपा की राजनीति भी होगी. राज्य की सत्ता से वह भी बाहर हो जायेगी. भाजपा के रणनीतिकार इस तथ्य को बखूबी जानते और समझते हैं. यह भी कि नीतीश कुमार से गठबंधन का मूल आधार मुख्यमंत्री का पद है. बिहार की सत्ता में जमे रहने के लिए उन्हें इस रूप में ही सिर पर बैठाये रखना होगा.
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ऐसी विवशता क्यों?
अब सवाल उठता है कि भाजपा के समक्ष यह विवशता क्यों और किस रूप में है. इस बावत वरिष्ठ पत्रकार विशेष त्रिवेदी का कहना है कि बिहार में भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जिसे 2025 के विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) में भावी मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर वह खुद का बहुमत हासिल कर ले. उसके समक्ष दिक्कत यह है कि मुख्यमंत्री के रूप में वह उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी (Samrat Choudhary) को पेश करती है तो कुर्मी, वैश्य एवं अन्य पिछड़ी, अतिपिछड़ी जातियां बिदक जा सकती हैं. वैश्य बिरादरी के प्रदेश अध्यक्ष डा. दिलीप जायसवाल (Dr. Dleep Jaiswal) को आगे किया तो कुशवाहा-कुर्मी नाराज हो जा सकते हैं.
इसी में दिखती है भलाई
केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय (Nityanand Ray) ऐसे मोहरा हैं जो 2020 में ही पिट गये. उनके साथ यह मुद्दा भी जुड़ा हुआ है कि बिहार का यादव समाज नेतृत्व के मामले में लालू प्रसाद के परिवार से इतर किसी और यादव नेता में विश्वास करने को तैयार नहीं है. भाजपा सवर्ण समाज के उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा (Vijay Kumar Sinha) या अन्य किसी नेता को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करती है तो पार्टी में आंतरिक गुटबाजी और बढ़ जा सकती है. दूसरी तरफ पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों को जोड़कर जदयू-राजद बड़ी ताकत बन जा सकते हैं. इन सबके मद्देनजर भाजपा नीतीश कुमार को ही माथे पर बैठाये रखने में भलाई मान रही है.
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