प्रयागराज महाकुंभ : दिखी भव्यता और दिव्यता… याद करेगी दुनिया
अविनाश चन्द्र मिश्र
2 मार्च 2024
कुंभ, अर्द्धकुंभ और महाकुंभ को हिन्दुओं की आस्था, अस्मिता और आत्मसम्मान का विश्वस्तरीय (World class) दिव्य व भव्य धार्मिक अनुष्ठान (Religious Rituals) माना जाता है. सनातन धर्म (Sanatan Dharm) के राग व द्वेष रहित इस पवित्र पौराणिक सामाजिक, धार्मिक व सांस्कृतिक आयोजन को सभ्यता और संस्कृति के संगम की भी मान्यता प्राप्त है. यह सनातनी अखाड़ों का ऐसा महोत्सव है, जहां साधु-संत-महात्मा एवं आचार्य-धर्माचार्य जुटते हैं. आध्यात्मिक एवं धार्मिक विचार-विमर्श (Spiritual and Religious Discussions) होता है. सनातनी अखाड़े अपनी परंपराओं के अनुरूप संन्यासी शिष्यों को दीक्षित कर महामंडलेश्वर (Mahamandaleshwar), अचार्य महामंडलेश्वर आदि की उपाधि प्रदान करते हैं.
समर्पण की सरिता में जनसैलाब
आमलोगों की अगाध आस्था में कुंभ में डुबकी लगा पुण्य कमाने की कामना समाहित रहती है. और कुछ नहीं, सिर्फ कुंभ स्नान (kumbh snan) के लिए असंख्य श्रद्धालु पहुंचते हैं. भारत के कोने-कोने से ही नहीं, विदेशों से भी हिन्दू धर्मावलंबी काफी संख्या में पधारते हैं. सनातन के प्रति समर्पण की सरिता में इस आस्था और विश्वास के साथ जनसैलाब उतर जाता है कि कुंभ स्नान से समस्त पाप धुल जायेंगे, मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी. कुंभ का अर्थ कलश होता है. सनातनी व्यवस्था में कलश के मुख को भगवान विष्णु, गर्दन को रूद्र, आधार को ब्रह्मा, बीच के भाग को समस्त देवियों और अंदर के जल को सागर का प्रतीक माना जाता है.
दिखा विहंगम स्वरूप
सनातन संस्कृति में कुंभ, अर्द्धकुंभ और महाकुंभ के रूप में अध्यात्म और आस्था में पली तीन तरह के धार्मिक आयोजन की परंपरा है. स्थल विशेष पर अर्द्धकुंभ हर छह साल और कुंभ बारह साल पर आयोजित होता है. महाकुंभ का आयोजन 144 वर्षों पर हुआ करता है. तीर्थराज प्रयाग में गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती के त्रिवेणी संगम तट पर इस बार महाकुंभ का संयोग बना. 45 दिवसीय आयोजन हुआ. मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से महाशिवरात्रि (Mahashivratri) तक श्रद्धा और समर्पण का विहंगम स्वरूप दिखा. सियासत की संकीर्ण सोच व समझ में भले यह गरीबों का पेट नहीं भरने वाला, फालतू और मृत्यु कुंभ हो, संगम में लगायी गयीं करोड़ों डुबकियों से यह फिर स्थापित हुआ कि भौतिकवादी युग में भी अदृश्य शक्ति के रूप में धर्म और अध्यात्म का महात्म्य कायम है.
संपूर्ण विश्व चकित
भारतीय परंपरा (Indian tradition), संस्कृति (Culture) और हिन्दू धर्म की रक्षा को प्रतिबद्ध योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) की सरकार के संकल्प व सौजन्य से महाकुंभ का अपूर्व आयोजन (Unique event of Mahakumbh) हुआ. सनातनियों के महाजुटान एवं संगम में पवित्र स्नान का कीर्तिमान बन गया. जाति का भेद न वर्ग का विवाद. सब सनातनी. अनेकता में एकता के इस महानुष्ठान को देख-सुन संपूर्ण विश्व चकित रह गया. ऐसा स्वाभाविक भी था. किसी भी धर्म में कहीं भी श्रद्धालुओं का ऐसा महाजुटान शायद ही हुआ होगा. कुछ अप्रिय घटनाओं के बावजूद आयोजन में भव्यता और दिव्यता तो थी ही, अध्यात्म, संस्कृति, राजनीति, आर्थिक और प्रबंधकीय कौशल की अकल्पनीय अलौकिक अनुभूति भी हुई. इसकी चर्चा इस युग में ही नहीं, युगों-युगों तक होती रहेगी.
सकारात्मक संदेश नहीं
परन्तु, इसका एक श्याम पक्ष भी है. सनातन संस्कृति में ऐसी मान्यता है कि कुंभ, अर्द्धकुंभ और महाकुंभ मुख्य रूप से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के नियंत्रण-निर्देशन में साधु-संतों और आचार्यों-धर्माचार्यों का आयोजन होता है. पर, प्रयागराज महाकुंभ में धर्म और संस्कृति जैसे संवेदनशील विषयों पर कोई खास गंभीरता नहीं दिखी, आध्यात्मिक-सामाजिक विमर्शों के जरिये समाज को कोई सकारात्मक संदेश देने की पहल होती नजर नहीं आयी. हुई भी होगी, तो उसे सुर्खियां नहीं मिल पायी. सनातनियों के लिए इससे ज्यादा चिंताजनक बात और क्या हो सकती है कि साधु-संतों की सेवा, साधना और शास्त्रीय विवेचना की जगह कुंभ के केन्द्र में खूबसूरत साध्वी की मोहक अदाएं, मोनालिसा की सुरमई आंखें, आईआईटी बाबा की अटपटी भविष्यवाणियां, चिमटा बाबा के चमत्कार और कतिपय धर्मगुरुओं के सियासत के समक्ष समर्पण रहे.
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महामंडलेश्वर घोषित कर दिया
कोफ्त इस पर भी कि विवादों में घिरी फिल्म अभिनेत्री (Film Actress) ममता कुलकर्णी (Mamta Kulkarni) को विधिवत दीक्षा दिये बिना किन्नर अखाड़ा (Kinnar Akhara) ने महामंडलेश्वर घोषित कर दिया. किन्नर अखाड़े के स्वतंत्र अस्तित्व को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद (Bharatiya Akhara Parishad) की मान्यता नहीं है. इस दृष्टि से उसका निर्णय महत्व नहीं रखता है. पर, प्रतिष्ठित पंच दशनाम जूना अखाड़े (Dashnam Juna Akhara) से संबद्ध है, इसलिए सवालों में घिरता है. उधर, वैष्णव तिलक लगाने वाली तृतीय लिंगधारी हिमांगी सखी ने खुद को ‘जगतगुरु’ घोषित कर दिया. हिमांगी सखी साध्वियों-संन्यासिनों के ‘परी अखाड़े’ से जुड़ी हैं. ‘परी अखाड़े’ को भी अखाड़ा परिषद की मान्यता नहीं है.
संभावना तो जगी ही
कुछ विचारकों को कुंभ स्थल पर पांच सितारा टेंट, सरकारी बाबाओं का नियंत्रण-संरक्षण और हर स्तर पर सरकारी उगाही से विश्व का यह सबसे बड़ा धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन बाजारवाद की भेंट चढ़ता नजर आया. ऐसे विचारकों की समझ अपनी जगह है, प्रयागराज महाकुंभ की भव्यता और दिव्यता तथा श्रद्धालुओं के सैलाब से यह संभावना तो जगी ही है कि धार्मिक स्थलों को आर्थिक विकास के केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकता.
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