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मुस्लिम विधानसभा क्षेत्र : भाजपा की लहर, नहीं ढा सकी कहर…

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तापमान लाइव ब्यूरो
15 फरवरी 2025

New Delhi : दिल्ली विधानसभा के चुनाव में अरविन्द केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज सरीखे अनेक शीर्ष नेता मुंह की खा गये. 2020 में 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा (Delhi Assembly) की 62 सीटों पर धमाकेदार जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) 22 सीटों में सिमट सत्ता से दूर हो गयी. 27 वर्षों से सूखा झेल रही भाजपा (BJP) 48 सीटों के साथ सत्ता में आ गयी. कांग्रेस (Congress) का दुर्भाग्य से पीछा नहीं छूटा, शून्य से वह बाहर नहीं निकल पायी. सरसरी तौर पर दिल्ली विधानसभा के 2025 के चुनाव का यही फलाफल रहा. आम आदमी पार्टी को सत्ता वियोग तो हुआ, पर थोड़ा सुकून इस रूप में अवश्य मिला कि मुसलमानों (Muslims) के बीच उसके पांव जमे रहे, मुस्लिम मतों पर पकड़ बनी रही.

कोई खास असर नहीं पड़ा
मुस्लिम मतों में थोड़ी-बहुत नाराजगी थी भी तो समर्थन पर उसका कोई खास असर नहीं पड़ा. मतों का प्रतिशत कम जरूर हो गया, पर सीटें सम्मानजनक हासिल हो गयीं. मलाल इतना भर ही हुआ कि 2020 की तुलना में मुस्लिम बहुल एक सीट उसके हाथ से छिटक गयी. शेष पर कब्जा बरकरार रह गया. भाजपा की ‘लहर’ कोई गहरा घाव नहीं दे पायी. जहां तक मुस्लिम विधायकों की संख्या की बात है, तो इस बार इस समुदाय से सिर्फ चार विधायक निर्वाचित हुए हैं. सभी ‘आप’ के हैं. 2020 में पांच मुस्लिम विधायक निर्वाचित हुए थे. वे सब भी ‘आप’ के ही थे. 

भरोसा ‘आप’ पर बना रहा 
ऐसा कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, पर माना जाता है कि दिल्ली में 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं.  चुनावी राजनीति की गहन जानकारी रखने वालों के मुताबिक विधानसभा के 10 निर्वाचन क्षेत्रों के परिणाम इन मतों से प्रभावित होते हैं. उनमें 07 ऐसे क्षेत्र हैं, जहां के परिणाम मुस्लिम समुदाय के लोग ही तय करते हैं. 2020 में इन 07 क्षेत्रों में ‘आप’ की जीत हुई थी. इस बार 06 पर जीत हुई है. इससे प्रमाणित होता है कि तमाम शिकवे-शिकायतों के बावजूद मुसलमानों का भरोसा ‘आप’ पर बरकरार है. भाजपा को शिकस्त देने का विश्वास भी इसी पर है.

पूरी नहीं हुईं उम्मीदें
इस चुनाव का एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी है कि मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस से तो दूरी बनाये रखा ही, मुस्लिम हित की बांग लगाने वाली असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को भी नकार दिया. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी जिन उम्मीदों को लेकर दिल्ली के चुनाव मैदान में उतरी थी वे पूरी नहीं हो पायीं. उसकी समझ थी कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दों पर उसने जो आक्रामकता दिखायी थी उसका लाभ उसे मिलेगा. परन्तु, वैसा हुआ नहीं. नाउम्मीदी ही हाथ लगी. साथ में एक सीट पर उसी की वजह से भाजपा के जीत जाने का ‘कलंक’ भी लग गया. 


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गंभीरता नहीं दिखी
चुनाव परिणाम से इस तथ्य की पुनः पुष्टि हुई कि दिल्ली के मुसलमान शून्य पर सवार कांग्रेस को भाजपा से लोहा लेने में सक्षम-समर्थ नहीं मानते हैं. वैसे, 2024 के संसदीय चुनाव में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के पक्ष में थे. लेकिन, विधानसभा के चुनाव में उन्होंने उसका हाथ झटक दिया. परिणाम कांग्रेस के लगातार तीसरी बार शून्य में सिमट जाने के रूप में आया. वजह उसके विधानसभा का चुनाव गंभीरता से नहीं लड़ना भी रहा. विश्लेषकों की समझ में कांग्रेस के चुनाव अभियान में गंभीरता दिखती तब  पर्याप्त संख्या में मुस्लिम मत उसे मिल जाते और वह शून्य के अभिशाप से मुक्त हो जाती. लेकिन, वैसा कुछ नहीं हुआ.

परिणाम कुछ और निकलता
कांग्रेस पर तंज इस रूप में भी कसा गया कि उसके अलग लड़ने से भाजपा दिल्ली की सत्ता में आ गयी. ‘आप’ के साथ तालमेल होता, तो पूर्व की तरह सत्ता भाजपा से दूर रह जाती. तर्क यह कि तकरीबन डेढ़ दर्जन क्षेत्रों में ‘आप’ के उम्मीदवारों की हार जितने मतों के अंतर से हुई उससे कहीं अधिक मत कांग्रेस उम्मीदवार की झोली में गिर गये. तालमेल होता तो परिणाम कुछ और निकलता.

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